भारत पर आक्रमण करने वाला सबसे पहला तुर्क आक्रमणकारी महमूद गजनवी का इतिहास !!

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यामिनी वंश या गजनी वंश की स्थापना किसने और कब की थी:

यामिनी वंश की स्थापना 977 ई. में सुबुक्तगीन ने गजनी में की थी। पहले वह गजनी वंश के शासक अलप्तगीन का दास था, बाद में अलप्तगीन ने उसकी प्रतिभा और लगन को देखकर उसे अपना दामाद बना लिया था और उसे "अमीर-उल-उमरा" की उपाधि दी थी।  अलप्तगीन की मृत्यु के बाद 977 ई्. में सुबुक्तगीन उसका उत्तराधिकारी बन जाता है।

भारत पर पहला आक्रमण : 

भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम तुर्क आक्रमणकारी सुबुक्तगीन था, जिसने पंजाब के शासक जयपाल पर आक्रमण किया था। इस युद्ध में किसी की भी विजयी नहीं हुई थी। 

सुबुक्तगीन के दो पुत्र थे : ईस्माइल और महमूद गजनवी ।

997 ई. में सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र ईस्माइल शासक बनता है, लेकिन वह उतना योग्य नहीं होता है। इस कारण महमूद गजनवी उसे बन्दी बना लेता है और स्वयं को वहाँँ का शासक घोषित कर देता है। 

Mahmud Gajvani History in hindi
Mahmud Gajvani History in hindi


महमूद गजनवी के गजनी का शासक बनने के पहले का शासनकाल: 

महमूद गजनवी शासक बनने से पूर्व अपने पिता के शासनकाल के दौरान वह "खुरासान" का राज्यापाल था, जो अपने पिता की मृत्यु केे पश्चात् अपने भाई को बन्दी बनाकर सम्पूर्ण गजनी का शासक बन जाता है। पहले गजनी में एक परम्परा थी कि जो भी व्यक्ति शासक बनता था उसे पहले खलीफा से स्वीकृति लेनी होती थी। 

नहीं तो वह गैर मुस्लिम शासक के रूप में देखा जाता था। यहाँँ पर खलीफा से तात्पर्य होता है, मुस्लिम धर्म के गुरू या राजनीतिक गुरू। यहाँँ पर गजनवी को अनुमति इसलिए भी लेना जरूरी था, क्योंकि उसने अपने भाई ईस्माइल की गद्दी पर अधिकार किया था।

खलीफा का पूरा नाम और उसके द्वारा महम्मुद गजनवी को दी गई उपाधि:

इस क्रम में खलीफा(अलकादिर बिल्लाह) उसे अनुमति ही नहीं देता है बल्कि उसे प्रोत्साहित करता है और उसे दो उपाधि से नवाजता है।

1. यमीन-उद्-दौला - जिसका अर्थ होता है, साम्राज्य का दाहिना हाथ।
2. यमीन-उल-मिल्लाह - इसका अर्थ होता है, मुस्लिमों का संरक्षक ।

इसके अलावा उसे तीसरी उपाधि "सुल्तान " की देता है और इसी के साथ महमूद गजनवी सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला वह पहला मुस्लिम शासक बन जाता है। 

गजनवी द्वारा भारत पर किए गए 17 आक्रमण 1000 - 1027 ई. : 

सर हेनरी इलियट के अनुसार गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया था, जिसमें से लगभग उसे सभी में जीत मिली थी। इन आक्रमणों में से कुछ आक्रमण महत्वपूर्ण है :-

1.1000 ई. में गजनवी ने अपना पहला आक्रमण पंजाब के सीमा क्षेत्र में जयपाल के राज्य पर किया था और उसे पराजित कर वहाँँ से धन लूटकर ले गया था।

2. दूसरा आक्रमण 1001 ई. में वह पुन: पंजाब के उसी क्षेत्र पर करता है और इस बार भी वहाँँ के राजा जयपाल को हरा देता है और उसे बेईजत्त करता है। राजा जयपाल अपनी लगातार दो बार हार से और बेईजती से परेशान होकर आत्महत्या कर लेते हैं।

3. 1008-09 ई. में गजनवी ने अपना 6वाँँ आक्रमण पुन: उसी पंजाब के क्षेत्र पर हिन्दू शाही राजधानी बैहिंद(पेशावर के निकट वाले क्षेत्र) पर राजा जयपाल के पुत्र आनंदपाल पर किया था। इस युद्ध को भी गजनवी ने जीत लिया था, लेकिन इस युद्ध को जीतने के बाद उसकी मंशा पहले जैसे धन लुटना नहीं था। 

वह अब मूर्ति भंजक भी बन गया था। इस युद्ध के बाद वह कई हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों को तोड़ता है और उनके पत्थरों को अपने साथ ले जाता है। साथ ही इन पत्थरों को अपने साथ ले जाकर उनका इस्तेमाल ऐसी जगहों पर करता था, जहाँँ पर उपयोग करना हिन्दू धर्म की मान्यताओं के विपरित था।

4. 1014 ई. में हरियाणा के थानेश्वर पर आक्रमण किया था।

5. 12वाँँ आक्रमण 1018- 19 ई. में गजनवी ने मथुरा और कन्नौज के क्षेत्र में किया था, जहाँँ पर उस समय प्रतिहार शासक था, जो एक राज्यपाल के पद पर स्थित था। यह दोनों स्थान हिन्दू देवी-देवताओं के गढ़ माने जाते थे, यहाँँ पर उसने राजा प्रतिहार को पराजित कर भारी मात्रा में मंदिरों को लूटा और तोड़ फोड़ की थी। 

6. 16वाँ आक्रमण 1025 ई. में गजनवी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर किया था। उस वक्त वहाँँ का शासक भीमदेव प्रथम था, जिसे पराजित कर गजनवी ने यहाँँ से इतना धन लूटा था कि उसने अपने पिछले सभी आक्रमणों से नहीं लूटा था। लगभग 20 लाख दिनार मुद्रा लुटी थी। 

सोमनाथ मंदिर को लूटकर जाने के क्रम में गजनवी का रास्ते में जाटों से संघर्ष हो जाता है, जिसमें में वे गजनवी के कई घोड़े और ऊँँटों में लद्दे सोने और चांदी को लूट लेते हैं।

7. 1027 ई. में 17वाँँ आक्रमण गजनवी ने जाटों के विरूद्ध आगरा के निकट भीरा के किले पर किया था। यह जाट वही थे, जिन्होंने गजनवी के द्वारा सोमनाथ से लूटे हुए सोने को लूट लिया था। यहाँँ पर वह जाटों को पराजित कर देता है और कुछ लुटमारी करके पुन: गजनी लौट जाता है। 

गजनवी की मृत्यु कैसे हुई थी : 

गजनवी की मृत्यु के बारे में कहाँँ जाता है कि वह हिन्दुस्तान से लुटे हुए सोने से कई निर्माण कार्य करवाता है, लेकिन उसके बावजूद उसके पास इतना सोना बच जाता है कि वह उसे देख-देखकर पागल हो जाता है और दिन भर जिस कमरे में सोना रखा हुआ था, उसमें ही रहने और सोने लगता है। फिर 3 वर्ष बाद 1030 ई. में वह पूरी तरह से पागल हो जाता है और उसकी मौत हो जाती है।

दरबारी इतिहासकार : 

गजनवी के दरबारी इतिहासकार "उत्बी" था, जिसने दो पुस्तक लिखी थी।

1. किताब-उल-यामिनी

2. तारीख-ए-यामिनी।

गजनवी के दरबारी लेखक : 

फिरदौसी - जिसने शाहनामा की रचना फारसी भाषा में की थी। इसके अलावा फिरदौसी को "पूर्व का होमर" भी कहा जाता है।

बेहाकी - इसने गजनवी के पिता सुबुक्तगीन का इतिहास एक पुस्तक में लिखा था, जिसका नाम  "तारीख-ए-सुबुक्तगीन" था।

11 वींं सदी में अल्बरूनी का भारत आगमन:

इसके अलावा गजनवी के साथ 11वी सदी में "अलबरूनी" भारत आया था, जिसने "किताब-उल-हिन्द" जिसे "तहकीक-ए-हिन्द" भी कहा जाता है, उसकी रचना की थी। इस पुस्तक में उसने भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का उल्लेख किया है।

साथ ही वह पहला मुस्लिम था, जिसने पुराणों का अध्ययन किया था। 

"तहकिक-ए-हिन्द" पुस्तक को "अलबरूनी ने अरबी", "सचाऊ ने अंग्रेजी" और "रजनीकांत शर्मा ने हिन्दी" में उसका अनुवाद किया था।                 

इसके अलावा गजनवी ने संस्कृत मुद्रालेख के साथ चांदी के सिक्के भी जारी किए थे।

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