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बाबर की सामान्य जानकारी:
शासक (ruler) - बाबर
पूरा नाम (full name) - जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर
जन्म (birth) - 14 फरवरी, 1483 ई. को फरगना घाटी के अन्दीझान नाम शहर में हुआ था जो वर्तमान में उज्बेकिस्तान में स्थित है।
पिता (father) - उमर शेख मिर्जा, जो फरगना घाटी के शासक थे, जो तैमूर वंश से सम्बन्ध रखते थे।
माता (mother) - कुलतुग निगार खानम, जो मंगोल वंश से संबंधित थी।
मातृभाषा (mother toungue)- चगताई या फारसी
वंश (lineage) - बाबर मंगोलिया के "बर्लास कबीले" से सम्बन्धित था।
मृत्यु (death) - 26 दिसम्बर, 1530 ई. (आगरा)
उत्तराधिकारी (successor) - हुमायूँ
शासनकाल (reign) - 1526 ई. - 1530 ई. तक
पत्नियाँ (wives) - मासूमा सुल्तान, महम सुल्तान, आयशा सुल्तान, जैनब सुल्तान, गुलरूख बेगम, दिलदार, मुबारका, बेगा बेगम।
संतान (children) - हुमायूँ, कामरान मिर्जा, अस्करी मिर्जा, हिंदल, अहमद, शाहरूख, गुलजार बेगम, गुलरंग, गुलबदन बेगम, गुलबर्ग।
बाबर का मकबरा (Tomb) -
बाबर ने अपने मरने से पहले आगरा में एक "आराम बाग" का निर्माण करवाया था। उसी "आराम बाग" में पहले बाबर के शव का दफनाया गया था, लेकिन बाबर ने अपनी आत्मकथा "बाबरी-ए-तुजुक" में यह इच्छा जाहिर की थी कि मेरी मृत्यु की पश्चात् मेरे शव को काबुल में दफनाया जाए। उसके बाद में बाबर के शव को आराम बाग से उठाकर काबुल ले जाकर वहाँ पर दफनाया गया।
बाबर को बाबर नाम किसने दिया:
बाबर को बाबर नाम किसने दिया(who gave babur the name babur) - बाबर के cousin brother मोहम्मद हैदर ने लिखा है कि बाबर के शासनकाल के दौरान जब चुगताई लोग असभ्य तथा असंस्कृत थे, तब उन्हें जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर नाम लेकर पुकारने में काफी दिक्कत होती थी, इसलिए उन्होंने, इसका नाम बाबर रख दिया।
Babur History |
पानीपत का प्रथम युद्ध (panipat first battle) -
पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल, 1526 ई. को इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध पानीपत नामक स्थान पर लड़ा गया था जो वर्तमान में भारत के राज्य हरियाणा में स्थित है। इस युद्ध में बाबर की सेना में लगभग 15000 सैनिक थे जबकि 20-25 विशाल तोपें थी, जबकि इ्ब्राहिम लोदी की सेना में लगभग एक लाख 30 हजार सैनिक थे, जिसमें शिविर अनुयायियों की संख्या भी शामिल थी।
अगर इनको अलग कर दिया जाए तो लडाकू सैनिकों की संख्या 1 लाख 10 के करीब थी। इसके अलावा इस युद्ध में 300 हाथी और साथ ही इब्राहिम लोदी की सेना में कुछ ग्वालियर के तौमर राजपूत शासक भी शामिल थे।
बाबर ने अपनी आत्मकथा "तुजुक-ए-बाबरी" में लिखा है कि इस युद्ध को जितने के लिए मैंने सिर्फ 12 हजार सैनिकों का ही प्रयोग किया था।
बाबर ने इस युद्ध को जितने के लिए "तुलगमा" युद्ध प्रद्धति का प्रयोग किया था जबकि तोपों को सजाने के लिए उसने "उस्मानी विधि" का प्रयोग किया था। जिसे "रूमी विधि" भी कहा जाता है।
भारत में पहली बार पानीपत के युद्ध में तोपों और बन्दकों का प्रयोग किया था। जिसमें तोपों का संचालन "उस्ताद अली कुली" द्वारा तथा बन्दूकधारों का संचालन "उस्ताद मुस्तफा", द्वारा किया गया था।
पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी के किले से लूटे गए धन को बाबर ने अपने सैनिकों, नौकरों एवं दरबारियों में बाँट दिया था। इस बंटवारे के दौरान हुमायूँ के हिस्से में कोहिनूर हिरा आया था, जिसे ग्वालियर नरेश "राजा विक्रमजीत" से छीना गया था। इस हीरे की कीमत के बारे में यह माना जाता है कि इसके मूल्य द्वारा पूरे संसार का आधे दिन का खर्च वहन किया जा सकता था।
भारत विजय के उपलक्ष्य में बाबर ने प्रत्येक काबूल निवासी को एक-एक चांदी का सिक्का उपहार स्वरूप दिया था। जिससे प्रसन्न होकर वहाँ के निवासियों द्वारा बाबर को "कलन्दर" की उपाधि दी थी।
मुगल साम्राज्य की स्थापना बाबर ने 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध को जीतन के पश्चात् की थी।
खानवाँ का युद्ध(16 मार्च 1527 ई.) (battle of khanwa) -
खानवा का युद्ध राणा सांगा और बाबर के बीच (16 मार्च 1527 ई.) को लड़ा गया था। राणा सांगा के बारे में कहा जाता है कि वे बहुत बहादुर थे, उन्होंने अपने जीवन में 100 से ज्यादा लड़ाईयां लड़ी थी और उनके शरीर पर 80 से ज्यादा घाव थे और एक बहुत ही शक्तिशाली और ताकतवर योद्धा के रूप में जाने जाते थे।
खानवाँ का युद्ध लड़ने के लिए बाबर के पास कोई ठोस कारण नहीं था। इसलिए उसने राणा सांगा पर एक बेतुका आरोप लगाते हुए कहा कि राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी के खिलाफ पानीपत के युद्ध में मेरा सहयोग करने का वादा किया था, लेकिन राणा सांगा ने अपना वादा नहीं निभाया है। इस कारण में उस पर आक्रमण कर रहा हूँ।
खानवाँ के युद्ध में बाबर द्वारा पहली बार "जेहाद" का नारा दिया गया था। जिसका अर्थ होता है "इस्लाम की रक्षा के लिए धर्म युद्ध करना" ।
इस युद्ध जितने के बाद बाबर ने वीरगति प्राप्त राजपुतों के सरों को काटकर एक मीनार खड़ी करवायी और उसके सामने खड़े होकर "गाजी" की उपाधि धारण की तथा अपने धर्म वाले लोगों को यह दिखाया कि हमने "इस्लाम" को सफल बनाया है। "गाजी" का अर्थ होता है - "काफीरो को मारने वाला"
चंदेरी का युद्ध (battle of Chanderi) -
चन्देरी का युद्ध बाबर और मेदिनी राय के बीच 29 जनवरी, 1528 ई. को लड़ा गया था। जिसमें बाबर की विजयी होती है। इस युद्ध को लड़ने के प्रमुख कारण -
1. चन्देरी एक सम्पत्ति सम्पन्न राज्य होने के साथ ही साथ व्यापार के लिए भी एक उचित स्थान था, जिसके कारण भी बाबर ने चंदेरी पर आक्रमण किया था।
2. चन्देरी का शासक मेदिनी राय राणा सांगा का सूबेदार था और उसका हर युद्ध में सहयोग भी करता था, इसलिए भी बाबर ने यहाँ पर आक्रमण किया था।
चंदेरी के युद्ध की कहानी -
चन्देरी का किला उस समय सबसे सुरक्षित किलों में से एक माना जाता था। जिस पर आक्रमण उतना ही मुश्किल था जितना कि एक शेर के पंजे से शिकार छीनना।
जब बाबर को लगा कि इस किले को जीत पाना आसान नहीं है तो उसने मेदिनी राय को चंदेरी के किले के बदले में अपने जीते हुए किलों में से एक किला देने के लिए प्रस्ताव भेजा और साथ अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए भी कहा, लेकिन मेदिनी राय ने उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
अब बाबर के पास एक ही रास्ता था कि वह मेदिनी राय से युद्ध करके किले पर अपना अधिकार कर ले, लेकिन चंदेरी के किले को जीतना इतना भी आसान नहीं था, क्योंकि चन्देरी का किला चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ था।
जिस पर बाबर की विशाल तोपे और हाथियों का जाना मुश्किल था और बाबर को पता था कि अगर हम तोपों के बगैर पहाड़ पार करके जाएँगे, तो मेदिनी राय के सैनिक मेरी सेना पर ऊपर से आक्रमण कर देंगे और हमें हार का सामना करना पड़ सकता है।
इसके लिए बाबर ने अपनी सेना से कहकर एक ही रात में पहाड़ को बीच में से कटवा दिया। जो कि एक अविश्वसनीय कार्य था। इसके बाद सुबह जब मेदिनी राय ने किले के सामने देखा तो उन्हें मुगल सेना दिखी।
अब निश्चित ही राजपूतों का हारना तय था, क्योंकि उनके पास उतनी सेना नहीं थी कि वे बाबर की विशाल सेना का सामना कर सकें, लेकिन मेदिनी राय एक राजपूत राजा थे, जिनको अपनी जान से ज्यादा अपने अभिमान और अपनी मातृभूमि से प्यार था।
जो लड़ते-लड़ते युद्ध में शहिद जाएँगे, लेकिन कभी किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करेंगे। इसके बाद दोनों सेनाओं के बीच एक भीषण युद्ध शुरू हो जाता है, जिसमें राजपूत सैनिक बड़ी वीरता के साथ लड़ते हैं और अन्त में वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं।
कहा जाता है कि इस युद्ध को जीतकर बाबर को कुछ ज्यादा फायदा नहीं हुआ, क्योंकि वहाँ कि महिलाओं द्वारा सम्पत्ति को जला दिया गया था और स्वयं भी उसमें कूदकर जौहर कर लेती है।
चंदेरी के युद्ध में मेदिनी राय की सहायता के लिए राणा सांगा भी आ रहे थे, लेकिन रास्ते में उनके सामंतों द्वारा खाने में जहर मिलाकर खिलाने की वजह से उनकी "कलपी" नामक स्थान पर मृत्यु हो जाती है, जिसके कारण वह इस युद्ध में शामिल नहीं हो पाते हैं।
घाघरा का युद्ध 06 मई,1529 :
घाघरा का युद्ध इब्राहिम लोदी के भाई महमूद लोदी और बाबर के बीच घाघरा नामक नदी के तट पर लड़ा गया था, जिसमें बाबर की विजयी होती है और महमूद लोदी हारने के बाद बंगाल की ओर भाग जाता है। घाघरा के युद्ध की यह विशेषता थी कि यह युद्ध जल एवं थल दोनों पर लड़ा गया था।
महत्वपूर्ण बिन्दू (key point) -
1. बाबर द्वारा एक पद शैली की शुरूआत की गई थी, जिसका नाम "मुबईयान" था जो उस काल में बहुत प्रचलित थी।
2. बाबर ने अपने जीवन में दो प्रमुख किताबें लिखी थी, जिनका नाम "तुजुक-ए-बाबरी" जिसे "बाबरनामा" भी कहा जाता है। और दूसरी "उसज-ए-रिसाल" जिसे "बाबरी-ए-खत" भी कहा जाता है। यह दोनों पुस्तकें बाबर द्वारा "तुर्क" भाषा में लिखी गई थी।
3. बाबरी मस्जिद - बाबर के ही एक सेनानायक "मीर बाकी" के द्वारा हिन्दू मंदिरों को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया गया था।
4. सिक्का - बाबर ने अपने शासनकाल के दौरान "शाहरूख" नामक एक "चाँदी" का सिक्का भी चलवाया था।
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खानवा के युद्ध में बाबर की जीत नही हुई थी।
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