Gautam Buddha History : - गौतम बुद्ध के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी कार्य...?

Table of Contant:


गौतम बुद्ध के इतिहास की सामान्य जानकारी:

गौतम बुद्ध का जन्‍म 6टीं शताब्‍दी 563 ई.पू. में हुआ था, उनके पिता का नाम "शुद्धोधन" और माता का नाम "महामाया देवी" था। गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल की तराई में लुम्बनी वन नामक स्थान पर हुआ था, जिनके जन्म के 7 दिन बाद ही उनकी माता महामाया देवी की मृत्यु हो गई थी। 

जिसके बाद उनके पिता अपनी शाली "प्रजापति गौतमी" से विवाह कर लेतेे हैं और गौतम बुद्ध अपनी मौसी की देखरेख में ही बड़े होते हैं। गौतम बुद्ध को अक्सर देखा जाता था कि वे अकेले और शांत जगहों पर बैठना पसंद करते थे और किसी से ज्‍यादा बातें भी नहीं करते थे।

गौतम बुद्ध की इन्हीं आदतों को देखकर राजा शुद्धोधन काफी चिंतित होते हैं और वे गौतम बुद्ध की कुण्डली "कोण्डिल्य ऋषि" को दिखाते हैं। जब ऋषि उनकी कुण्डली देखते हैं तो वे राजा को बताते हैं कि आपके पुत्र के जीवन में दो घटनाएँँ कभी भी घट सकती हैं। या तो ये आगे चलकर एक बहुत बड़े चक्रवृति सम्राट बनेंगे या फिर एक बहुत बड़े सन्यासी। 

Gautam Buddha History
Gautam Buddha

ऋषि की इसी भविष्यवाणी से राजा काफी चिंतित रहनेे लगे कि कहीं मेरा पुत्र सन्यासी न बन जाए। इसलिए उन्होंने गौतम बुद्ध का विवाह मात्र 16 वर्ष की उम्र में ही करवा दिया ताकि वे घर गृस्ती के कार्यों में उलझें रहे और सन्यासी बनने की ओर उनका ध्यान ही न जाए, लेकिन होता एक दम इसके विपरित है। 

जब एक दिन गौतम बुद्ध बगीचे में बैठे हुए थे तभी उन्हें चार दृश्य दिखते हैं, जिन्हें देखने के बाद वे अपना मन सन्यासी बनने की राह पर चल देता है। 

गौतम बुद्ध को दिखाई देने वाले चार दृश्य - 

1. वृद्ध व्‍यक्‍ति - उन्‍होंने पहले दृश्‍य में एक वृद्ध व्‍यक्‍ति को देखा जो बुढ़ा हो चुका था, परन्‍तु फिर भी वह मोह माया के जाल में फंसा हुआ था और अपने पेट के लिए संघर्ष कर रहा था।

2. बीमार व्‍यक्‍ति - उन्‍होंने दूसरा व्‍यक्‍ति देखा जो बिमार था और काफी कष्‍ट में था जो अपने जीवन को और बेहतर बनाने के लिए काफी संघर्ष कर रहा था।

3. मृत व्‍यक्‍ति - तीसरे दृश्‍य में उन्‍होंने यह एहसास किया कि हम अपने जीवन में कितना भी धन-दौलन और मान-सम्‍मान कमा ले, परन्‍तु आखरी में सबको जाना तो इसी मार्ग पर है।

4. सन्‍यासी - चौथे दृश्‍य में उन्‍हें एक सन्‍यासी दिखा जो काफी खुश था और अपने ही रंग में कुछ गुनगुनाते हुए जा रहा था। जो दुनिया के मोह से बिल्‍कुल परे था। इस दृश्‍य को देखकर गौतम बुद्ध ने सोचा कि अगर हमें सारे दु:खों से मुक्‍त होना है तो यह रास्‍ता उत्‍तम है।

गौतम बुद्ध का गृह त्याग:

जिसके बाद गौतम बुद्ध चुपके से रात के समय सबके सोने के बाद घर से अपने सारथी "चन्ना" के साथ घोड़े पर बैठकर जंगल की ओर निकल जाते हैं। गृह त्याग की इस घटना को बौद्ध धर्म में "महाभिनिष्क्रमण" कहा जाता है। 

इस घटना के बाद गौतम बुद्ध ज्ञान की प्राप्‍ति के लिए घुमने लगे और वज्‍जि संघ महाजनपद की राजधानी वैशाली में अपने प्रथम गुरू "अलार कलाम" से मिलते हैं और उनसे शिक्षा प्रापत करते हैं।

किन्‍तु उन्‍हें वहाँ पर ज्ञान की प्राप्‍ति नहीं होती है। जिसके बाद वे अपने द्वितीय गुरू "रूद्रक रामपुत्‍त" से मिलते हैं उनसे भी कुछ विद्या प्राप्‍त करते हैं, परन्‍तु उन्‍हें वहाँ पर भी ज्ञान की प्राप्‍ति नहीं होती है। 

इस कारण वे वहाँ से निकलकर बिहार के "बौद्धगया" क्षेत्र में पहुँच जाते हैं जहाँ पर 45 दिनों तक "पिपल वृक्ष या बोद्धी वृृृक्ष" के कठोर तपस्‍या करते हैं जिसके बाद उन्‍हें ज्ञान की प्राप्‍ति हो जाती है। बौद्ध धर्म में ज्ञान की प्राप्ति को "बुद्धत्व" कहा गया है।

गौतम बुद्ध के बारे में कुछ रोचक तथ्य :

गौतम बुद्ध के बारे में कहा जाता है कि इन्हें ज्ञान की प्राप्ति और इनका जन्म तथा मृत्यु तीनों कार्य एक ही दिन "वैशाख पूर्णिमा" के दिन हुए थे।

गौतम बुद्ध ने गृह त्याग २९ वर्ष की आयु में किया था जबकि उन्हें ज्ञान की प्राप्ति ६ वर्ष पश्चात् ३५ वर्ष की उम्र में हुई थी और गौतम बुद्ध के बारेे में एक तथ्य यह भी है कि इन्हें जिस वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी उस वृक्ष को गोंंड़ वंश के शासक "शशांक" ने कटवाया दिया था।  

गौतम बुद्ध द्वारा दिए गए उपदेश एवं उनकी भाषाएँ :- 

ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् गौतम बुद्ध ने सबसे पहले अपने पाँँच शिष्य बनाए, जिनमें उनका सबसे प्रिय शिष्य "आनन्द" था।

जिसके बाद गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश "सारनाथ" में दिया, जिसके बाद उनके कई शिष्य बन गए थे जिनके माध्यम से उन्होंने कई जगहों पर घूम-घूम कर उपदेश दिए और अपने धर्म का प्रचार किया। 

जिसमें सबसे ज्यादा उपदेश उन्होंने "कौशल की राजधानी श्रावस्ती" में दिए थे। जिसके बाद से ही बौद्ध धर्म उत्तर भारत के अधिकांश भाग में फैल गया था और उस समय का सबसे व्यापक धर्म बन गया था। गौतम बुद्ध ने शुरूआती दौर के उपदेश "पाली भाषा" में दिए थे जबकि बाद के सभी उपदेश "संस्कृत भाषा" में दिए थे। 

"सुभद" नामक शिष्य को गौतम बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश दिया था, जिसके बाद उनकी मृत्यु 483 ई.पू. में कुशीनगर नामक स्थान पर 80 वर्ष की उम्र में हो जाती है।

बुद्ध के नाम और उनके अर्थ -

1. "बुद्ध" - जिसका अर्थ होता है "बुद्धत्‍व को प्राप्‍त करने वाला।"

2. "तथागत" - तथागत का अर्थ होता है "सत्‍य है ज्ञान जिसका" अर्थात् जिसने संसार की चक्का चोंद और मोह-माया से ऊपर उठकर खुद की इन्‍द्रियों पर विजयी प्राप्‍त कर ली हो तथा जो किसी भी बन्‍धन में न बंधा हो, उसे तथागत कहा जाता है।

इसके अलावा उन्‍हें (Light of Asia) "एशिया का प्रकाश पुंज" और "शाक्‍य मुनी" भी कहा जाता है।


गौतम बुद्ध के प्रमुख प्रतीक चिह्न -

जन्‍म - कमल या सांड

गृह त्‍याग - घोड़ा

ज्ञान प्राप्‍ति - पीपल

निवार्ण - पदचिन्‍ह(स्‍तूप)


बौद्धिसत्‍व की प्राप्ति - 

इसका अर्थ होता है ऐसा व्‍यक्‍ति जो स्‍वयं निर्वाण की प्राप्ति कर चुका हो और दूसरों को भी निर्वाण प्राप्‍त करने में उनकी मदद करता हो।

बौद्ध धर्म के पतन का कारण :- 

वज्रयान -

वज्रयान की शुरूआत 6टी शताब्‍दी में हुई थी, परन्तु इसका सबसे ज्यादा विस्‍तार 8वीं शताब्‍दी में हुआ था। इस धर्म की विशेषता यह थी कि यह तंत्र-मंत्र, जादू-टोना और आडम्‍बर से जुड़ा हुआ धर्म था। आडम्‍बर जो मुख्‍य रूप से उत्‍तर वैदिक काल में हिन्‍दू धर्म में स्‍थित था जिसमें जादू टोना के कार्य होते थे।

वह आडम्बर अब बौद्ध धर्म में भी प्रवेश कर चुका था, जिसके कारण बौद्ध धर्म का पतन होना शुरू हो गया था। क्योंकि जिन तंत्र-मंत्र और जादू-टोनों से परेशान होकर लोग बौद्ध धर्म को अपना रहे थे अब उसमें भी जादू-टोनों का प्रयोग होने लगा था। इस कारण बौद्ध धर्म हीनयान और महायान...दो भागों में बंट गया। जो आगे चलकर उसके पतन का एक कारण बना।
 

त्रिपिटक का अर्थ क्या होता है? 

तीन पुस्‍तक के संग्रह को त्रिपिटक कहा गया है जिसकी लिखावट "पाली भाषा" में की गई है। इन तीनों पुस्‍तकों में गौतम बुद्ध ने उपने उपदेश, ज्ञान और नियमों का उल्लेख किया है।

1. सुत्‍त पिटक - इस पुस्‍तक में गौतम बुद्ध द्वारा दिए गए सभी उपदेशों को लिखा गया है। ताकि भविष्‍य में आने वाली पीढ़ी को बुद्ध के उपदेशों का ज्ञान प्राप्‍त हो सके।

2. विनय पिटक - विनय पिटक में बौद्ध धर्म के अनुयाईयों द्वारा पालन किए जाने वाले नियमों को बताया गया है। 

3. अभिधम्‍म पिटक - इस पुस्‍तक में गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों और दार्शनिक विचारों का वर्णन किया है।


Post a Comment

0 Comments