विजयनगर साम्राज्य: कृष्णदेवराय के अष्टदिग्गज एवं उनकी रचनाएँ, प्रशासन, सैन्य, नायंगर एवं आयंगर व्यवस्था

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प्रशासन व्यवस्था :

विजयनगर साम्राज्य का केन्द्रीय प्रशासन तीन भागों में बंटा हुआ था -

पहला - राजपरिषद् : यह राजा द्वारा गठित एक सलाहाकार समिति होती थी, जिसमें विद्वान व्यक्ति शामिल होते थे। जो किसी विषय पर अपनी-अपनी बुद्धी के अनुसार अपने मत देते थे। इसके अलावा वे नए युवराज का राज्याभिषेक भी करवाते थे। 

दूसरा - मंत्रीपरिषद् : इस परिषद् के प्रमुख अधिकारी को "प्रधानी या महाप्रधानी" कहा जाता था तथा जो बैठक की अध्यक्षता करवाता था उस अध्यक्ष को "सभानायक" कहा जाता था।

तीसरा - सामान्य परिषद् : इसका सर्वप्रमुख कार्य राजा को परामर्श देना और राज्य के अन्य कार्यों को देखना होता था। इन परामर्शकर्ताओं के परामर्श को मानना राजा के ऊपर निर्भर करता था, वह अपनी इच्छानुसार इनके परामर्श को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता था।

Vijaynagar Samrajya History in hindi
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नायंगर या आयंगर व्यवस्था:

नायंगर - इस व्यवस्था के अनुसार सैनिकों को यह अधिकार दिया जाता था कि वह अपना वेतन पैसे के रूप में लेना चाहते हैं या भूमि के रूप में। अगर वह सैनिक अपना वेतन भूमि के रूप में लेना चाहता है तो उस भूमि को "अमरम" तथा भूमि प्राप्तकर्ता को "अमरनायक" कहा जाता था।

आयंगर - इस व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक गांव में एक स्वतंत्र इकाई के रूप में 12 शासकीय अधिकारियों की एक समूह के रूप में नियुक्ति की जाती थी, जिसमें सेनतेओवा, बंगार निरिक्षक, निरतिक्कर और महानायकाचार्य आदि प्रमुख पद होते थे। 

इनका कार्य ग्राम स्तर पर प्रशासन की देखरेख एवं लोगों को सही न्याय देना होता था। इन सभी अधिकारियों को वेतन नहीं दिया जाता था, बल्कि वेतन के रूप में भूमि प्रदान की जाती थी, जिसे आयंगर कहा जाता था। यह भूमि कर मुक्त होती थी, जिससे कोई भी कर नहीं वसूल किया जाता था। 

साथ ही यह पद वंशानुगत होते थे, जिसमें पिता की मृत्यु के बाद उसका पुत्र उस पद पर कार्य करता था।

कृष्णदेवराय के अष्टदिग्गज एवं उनकी रचनाएँँ:

1. पिंगली सूरन - राघव पांडवार्य

2. पं. तेनाली रामकृष्ण - पाडुरंग महात्मय

3. आय्यलराजु रामभध्रडु - शक्लकथा सारसंगृह

4. मादय्यगारी मल्लन - राजशेखर चरित

5. आल्लसानि पेदन्न - मनुचरित्र

6. नन्दी तिम्मन - परिजात हरण

7. रामराज भुषणुडु - भट्टमूर्ति

8. धूर्जटि -  कालहस्ति महात्मय

मुद्रा व्यवस्था:

विजयनगर साम्राज्य में दो प्रकार के सिक्कों का प्रचलन था, सोने के सिक्के और चांदी के सिक्के। जिसमें स्वर्ण धातु के सिक्कों को "वराह"(हूण, परदौस, पगोड़ा) कहा जाता था। इन सिक्कों का सर्वाधिक प्रचलन था। सोने के छोटे सिक्कों को "प्रताप या फणम" कहा जाता था तथा चांदी के छोटे सिक्कों को "तार" कहा जाता था।

शाही मुद्रा रखने वाले अधिकारी को "मुद्राकर्ता" तथा उसका लेखा झोखा रखने वाले कर्मचारी को "कर्णिकम" कहा जाता था। 

 संगम वंश के सिक्कों पर - हनुमान एवं गरूड़ देवता के चिन्ह अकिंत थे।

तुलुव वंश के सिक्कों पर - बैल, गरूड़ और लक्ष्मी नारायण आदि देवताओं के चिन्ह अकिंत थे।

अरावीड़ वंश के सिक्कों पर - वैष्णव अनुयाईयों की आकृतियाँँ अंकित की गई थी। 

भूमि विभाजन :

विजयनगर साम्राज्य में भूमि को मुख्यत: चार भागों में बांटा गया था- 

1. भण्डारवाद - यह भूमि राजा के अधीन होती थी इस पर किसी भी अन्य आम व्यक्ति का अधिकार नहीं होता था। सीधे तौर पर राज्य के नियतंत्र में होती थी।

2. ब्रह्मोदय - यह भूमि ब्राह्मणों को धार्मिक रूप से दान में दी जाती थी।

3. अमरम - यह भूूूमि सैनिकों को वेतन के रूप में दी जाती थी। 

4. कुट्टगि - यह भूमि प्रमुख रूप से किसानों को दी जाती थी, जिसमें किसानों से एक निश्चित कर देने के बदले में दी जाती थी। अगर कोई किसान कर देने में असमर्थ रहता था तो उससे वह जमीन और पट्टा वापस ले लिया जाता था।

प्रमुख प्रथाएँँ :

दास प्रथा - विजयनगर साम्राज्य में दास प्रथा का प्रचलन था जिसमें पुरूष व स्त्रियों को बेचा व खरीदा जाता था। 

बाल-विवाह - विजयनगर साम्राज्य में बाल-विवाह का प्रचलन भी अधिक देखने को मिलता था, जिसमें बच्चों का विवाह कम उम्र में ही कर दिया जाता था।

सत्ती प्रथा - सत्ती प्रथा भी इस काल में अपने चरम पर थी।, परन्तु इन तीनों प्रथाओं में किसी पुरूष या महिला के साथ किसी प्रकार की जोर जबरदस्ती नहीं की जाती थी। यह सब उनकी इच्छा पर निर्भर करता था। 

यदि कोई महिला अपने पति की मृत्यु के बाद सति होकर मरना नहीं चाहती है तो उसके साथ कोई जबरदस्ती नहीं की जाती थी। नहीं ही किसी महिला या पुरूष को उसकी इच्छा के अनुसार खरीदा या बेचा जाता था।

विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य कला :

"द्रविड़ शैली" के आधार पर विजयनगर साम्राज्य के स्थापत्य कला की शुरूआत होती। इसी कला का उपयोग करके कृष्णदेवराय ने हजारा मंदिर, विट्ठलस्वामी मंदिर, चिदंबरम मंदिर, कांचीपुरम में स्थित वरदराज मंदिर तथा एकम्बरनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। 

इसके अलावा विजयनगर साम्राज्य की अंतिम वास्तुकला शैली को "मदुरा शैली" के नाम से जाना जाता था।

संगीत ग्रंथ :

"वीणा" विजयनगर साम्राज्य का सर्वाधिक प्रसिद्ध और लोकप्रिय संगीत वाद्ययंत्र था। यहाँँ पर कुछ संगीतज्ञों ने अपने संगीत ग्रंथ लिखे हैं -

रामराय के संरक्षण में "राम अमात्य" ने "स्वरमेलकलानिधि" नामक ग्रंथ की रचना की थी।

"संत विद्यारण्य" ने "संगीतसार" संगीत ग्रंथ की रचना की थी।

"कृष्णदेवराय" के दरबारी संगीतज्ञ "कवि लक्ष्मीनारायण" ने "सूर्योदय" नामक संगीत ग्रंथ की रचना की थी।  

इसके अलावा विजयनगर साम्राज्य में "नृत्य और संगीत" को मिलाकर एक शैली का निर्माण किया गया था, जिसे "याक्षिणी शैली" के नाम से जाना जाता था। 

प्रांतीय प्रशासन:

विजयनगर साम्राज्य का प्रान्तिय प्रशासन मंडलम, कोट्टम या वलनाड़, नाडु, मेलग्राम तथा उर या ग्राम में बंटा हुआ था, जिनमें -

मंडलम का अर्थ - राज्य 

कोट्टम या वलनाडू का अर्थ - जिला

नाडु का अर्थ - तहसील

मेलग्राम  - 20-25 गांवों के समूह को कहा जाता था।

उर या ग्राम शब्द का अर्थ - सामान्यतया: गांव या कस्बे से लगाया जाता था। 

सैन्य व्यवस्था :

विजयनगर साम्राज्य के पास एक मजबूत और विशाल सैना थी, जिसमें सैन्य विभाग को "कदाचार" कहा जाता था। 

न्याय व्यवस्था :

विजयनगर साम्राज्य में न्याय का सर्वोच्च अधिकारी राजा ही होता था, जहाँँ पर न्याय हिन्दू ग्रंथों के अनुसार ही किया जाता था। किसी व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता था, चाहे वह बड़ा हो या छोटा सभी को एक सम्मान ही न्याय मिलता था।   

राजस्व व्यवस्था :

विजयनगर साम्राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार भूमि से प्राप्त होनी वाली उपज पर ही आधारित था, जिसमें वे मुख्य रूप से चावल की खेती करते थे। भूमि से लिए गए "कर" को "शिष्ट" तथा वसूली विभाग को "आठ्वन"  कहा जाता था।

इसके अलावा "काली मिर्च और अदरक" का विश्व के विभिन्न भागों में निर्यात करके भी आयु प्राप्त की जाती थी। विदेशों में निर्यात करने के लिए विजयनगर के सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह "कालीकट" का प्रयोग किया जाता था। कालीकट वर्तमान में केरल में स्थित है, जिसे कुजीकोट के नाम से जाना जाता है। 

अन्य महत्वपूर्ण बिन्दू :

1. चित्रकला : विजयनगर साम्राज्य की चित्रकला को "लिपाक्षी कला" के नाम से जाना जाता था।

2. शिल्पकार या दस्तकारों को "वीर पंचाल" कहा जाता था।

3. धर्म : विजयनगर साम्राज्य के शासक प्रमुख रूप से "शैव धर्म या वैष्णव धर्म" के अनुयायी थे जो मुख्य रूप से "महानवमी" का त्यौहार मनाते थे।

4. विजयनगर साम्राज्य में राजा को "राय" कहा जाता था।

5. दक्कन का युद्ध स्थल किसे कहा जाता था?

- रायचूर दोआब को जो कृष्णा नदी के तट पर स्थित था और विजयनगर साम्राज्य और बहमनी साम्राज्य के बीच युद्ध का मुख्य कारण था। क्योंकि यह अत्यधिक उपाजाऊ क्षेत्र माना जाता था। 

6. तुंगभद्रा नदी के तट पर बने बांध से निकलने वाली नहर का नाम क्या था?

- हिरिया 

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