चित्रकला का स्वर्ण युग कहे जाने वाले शासनकाल के शासक जहांगीर का इतिहास ...!!

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जहांगीर History in hindi:

जीवन परिचय : 

शासक - जहाँँगीर (सलीम)
जन्म - 30 अगस्त, 1569 ई.
बचपन का नाम - सलीम
पूरा नाम - नुरूद्दीन मुहम्मद जहांगीर बादशाह गाजी
पिता - अकबर
माता - हरका बाई (जोधा बाई)
राज्याभिषेक - 3 नवम्बर, 1605 ई.
शासनकाल - 1605 - 1627 ई. तक
मृत्यु - 1627 ई.

आत्मकथा -

"तुजुक-ए-जहांगिरी", जिसे स्वयं "जहांगीर" ने ही लिखा है और उसकी मृत्यु के बाद इसे "मोहम्मद हादी" द्वारा पूरा किया गया था।

प्रेमिका - अनारकली

जहांगीर की पत्नियाँँ और उनके पुत्र - 

  • मानबाई, पुत्र - खुसरों
  • जगतगोसाई, पुत्र - खुर्रम (शाहजहाँँ)
  • रूकसाना बानो, पुत्र - शहरयार
  • सलमा बानो, पुत्र - परवेज
  • नुरजहाँँ, पुत्री - लाडली बेगम



उपाधि - 

जहांगीर ने जब अपना राज्याभिषेक करवाया था तब उसने एक उपाधि "नुरूद्दीन मुहम्मद जहांगीर बादशाह गाजी" धारण की थी।

जहांगीर का  मकबरा - 

जहांगीर का मकबरा लाहौर में शाहदरा नगर के निकट स्थित है, जिसे जहांगीर की मृत्यु के 10 वर्ष बाद उसके पुत्र शाहजहां ने बनवाया था।

अनारकली का मकबरा - 

1615 ई. में अनारकली का मकबरा जहांगीर ने भारत से बाहर लाहौर में बनवाया था, जिस पर उसने दो तारीख अंकित करवाई थी। जिसमें से पहली तारीख 1599 ई. है जो उसकी मृत्यु की तारीख है और दूसरी तारीख 1615 ई. है जो उसके मकबरे के बनने की तारीख है। 

इसके अलावा जहांगीर ने कहा था कि अगर मुझे एक दिन की मौहलत मिल जाती अनारकली से मिलने की तो मैं कयामत के दिन तक अल्लाह का शुक्रगुजार होता।

सोने की जंजीर - 

जहांगीर ने अपने आपको एक न्यायप्रिय शासक बताने के लिए अपने दरबार के बाहर 60 घंटी वाली साने की एक जंजीर लगवाई थी। उसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति अगर उसे लगता है, कि उसके साथ अन्याय हुआ है और उसे न्याय की जरूरत है तो वह राजा के दरबार में आकर उस घंटी को बजा सकता था। जिससे कि उसे सही माइने में न्याय मिल सके। 

विजय अभियान :

दक्षिण विजय - 

जहांगीर ने अपने शासनकाल में दक्षिण भारत के सबसे शक्तिशाली राज्य अहमदनगर को जितने के लिए एक विजय अभियान चलाया था। उस समय अहमदनगर काफी शक्तिशाली राज्य था, जिसने मुगलों द्वारा भेजे गए कई सैन्य अभियानों को असफल किया था। इसलिए जहांगीर ने अहमदनगर पर विजयी प्राप्त करने के लिए उसके दूसरे पुत्र खुर्रम (शाहजहां) को भेजा था। 

यह युद्ध अहमदनगर के शासक "मलिक अम्बर" और खुर्रम के बीच लड़ा गया था। जिसमें खुर्रम ने मलिक अम्बर को पराजित कर दिया था और अहमदनगर को अपने साम्राज्य में मिला लिया था। अहमदनगर को जीतने की खुशी में शाहजहां ने खुर्रम को "शाहजहां" की उपाधि दी थी।

मेवाड़ संधि : 

आप सभी यह जानते होंगे कि मेवाड़ को अकबर भी अपने अधीन नहीं कर पाया था। मेवाड़ से उसका संघर्ष जरूर हुआ था, परन्तु वह पूरे मेवाड़ पर अपना अधिकार नहीं कर पाया था। सिर्फ वह चित्तौड़ के क्षेत्र तक ही कब्जा कर पाया था, बाकि के क्षेत्रों को महाराणा प्रताप ने पुन: युद्ध कर जीत लिया था। 

महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अमरसिंह मेवाड़ का शासक बनता है। चूँकि जहांगीर जानता था कि मेवाड़ एक शक्तिशाली राज्य है और उसे जीतना जरूरी है। इसलिए वह शुरूआती दौर से ही मेवाड़ पर विजय प्राप्त करने के लिए सैन्य अभियान भेजना शुरू कर देता है, लेकिन अमरसिंह भी अपने पिता की तरह ही उनकी अधीनता स्वीकार नहीं करता है और उनसे युद्ध कर उनके हर सैन्य अभियान को असफल करता रहता है।

1613 ई. में जहांगीर पुन: एक सैन्य अभियान अपने दूसरे पुत्र खुर्रम(शाहजहां) के नेतृत्व में भेजता है। खुर्रम वहाँँ पर जाकर सीधे तौर पर युद्ध नहीं करता है और वह मेवाड़ क्षेत्र के किसानों की फसलों को नष्ट कर देता है और भारी मात्रा में कत्ले आम मचाता है तथा कई प्रकार की यातनाए उनको देता है।

चूँकि मुगल सेना बहुत विशाल थी और मेवाड़ के पास उतनी सैना नहीं थी कि वह हर तरफ से युद्ध कर सके। परिणामस्वरूप दो वर्ष बाद 1615 ई. में अमरसिंह संधि करने को विवश हो जाता है और खुर्रम को संधि करने का प्रस्ताव भेजता है, जिसे खुर्रम स्वीकार कर लेता है तथा इसके बाद इन दोनों के बीच संधि हो जाती है। 

संधि कुछ शर्तों के माध्यम से की गई थी :

  •  पहली शर्त अमरसिंह मुगलों की अधिनता स्वीकार करेंगे, लेकिन दोनों के बीच विवाह का सम्बन्ध नहीं होगा।
  • दूसरी शर्त  के मुताबिक चित्तोड़ का किला पुन: अमरसिंह को दे दिया जाएगा।
  • तीसरी शर्त के मुताबिक अमरसिंह के किसी खास व्यक्ति को मुगल दरबार में रहना था, इसलिए वह अपने पुत्र करणसिंह को वहाँँ पर रहने के लिए भेज देता है।

इस प्रकार एक सम्मानजनक संधि के साथ मेवाड़ का विलय भी मुगल साम्राज्य में हो जाता है।

जहांगीर के काल के प्रमुख तीन विद्रोह :

खुसरो का विद्रोह 1606 ई. :

जहांगीर का राज्याभिषेक 1605 ई. में लगभग 35-36 वर्ष की उम्र में हुआ था। जिसे देख उसका बड़ा़ पुत्र खुसरों ने सोचा कि अगर पिताजी 10-20 वर्ष भी शासन करते हैं, तब तक तो मेरी उम्र 40-45 वर्ष हो जाएगी और ऐसे में मेरे शासक बनने के दिन तो ऐसे ही निकल जाएंगे। इसलिए वह जहांगीर के शासक बनने के एक साल बाद ही 1606 ई. में विद्रोह कर देता है, लेकिन जहांगीर द्वारा इस विद्रोह को दबा दिया जाता है और खुसरों को बंदी बना लिया जाता है। 

किन्तु खुसरों 1 साल के अन्दर ही जहांगीर की केद से बहार निकलने में कामयाब हो जाता है और वह भागकर पांचवे शिख गुरू अर्जुन देव के पास पहुँचता है तथा उनसे आर्शीवाद लेता है और पुन: युद्ध की रणनीति तैयार करने में लग जाता है। 

जिसके पश्चात् "भैरावल" के मैदान में फिर से एक बार जहांगीर और खुसरों की सेना के बीच युद्ध होता है, जिसमें खुसरों एक बार फिर युद्ध हार जाता है और उसे बंदी बना लिया जाता है। इस बार वह भागने में सफल नहीं हो पाता है तथा लम्बे समय तक कैद में रहने के बाद 1621 ई. में खुसरों को उसके छोटे भाई खुर्रम(जहांगीर) द्वारा कैद में ही हत्या करवा दी जाती है। 

खुर्रम(शाहजहां) का विद्रोह 1623 ई. :

गुट में फुट पड़ने के बाद खुर्रम (शाहजहां) अपने ससुर आसफ खांं के कहने पर 1623 ई. में जहांगीर के खिलाफ विद्रोह कर देता है, लेकिन जहांगीर का सेनापति महावत खां इस विद्रोह को दबा देता है।

महावत खाँँ का विद्रोह 1626 ई. : 

1626 ई. में सेनापति महावत खाँँ  भी जहांगीर पर नूरजहाँँ के प्रभाव को देकर विद्रोह कर देता है, परन्तु इस विद्रोह को भी जहांगीर द्वारा दबा दिया है। इसके पश्चात् खुर्रम, जहांगीर से माफी मांग लेता है और पुन: दरबार में आ जाता है। 

जिसके बाद 1627 ई. वह दिन आता है, जब जहांगीर की मृत्यु हो जाती है और खुर्रम(शाहजहाँ) शासक बन जाता है। 

नूरजहां से विवाह  1611 ई. में - 

नूरजहां का वास्तविक नाम "मेहरूनिसा" था जो अलीकुली बेग की विधवा थी। इनका विवाह अलीकुली बेग से 1594 ई. में हुआ था, जिससे नूरजहां को एक बेटी "लाडली बेगम" प्राप्त थी। अलीकुली बेग, जहांगीर के दरबार में रहता था एक दिन उसने शेर को मार दिया था। 

उसकी इस बहादुरी को देख जहांगीर ने उसे "शेर अफगान" की उपाधि दी थी। अलीकुली बेग की मृत्यु के बाद उसकी विधवा नूरजहां की खूबसूरती देखकर जहांगीर उससे 1611 ई. में विवाह कर लेता है। 

शादी करने के पश्चात् जहांगीर उसे दो उपाधि देता है -

  • पहली "नूर महल" की उपाधि देता है, जिसका अर्थ होता है : महल की रोशनी
  • दूसरी "नूरजहाँ" जिसका अर्थ होता है : पूरे जहान की रोशनी

नूरजहां से विवाह होने के बाद जहांगीर स्वतंत्र रूप से शासन नहीं कर पाता है, क्योंकि विवाह के बाद मुगल दरबार में दो गुट बंट जाते हैं, जिसमें पहला गुट नूरजहां का जिसमें उसके पिता "मिर्जा ग्यास बेग", माता असमत बेगम, भाई आसफ खाँँ और खुर्रम भी इसी गुट में शामिल हो जाता है।

वहीं दूसरी तरफ जहांगीर के दरबारी लोगों का गुट। कुछ समय पश्चात् नूरजहां के गुट में फुट पड़ जाती है, क्योंकि नूरजहां के भाई आसफ खाँँ अपनी पुत्री का विवाह खुर्रम से करवा देता है। वहीं नूरजहां अपनी पुत्री का विवाह जहांगीर के तीसरे पुत्र शहरयार से करवा देती है। 

जिस कारण वह चाहती है कि मेरा दामाद शहरयार जहांगीर का उत्तराधिकारी बने, लेकिन आसफ खाँँ चाहता है कि उसका दामाद खुर्रम अगला उत्तराधिकारी बने। इसलिए इस गुट में फुट पड़ जाती है।

जहांगीर के समय आए प्रमुख विदेशी यात्री :

  • जहांगीर के समय दो "ब्रिटिश" विदेशी यात्री भारत आए थे, उसमें से पहला यात्री "केप्टेन हॉकिन्स" था जो 1608 ई. में जहांगीर के दरबार में ब्रिटिश शासक "जेम्स प्रथम" का राजदूत बनकर भारत आया था और 1611 ई. तक जहांगीर के दरबार में रहा था।
  • यहाँँ पर जहांगीर हॉकिन्स के हाव-भाव से इतना प्रभावित होता है कि वह उसे 400 का मनसब और साथ ही "इंग्लिस खाँँ" की उपाधि भी देता है।

  • दूसरा ब्रिटिश विदेशी यात्री "सर टॉमस रॉ" 1615 ई. में भारत आया था तथा अपने साथ "पादरी एडवर्ड टेरी" को भी अपने साथ लाया था। टॉमस रॉ की मुलाकात जहांगीर से अजमेर में हुई थी, जिसके वह जहांगीर के दरबार में 1619 ई. तक रहा था। इस बीच जहांगीर ने उसकी कई मांगों को स्वीकार किया था और उन्हें मंजूरी भी दी थी।
 

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