कहानी एक ब्राह्मण शासक की, जिसने भारत को युनानियों की गुलामी से बचाया और पुन: सनातन धर्म को अस्तित्व में लाए..?

Table of Contant:


पं. पुष्यमित्र शुंग History in hindi:

सामान्य जानकारी:

शासक (Ruler) -    पुष्यमित्र शुंग
उत्तराधिकारी (Successor) - अग्निमित्र
वंश (Vansh) -       शुंग वंश 
शासनकाल (Reign) -      185 ई. से 149 ई. तक (36 वर्ष)
राजधानी (Capital) -      पाटलीपुत्र 
मृत्यु (Death) -              149 ई.
उपनाम (Called Any Name) -  सेनानी
राज्य (State) -    मगध

मौर्य साम्राज्‍य का अन्‍त - (Mory Samrajy Ka end)

मौर्य साम्राज्‍य का अंत कैसे हुआ, उससे पहले थोड़ा सा उसके बारे में जान लेते हैं। तो आईये शुरू करते हैं।

मौर्य वंश की स्‍थापना महान सम्राट चन्‍द्रगुप्‍त मौर्य ने अपने गुरू आचार्य चाणक्‍य की सहायता से की थी। जिन्‍होंने हमेशा चन्‍द्रगुप्‍त मौर्य को हिन्‍दू धर्म को बढ़ावा देने और उसका विस्‍तार करने की प्रेरणा दी थी। चन्‍द्रगुप्‍त मौर्य ने आचार्य चाणक्‍य और अपनी विशाल सेना के दम पर भारत के अधिकांश हिस्‍से पर अपना अधिकार कर लिया था। 


Pushymitra Sung History in hindi
P.Pushymitra sung history in hindi

जिनकी मृत्‍यु के बाद उनके पोते चक्रवृती सम्राट अशोक ने भी अपने पूर्वजो की तरह ही अपने शौर्य और पराक्रम के दम पर अपने साम्राज्‍य का विस्‍तार करने के लिए कई हिंसात्‍मक युद्ध लड़े और अपने साम्राज्‍य का विस्‍तार किया।

जिस राज्‍य को उसके पूर्वज नहीं जीत पाए थे, उस कलिंग राज्‍य को भी उसने जीत लिया था और अपने राज्‍य मगध को एक महान साम्राज्‍य बना दिया था, किन्‍तु कलिंग के युद्ध में हुए भारी नरसंहार को देख कर, जिसमें बेकसुर बच्‍चे, बूढ़े, और महिलाओं के अनगिनत कटे शवों को देखकर अशोक का मन विचलित हो उठा और वे मोहभंग हो गए। 

उसके बाद उन्‍होंने अहिंसा का रास्‍ता अपना लिया तथा बौद्ध भिक्षु बन गए। जिसके बाद उन्‍होंने वैदिक धर्म को त्‍याग दिया और पूर्णतया बौद्ध धर्म अपना लिया और बौद्ध धर्म का प्रचार करने में लग गए। जिसके बाद मगध की सम्‍पूर्ण जनता ने भी बौद्ध धर्म अपना लिया ।

अशोक की मृत्‍यु के बाद अब मौर्य साम्राज्‍य बिखरने की स्‍थिति में आ गया था, क्‍योंकि मौर्य साम्राज्‍य के अंतिम शासक राजा बृहद्रथ के समय में अनेक छोटे-छोटे राज्‍यों ने विद्रोह कर अपने आपको स्‍वतंत्र घोषित कर लिया था और इसके अलावा भारत पर यवनों के भी आक्रमण हो रहे थे, जिसके कारण मगध साम्राज्‍य बहुत कमजोर हो चुका था।

अब मगध साम्राज्‍य को जरूरत थी तो एक ऐसे महान यौद्धा की जो अपनी मातृभूमि को विदेशी आक्रमकताओं से बचा सके और फिर से मगध साम्राज्‍य का विस्‍तार कर सके और अपने विलुप्‍त हुए हिन्‍दू धर्म की वैदिक सभ्‍यता को पुन: स्‍थापित कर सके।

क्‍योंकि जिस मातृभूमि ने चन्‍द्रगुप्‍त मौर्य, राजा पोरस और चक्रवृति सम्राट अशोक जैसे वीरों को जन्‍म दिया, क्‍या उसकी सहायता के लिए अब कोई वीर नहीं बचा है। ऐसे में पं. पुष्‍यमित्र शुंग एक पराक्रमी यौद्धा बन उभरकर सामने आते हैं। आईये अब उनके बारे में जानते हैं -

पं. पुष्‍यमित्र शुंग का प्रारम्भिक संघर्ष:

पं. पुष्‍यमित्र शुंग जाति से एक ब्राहृमण थे, परन्‍तु अपने कर्म से एक "क्षत्रिय" थे। जो राजा बृहद्रथ के दरबार में सेनापति के पद पर कार्यरत् थे। चूँकि होता यह है कि एक दिन जब राजा बृहदरथ अपने राज्‍य की सीमाओं का भ्रमण कर रहे थे।

तभी अचानक उनके सामने एक शेर आ जाता है जो उन पर हमला करने वाला ही होता है कि शेर के सामने अचानक एक लम्‍बे-चौड़े कद का व्‍यक्‍ति आ जाता है और वह शेर को बिना हथियार के ही कुछ देर में मार गिराता है। वह व्‍यक्‍ति और कोई नहीं बल्‍कि स्‍वयं पुष्‍यमित्र शुंग थे। 

उनकी इसी बहादुरी को देखते हुए मगध के राजा बृहद्रथ उन्‍हें अपना सेनापति नियुक्‍त कर देते हैं।सेनापति नियुक्‍त होने के बाद पुष्‍यमित्र शुंग देखते हैं कि राजा के बौद्ध धर्म अपनाने से राज्‍य में न तो जनता खुश है और न ही सेना, क्‍योंकि राजा के बौद्ध धर्म अपनाने से राज्‍य में कोई भी व्‍यक्‍ति सेना की इज्‍जत नहीं करता था और न ही उनका सम्‍मान करते थे। 

इसलिए सैनिक भी बहुत परेशान थे। दूसरी तरफ यवनों ने भी भारत पर आक्रमण करके सिंधु नदी के तट तक अपना अधिकार कर लिया था। इसके बाद उनकी नजर मौर्य वंश के निर्बल उत्‍तराधिकारियों के कारण कमज़ोर पड़ चुके मगध साम्राज्‍य की अपार सम्‍पत्‍ति पर थी। 

जिसको लुटने के लिए यवनों ने भारत पर आक्रमण करने की योजना बनाई, जिसमें उन्‍होंने सबसे पहले राजा की सैनिक व्‍यवस्‍था को जानने के लिए बौद्ध धर्म के धर्म गुरूओं से संपर्क साधा और उनसे कहा कि अगर आप हमारे सैनिकों को अपने मठों में पनाह देंगे तो हम भी बौद्ध धर्म स्‍वीकार कर लेंगे। 

जिसके बाद बौद्ध गुरूओं ने राष्‍ट्रद्रोह किया और उन्‍हें पनाह देने के लिए राजी हो गए। जिसके बाद यवन सैनिक बौद्ध भिक्षुओं का रूप धारण कर बौद्ध मठों में आकर रहने लगते हैं और अपने साथ हथियार आदि छुपाकर रखने लगते हैं और साथ ही धीरे-धीरे बौद्ध भिक्षु के रूप में राजा के दरबार में जाकर सैनिकों की तैयारियों का आंकलन भी करते हैं।

दूसरी तरफ सम्राट बृहद्रथ के वीर सेनापति पुष्‍यमित्र शुंग को जब इस बात का पता चलता है कि विदेशी यवनों ने भारत पर विजयी प्राप्‍त करने के लिए बौद्ध मठों के धर्म गुरूओं को अपने साथ मिला लिया है।  

यह बात जाकर जब पुष्‍यमित्र शुंग ने राजा को बताई और बौद्ध धर्म के मठों की तलाशी लेने की आज्ञा मांगी, लेकिन राजा तो बौद्ध धर्म के अनुयायी थे और पुर्णत: अहिंसा के पुजारी थे इसलिए उन्‍होंने तलाशी लेने से इन्‍कार कर दिया।

यह बात सेनापति पुष्‍यमित्र शुंग को अच्‍छी नहीं लगी और राष्‍ट्र भक्‍ति की भावना से ओत-प्रोत पुष्‍यमित्र शुंगसम्राट की आज्ञा का उल्‍लघंन करके बौद्ध मठों की तलासी लेने पहुँच गए और वहाँ जाकर उन्‍होंने बौद्ध मठों की तलाशी लेनी शुरू कर दी।

जिसमें उन्‍हें 300 यवन सैनिक और उनके साथ छिपाए हुए हथियार प्राप्‍त है। जिसके बाद पुष्‍यमित्र शुंग ने सैनिकों को पकड़कर उनके सरों को धड़ से अलग कर दिया और बौद्ध भिक्षु जिन्‍होंने राष्‍ट्रद्रोह किया थाउन्‍हें बंदी बनाकर अपने साथ मगध ले आते हैं और राजा के सामने पेश कर दिया।

जिसके बाद राजा ने राष्‍ट्रद्रोह करने वाले बौद्ध गुरूओं को सजा देने के बजाए उल्‍टा सेनापति पुष्‍यमित्र शुंग को चिल्‍लाते हुए कहा कि तुम किसकी अनुमति से इन्‍हें यहाँ पकड़कर लाए हो। बेदखल हो जाओं मेरे राज्‍य से मुझे तुम जैसे सेनापति की जरूरत नहीं है।

इसके बाद पुष्‍यमित्र शुंग गुस्‍से में आकर कहते हैं कि महाराज ये सेना मेरे कहने पर चलती है आपके नहीं और मेरी ही बात मानती है। इतना कहकर वे वहाँ से अपनी सेना लेकर चले जाते हैं और यवनों से युद्ध लड़ने की तैयार में लग जाते हैं। कुछ दिन बाद जब पुष्‍यमित्र शुंग युद्ध की तैयारी कर रहे थे।

तभी राजा बृहद्रथ अपनी सेना के साथ वहाँ पर आते हैं और दोनों के बीच एक लम्‍बी बहस होना शुरू हो जाती है, जिसके बाद बहस इतनी बढ़ जाती है कि राजा बृहद्रथ, सेनापति पुष्‍यमित्र शुंग पर तलवार चला देते हैं, जिसके जवाब में पुष्‍यमित्र शुंग राजा बृहद्रथ को मौत के घाट उतार देते हैं और इस प्रकार मौर्य वंश का अंत हो जाता है और यहाँ से शुंग वंश का स्‍थापना हो जाती है।

प्रशासन व्यवस्था:

पं. पुष्‍यमित्र शुंग ने राजा बनने के पश्चात् अपने साम्राज्य को मजबूती प्रदान करने के लिए सबसे पहले राज्‍य की प्रबंध व्‍यवस्‍था को सुधारा और नई सेनाओं को भर्ती करना शुरू कर दिया और अपने साम्राज्‍य का विस्‍तार करने के लिए एक विशाल सेना का निर्माण किया। 

जिसके दम पर उन्‍होंने जो राज्‍य मगध साम्राज्‍य की कमजोरी का फायदा उठाकर स्‍वतंत्र हो गए थेउन पर आक्रमण कर उन्‍हें पुन: अपने साम्राज्य में मिला लिया।

जिनमें विदर्भकलिंग और स्‍यालकोट आदि राज्‍य शामिल थेलेकिन विदर्भ के राजा यज्ञसेन ने जब आत्‍मसमर्पण करने से मना कर दिया तो विदर्भ के राजा यज्ञसेन और राजा पुष्‍यमित्र के पुत्र अग्‍निमित्र के बीच युद्ध हुआजिसमें अग्‍निमित्रराजा यज्ञसेन को युद्ध में हरा देते हैं और विदर्भ राज्‍य को अपने साम्राज्‍य में मिला लेते हैं। 

पुष्यमित्र शुंग ने अपने साम्राज्य की सीमाओं को सुरक्षित करने के पश्चात् यवनों पर इतने आक्रमण किए कि उनको भारत छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ा था।

पुष्‍यमित्र शुंग को परशुराम का अवतार क्यों कहा जाता है:

राजा बृहद्रथ का वध करने के पश्‍चात् पुष्‍यमित्र शुंग स्‍वयं राजा बन जाते हैं, जिन्‍हें वहाँ की सेना और जनता भी खुशी से अपना राजा स्‍वीकार कर लेती हैं, क्‍योंकि वे पहले से ही बौद्ध धर्म से परेशान थे।

उन पर जबरदस्‍ती राजा द्वारा बौद्ध धर्म थोपा जा रहा था, जिसके कारण वे अपने धर्म के अनुरूप त्‍यौहार नहीं मना सकते थे और न ही अपनी इच्छा अनुसार पहनावा पहन सकते थे, उन्‍हें मजबूरी में बौद्ध भिक्षु बन कर रहना पड़ता था और उनका पहनावा पहनना पड़ता था। जिससे वहाँ की जनता बहुत नाराज थी। 

परन्तु पुष्‍यमित्र शुंग ने राजा बनते ही सबसे पहले अपनी वीरता और बुद्धिमता के दम पर बौद्ध भिक्षुओं के भेष में छुपे यवनों पर आक्रमण कर उन्हें देश से बाहर किया।

इसके बाद पुष्‍यमित्र शुंग ने भारत में वैदिक सभ्‍यता की इस खोई हुई पहचान को पुन: स्‍थापति करने के लिए बौद्ध धर्म का अन्‍त कर पुन: हिन्‍दू धर्म की वैदिक सभ्‍यता का प्रचार किया और जिन लोगों ने राजा बृहद्रथ के शासन के दौरान डर या मजबूरी में बौद्ध धर्म को स्‍वीकार किया था, वे भी पुन: अपनी स्‍वैच्‍छा से हिन्‍दू धर्म में लौट आए। 

पुष्‍यमित्र शुंग के बारे में कहा जाता है कि इन्‍होंने कई बौद्ध भिक्षुओं को मरवा दिया था और उनके बौद्ध मठों और स्‍पूतों को तुड़वा दिया था, जिनकों सम्राट अशोक के द्वारा बनाया गया था। 

पुष्‍यमित्र शुंग को बौद्ध कट्टर राजा भी कहा जाता था, परन्तु यह बात पूरी तरह से सत्‍य नहीं है, क्योंकि सम्राट अशोक द्वारा निर्मित स्‍पूत तो आज भी देखने को मिलते हैं।

उनका साम्राज्‍य हिमालय से नर्मदा नदी तक और सिन्‍धु नदी से पूर्वी समुन्‍द्र तट तक विस्‍तृत था। पं. पुष्‍यमित्र शुंग को राम का अवतार भी माना जाता हैक्‍योंकि इसी सरयू नदी के तट पर वाल्‍मीकि ने "रामायण" लिखी थीऔर वाल्‍मीकि की ही एक पुस्‍तक में शुंग वंश का जिक्र भी मिलता है। 

इसके अलावा पुष्‍यमित्र शुंग ने अपनी राजधानी "सांकेत" का नाम बदलकर "अयोध्‍या" भी रख दिया था। इसलिए उन्‍हें श्री राम का अवतार भी माना जाता है।

अश्र्वमेघ यज्ञ का आयोजन प्रथम:

सम्राट पं. पुष्‍यमित्र शुंग ने अपने पूरे साम्राज्य में शांति स्‍थापित करने के पश्चात् अपने दरबार में "अश्र्वमेघ यज्ञ" का आयोजन करवाया थालेकिन जब पहला यज्ञ करवाया तो सिन्‍धू नदी के तट पर यवनों ने उनके यज्ञ में छोड़े गए अश्व को पकड़ लिया था। इस कारण यह यज्ञ सम्पन्न नहीं हो पाया था। 

तब यज्ञ के घोड़े को यवनों से छुड़ाने के लिए पुष्‍यमित्र शुंग के पौत्र(पोते) "वसुमित्र" ने यवनों को युद्ध में परास्त कर उनसे अपने घोड़े को छुड़ाया था। इसके अलावा वसुमित्र यहीं नहीं रूका उसने यवनों का पीछा कर उन्‍हें सिंधु नदी के पार तक धकेल दिया था और सिंधु नदी तट तक अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्‍तार कर लिया। 

इस युद्ध में यवनों की सेना का नेतृत्‍व "डोमेट्रियस"  "मिनेंडर" दो युनानियों ने किया था । 

अश्र्वमेघ यज्ञ का अयोजन द्वितीय:

यवनों को परास्त करने के पश्चात् पुष्यमित्र शुंग ने दूसरी बार "अश्र्वमेघ यज्ञ" का आयोजन शुरू किया, परन्तु इस बार किसी भी यवन या अन्य शासक का शाहस नहीं हुआ कि वह दौबारा यज्ञ के घोड़े को रोकने का साहस करे। 

इसी प्रकार पुष्यमित्र शुंग ने भारत को पुन: एक शक्‍तिशाली और समृद्ध राष्‍ट्र बना दिया था, जो अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने के पश्चात् शक्तिहीन हो चुका था। राजा पुष्‍यमित्र शुंग ने 36 वर्ष (185-149 ई.पू.) तक शासन किया था। 

पुष्‍यमित्र शुंग की जाति - (Pushymitra Sung Ki Cast)

पुष्‍यमित्र शुंग की गोत्र के बारे में इतिहासकारों में कुछ मतभेद है -

1. पतंजली की पुस्‍तक "महाभाष्‍य" और पाणिनि के व्‍याकरण ग्रंथ "अष्‍टाध्‍यायी" के अनुसार पुष्‍यमित्र शुंग "भारद्वाज" जाति के ब्राह्मण थे और कालिदास की रचना "माल्‍विकाग्‍निमित्रम्" के अनुसार इनकी जाति "कश्‍यप्" थी।

2. किन्‍तु जे.सी. घोष के अनुसार पुष्‍यमित्र शुंग को "द्वैयमोश्‍यायन" बताया जाता है। जिन्‍हें एक द्वैत गोत्र माना जाता है। यह जाति ब्राह्मणों की एक द्वैत गोत्र मानी जाती है जिसे दो अलग-अलग जातियों के मिश्रण से बना हुआ बताया जाता है।

3. इसके बीच के शासको के बारे में ज्‍यादा पता नहीं चलता है, परन्‍तु आखरी शासक देवभूति थे - जिनका शासनकाल 83 ई.पू. से 75 ई.पू. तक था। जिसके बाद देवभूति के मंत्री वसुदेव ने उनकी हत्‍या कर दी और कण्‍व वंश की स्‍थापना कर दी जिनका शासनकाल 75 ई. पू. से 30 ई. पू. तक चला था।

शुंग वंश के शासक - (Sung Vansh Ke Rulers)

पुष्‍यमित्र शुंग - 185 ई. से 149 ई.

अग्‍निमित्र - 149 ई. से 141 ई.

वसुज्‍येष्‍ठ - 141 ई. से 131 ई.

वसुमित्र - 131 ई. से 124 ई.

अन्‍धक - 124 ई. से 122 ई.

पुलिकन्‍दक -122 ई. से 119 ई.

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2 Comments

  1. aSHOK KO JHOD SABHI rAJA MOURYABANSHI JAIN THE HINDU NAHI THE ASHOKBHUDDHISIT THASAT THA JAINO KE ITHAS KO SANGH PAIWAR JANTE HUE SMPAT KA RAHA HAICHANDER GUPAT KAT JAIN GRANTHO MAIN UPLABAD HAI

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  2. ये राइटर आर एस एस का पिट्ठू लगता है. इतिहास की माँ-बहन करने की सुपारी लेकर बैठा है. ये लोग ऐसे महापाप के फल से भी नहीं डरते.

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