जहांगीर के शासनकाल के समय की कला- चित्रकला,साहित्य कला और स्थापत्य कला एवं सैन्य सुधार... !!

Table of Contant:

जहांगीर की चित्रकला: 

जहांगीर के काल को चित्रकला का स्वर्ण युग कहा जाता है, क्योंकि जहांगीर ने स्वयं अपनी आत्मकथा "तुजुक-ए-जहांगिरी" में लिखा है कि अगर किसी पेंटिग को चार-पांच लोग मिलकर भी बनाते हैं तो मैं उसे देखकर यह बता सकता हूँ कि कौन-सा पार्ट किस पेंटर ने बनाया है। 

इससे यह मालूूम होता है कि वे चित्रकला के कितने बड़े विद्वान थे।

प्रसिद्ध चित्रकार: 

  • उस्ताद मंसूर - जिसे पक्षियों का चित्र बनाने में महारत हासिल थी। इनके द्वारा बनाए गए चित्र - टर्की कोक व बाज का चित्र है, जिसे इन्होंने हुबहु बनाया था। जहांगीर ने, मंसूर की इसी चित्रकारी से प्रभावित होकर उन्हें "नादिर-उल-अस्त्र" की उपाधि दी थी।
  • अबुल हसन - अबुल हसन यह जहांगीर के सबसे प्रिय चित्रकार थे, क्योंकि इन्हें व्यक्ति विशेष का चित्र बनाने में महारत हासिल थी। इनकी चित्रकारी से प्रभावित होकर जहांगीर ने इन्हें "नादिर-उल-जमा" की उपाधि दी थी।
  • बिशनदास - यह भी एक छवी चित्र बनाने के विशेषज्ञ थे, इन्होंने अपनी ईरान यात्रा के दौरान "शेख फूल सूफी संत" का चित्र बनाया था जो विश्वप्रसिद्ध था।
  • अन्य चित्रकार - मनोहर, गोवर्धन और मिस्कन।

जहांगीर का सपना पेंटिंग: 

"जहांगीर का सपना" इस चित्र को "अबुल हसन" ने बनाया था, जिसमें ईरान के शासक "शाह अब्बास" और "जहांगीर" के मिलन को बताया गया है। चूँकि इन दोनों के बीच सम्बन्ध अच्छे नहीं थे, इसलिए अबुल हसन ने  चित्र में पृथ्वी के सम्पूर्ण मानचित्र पर इन दोनों के चित्र को बनाया है। 

जहांगीर सपना पेंटिंग
जहांगीर सपना पेंटिंग

जिसमें जहांगीर को एक शेर की भांति दिखाया गया है जबकि शाह अब्बास को नीचा दिखाने के लिए उसे एक भेड़ के रूप में दिखाया गया है। अर्थात् इस चित्र में जहांगीर को "नूर-अल-दीन" अर्थात् आस्था की रोशनी बताया गया है। व एक श्रेष्ठ शासक दिखाने की कोशिश की गई है। 

स्थापत्य कला: 

"मिर्जा ग्यास बेग" जो नूरजहाँँ के पिता थे, उन्हें स्थापत्य कला में विशेषज्ञ माना जाता था। इस कारण जहांगीर ने उन्हें "इत्माद-उद-दौला" की उपाधि से नवाजा था। इसके पश्चात् जब मिर्जा ग्यास बेग की मृत्यु हुई थी,तब उनकी पुत्री नूरजहाँँ ने उनका मकबरा आगरा में बनवाया था। जो भारत का पहला पूर्णत: सफेद संगमरमर से बना मकबरा था, जिसे नूरजहाँँ ने बनवाया था। 

इस मकबरें को बनाने में "पित्रदुरा पद्धति" का प्रयोग किया गया था। पित्रदुरा पद्धति से तात्पर्य मकबरें की नकाशी से है। जिसमें रंग-बिरंगे पत्थरों तथा जरी के द्वारा महल की दीवारों एवं स्तम्भों पर नकाशी की जाती थी।    

साहित्य कला: 

जहांगीर अपने पिता अकबर की तरह अनपढ़ नहीं था, बल्कि वह बहुत ही पढ़ा-लिखा तथा उच्च कोटी का लेखक भी था, जिसने अपनी आत्मकथा "तुजुक-ए-जहांगिरी" स्वयं लिखी थी। यह आत्मकथा "फारसी भाषा" में लिखी गई थी, जिसमें जहांगीर की मृत्यु के बाद की घटनाओं को "मोहम्मद हादी" द्वारा पूरा किया गया था।

सैन्य सुधार: 

जहांगीर ने अपने शासनकाल के दौरान दो प्रकार की सैन्य व्यवस्थाएँँ की थी, जिसमें एक का नाम "दो अस्पा" तथा  दूसरी का नाम "सिंह अस्पा" था। जिस प्रकार अकबर ने मनसबदारी व्यवस्था के माध्यम से अपने सूबेदारों को उनकी योग्यता के अनुसार पद दिए थे और उन्हें पद के अनुसार घोड़े और सेना रखने का अधिकार था। 

जहांगीर ने उसी मनसब व्यवस्था में सुधार कर दिया और मानों पहले अगर किसी सूबेदार के पास 1000 सैनिक और 400 घोड़े थे तो अब जहांगीर ने उस संख्या को दोगुना कर दिया और इसी व्यवस्था को "दो अस्पा" कहा गया। वहीं अगर इसी संख्या को तीन गुना कर दिया जाता था तो उसे "सिंह अस्पा" कहा जाता था।


Post a Comment

0 Comments