16 Mahajanapadas : जाने भारत की 16 महाजनपदों में सबसे शक्‍तिशाली और सुरक्षित महाजनपद कौन सी थी..?

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भारत की 16 महाजनपदों का इतिहास :   

महाजनपद काल : 6टी शताब्दी आते-आते लोहे की खोज के कारण आर्थिक क्रान्ति इतनी तेज हो जाती है कि वह राजनीतिक क्रान्ति का रूप ले लेती है और साथ ही कई बड़े-बड़े राज्यों का उदय होता है। जिन्हें महाजनपद  कहा गया। 

महाजनपदों की संख्या 16 बताई गई है, जिसमें सबसे शक्तिशाली महाजनपद मगध को बताया गया है। इन सभी महाजनपदों की जनकारियाँँ हमें दो प्रमुख ग्रन्थों से प्राप्त होती है। 

 16 महाजनपदों की जानकारी के स्त्रोत:

1.पहला ग्रंथ अंगुतर निकाय- यह बौद्ध धर्म  से सम्बन्धित है जिससे हमें महाजनपदों की जानकारियाँँ प्राप्त हुई है, इसमें महाजनपदों की संख्या 16 बताई गई है।

2. दूसरा ग्रंथ भगवती सूत्र - यह जैन धर्म से सम्बन्धित है, इसमें भी महाजनपदों की संख्या 16 बताई गई है।

इन दोनों ग्रंथों में कुछ भिन्नताएँँ है, लेकिन दोनों में ही 16-16 महाजनपदों का उल्लेख किया गया है। इन महाजनपदों में मुख्य रूप से दो प्रकार से शासन होता था -

महाजनपदों की शासन व्यवस्था:

राजतंत्र : राजतंत्र से तात्पर्य यह है कि यहाँँ पर राजा द्वारा ही शासन किया जाता था जो वंशानुगत होता था। जिसमें राजा की मृत्यु के बाद उसका उत्तराधिकारी ही उस महाजनपद पर शासक का कार्य करता था।  

गणतंत्र : गणतंत्र से तात्पर्य यह है कि यहाँँ पर गण या संघ(ग्रुप) के द्वारा शासन किया जाता था जो लोकतांत्रिक ढंग से चुना जाता था, जिसके बाद वह वहाँँ पर शासन करता था।  

16 महाजनपदों में वज्जि और मल्ल ये दो ऐसे प्रमुख महाजनपद थे, जहाँँ पर मुख्य रूप से गणतंत्र का कानून लागू था और बार कोई नया संघ लोकतांत्रिक ढंग से चुनकर आता था तथा शासन करता था। बाकि सभी महाजनपदों में राजतंत्र का कानून लागू होता था। राजा ही वहाँँ का सबकुछ होता था।

छटी शताब्दी से पहले मगध का संस्थापक "वृहदथ" को माना जाता है, हालांकि यहाँँ पर स्थापित सबसे पहला राजवंश "हर्यक वंश" था। जिसकी स्थापना बिम्बिसार ने की थी और साम्राज्य का विस्तार किया था। 


16 Mahajanapadas History in Hindi
16 Mahajanpadas History

16 महाजनपद : 

बिहार में स्थित - 3

मगध - मगध महाजनपद की राजधानी "राजगृह या गृहबृज" थी जो वर्तमान में पटना और गया के बीच का क्षेत्र माना जाता था। मगध महाजनपद उस समय की सबसे शक्तिशाली महाजनपदों में से एक थी।

अंग -अंग महाजनपद की राजधानी "चम्पा" जो वर्तमान में बिहार के भागलपुर मुंगेर क्षेत्र मे स्थित थी।

वज्जि संघ - इसकी राजधानी "वैशाली" थी जो वर्तमान में उत्तर बिहार के तिरहुत क्षेत्र, जिसे मिथला क्षेत्र भी कहा जाता है, में स्थित है। इसी स्थान को मूल रूप से वज्जि संघ महाजनपद का विस्तार क्षेत्र माना जाता है। वज्जि संघ महाजनपद 8 जनपदों के ग्रुप से मिलकर बनी एक शक्तिशाली महाजनपद थी।

इस महाजनपद की खास बात यह थी कि यहीं पर सबसे पहला राजतंत्र या लोकतंत्र शासन शुरू हुआ था, जिसमें लिच्छवि सबसे पहला गणतंत्र बना था, जिसकी राजधानी वैशाली को बनाया गया था।  

उत्तरप्रदेश - 8

काशी - काशी महाजनपद की राजधानी "वाराणासी" थी जो वर्तमान में भी वाराणासी ही है। इस महाजनपद को भी ताकतवर महाजनपदों में गिना जाता था।

कौशल - इसकी राजधानी "श्रावस्ती या साकेत" थी जो वर्तमान में फैजाबाद/अयोध्या का क्षेत्र माना जाता था, चूँकि कौशल का क्षेत्र दो भागों में बंटा था इसलिए दक्षिण भाग की राजधानी श्रावस्ती को और उत्तर भाग की राजधानी साकेत को बनाया गया था।

मल्ल - इस महाजनपद की राजधानी "कुशीनगर" थी जो उत्तरप्रदेश के देवरिया क्षेत्र में स्थित थी। यह कुशीनगर वहीं स्थान है जहाँँपर गौतम बुद्ध को महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई थी।

वत्स - वत्स महाजनपद की राजधानी "कोशाम्बी" थी जो वर्तमान में प्रयाग का क्षेत्र माना जाता है।

कुरू - कुरू महाजनपद की राजधानी "इन्द्रप्रस्थ" थी जो वर्तमान में दिल्ली का क्षेत्र माना जाता है। इसी कुरू महाजनपद की चर्चा महाभारत में भी होती है।

 पांचाल - इसकी राजधानी "अहिच्छत्र" थी।

सूरसेन - इसकी राजधानी "मथुरा" थी जो वर्तमान में भी मथुरा में ही स्थित है।

चेदी - इस महाजनपद की रजधानी "शक्तिमति या सोथिमती" थी जो वर्तमान में बुन्देलखण्ड का क्षेत्र माना जाता है। यहाँँ के राजा शिशुपाल थे, जिनका वध भगवान श्री कृष्ण ने किया था। 

मध्यप्रदेश - 1

अवन्ति - अवन्ति महाजनपद की राजधानी "उज्जैन या महिष्मती" थी जो काफी चर्चित और ताकतवर महाजनपदों में से एक थी। अवन्ति महाजनपद भी दो भागों में बटी हुई थी, जिसमें उत्तरी भाग की राजधानी उज्जैन थी और दक्षिणी भाग की राजधानी महिष्मति को बनाया गया था।

राजस्थान - 1

मत्स्य - इसकी राजधानी "विराटनगर" थी जो वर्तमान में राजस्थान जयपुर में स्थित है।

दक्षिण भारत - 1

अस्मक - इसकी राजधानी "पोतन या पोटली" थी जो वर्तमान में आंध्रप्रदेश के क्षेत्र में स्थित है। यह महाजनपद भारत की एक मात्र ऐसी महाजनपद थी जो दक्षिण भारत में स्थित थी।

अफगानिस्तान - 1 

कम्बोज - इसकी राजधानी "राजपुर या हाटक" जो वर्तमान में भारत से बाहर अफगानिस्तान में स्थित है। यह महाजनपद भारत का प्रवेश द्वार मानी जाती थी, जहाँँ से विदेशी व्यापारी व्यापार करने के लिए भारत में प्रवेश करते थे। 

पाकिस्तान - 1

गांधार - इसकी राजधानी "तक्षशिला" थी जो वर्तमान में पाकिस्तान और जम्मू कश्मीर के बॉडर का क्षेत्र है।

महाजनपद काल में हुई चार बौद्ध संगतियाँँ: 

इसके अलावा महाजनपद काल में 4 बौद्ध संगतियाँँ हुई थी जो निम्न शासकों के शासनकाल में हुई थी -  

1. पहली बौद्ध संगति मगध की राजधानी राजगृह में 483 ई.पू. अजातशत्रु के शासनकाल में हुई थी जिसकी अध्यक्षता महाकश्यप द्वारा की गई थी।

2. दूसरी बौद्ध संगति वज्जि संघ की राजधानी वैशाली में 383 ई.पू. कालाशोक के शासनकाल में हुई थी जिसकी अध्यक्षता सबाकामी द्वारा की गई थी।

3. तीसरी बौद्ध संगति मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में 250-51 ई.पू. अशोक के शासनकाल में हुई थी, जिसकी अध्यक्षता मोगालिपुत्र तिस्स ने की थी।

4. चौथी बौद्ध संगति कुण्डलवन(कश्मीर) में 72 ईस्वी में हुई थी, उस समय वहाँँ का शासक कनिष्क था। इस बौद्ध संगति की अध्यक्षता  वसुमित्र ने की थी। जिसमें अश्वघोष एक उपाध्यक्ष केे रूप में शामिल हुए थे।

मगध महाजनपद में साम्राज्य विस्तार के कारण -

1 आर्थिक कारण - 

अगर आर्थिक दृष्टि से देखा जाए तो किसी भी क्षेत्र के लिए यह आवश्यक होता है कि वह आर्थिक दृष्टि से मजबूत हो और उस समय लोहे की खोज के बाद सम्पूर्ण भारवर्ष में विकास का दौर चल रहा था और यह विकास का दौर मुख्य रूप से मगध के क्षेत्र में ज्यादा विस्तारित हो रहा था।

इसका कारण यह था कि वहाँँ पर अधिशेष उत्पादन होता था। अधिशेष का तात्पर्य उत्पादन से है अर्थात् मगध में इतना उत्पादन किया जाता था कि वे अपनी जरूरतों को आसानी से पूरा कर लेते थे और जो माल बच जाता था उसे वे दूसरे राज्यों में बेच कर आर्थिक आय प्राप्त करते थे। इसे ही अधिशेष कहा जाता था।

मगध क्षेत्र में आर्थिक आय बढ़ने का सबसे प्रमुख कारण वहाँँ की नदियाँँ थी, क्योंकि मगध महाजनपद चारों ओर से नदियों से घिरी हुई थी। इसलिए वहाँँ पर कृषि की व्यवस्था उन्नत थी और साथ ही वहाँँ पर जलोद मिट्टी भी थी, जिसमें कृृृृषि उत्पादन बेहतर ढंग से किया जा सकता था।

2. राजनीतिक कारण - 

किसी भी क्षेत्र के लिए यह जरूरी होता है कि वहाँँ का राजा सबसे शक्तिशाली हो, जो अपने राज्य की सुरक्षा बाहरी आक्रमणकारियों से कर सके, जिससे जनता को कोई तकलीफ न हो और वह विकास करती रही। 

इस मामले में मगध की यह सबसे अच्छी बात रही है कि मगध साम्राज्य में जितने भी क्रमिक रूप से शासक हुए वे सभी बहुत शक्तिशाली और मजबूत नीति वाले थे। साथ ही उनकी प्रशासनिक व्यवस्था भी बहुत अच्छी थी, जिसके माध्यम से वे जनता के बीच तालमेल बना कर रखने में सफल रहे थे। यहीं कारण था कि मगध का विस्तार इतनी तेजी से बढ़ रहा था।

3. भौगोलिक कारण - 

अगर देखा जाए तो मगध महाजनपद भौगोलिक दृष्टि से उस समय की सबसे सुरक्षित और शक्तिशाली महाजनपदों में से एक मानी जाती थी, क्योंकि उसकी राजधानी पाटलिपुत्र गंगा, गंडक और सोन नदी के संगम पर बसी हुई थी। इसके साथ ही दूसरी राजधानी राजगृह पहाड़ियों से घिरी हुई थी। 

इस प्रकार अगर देखा जाए तो मगध महाजनपद चारों तरफ से एक सुरक्षित महाजनपद थी जो नदियों और पहाड़ों से घिरी हुई थी। जिस पर किसी बाहरी आक्रमणकारी द्वारा आक्रमण करना और उसे जीतना बहुत मुश्किल कार्य था, लेकिन मगध बड़ी आसानी से किसी भी अन्य महाजनपद पर आक्रमण कर उसे जीत लेता था, क्योंकि उन्होंने मगध की दूसरी राजधानी राजगृह से बड़ी मात्रा में जंगली हाथी और घोड़े पकड़े थे, जिनका उपयोग वे युद्ध करने के लिए करते थे। 

इसके अलावा छोटा नागपुर का पठारी क्षेत्र भी उनके हिस्से में था, जहाँँ से वे बड़ी मात्रा में लोह अयस्क प्राप्त करते थे और उस समय लोहे की खोज के कारण आर्थिक क्रान्ति का दौर चल रहा था। उस लोहे से न केवल हथियार बनाए जाते थे, बल्कि उसका व्यापार भी जलमार्गों के माध्यम से बड़ी आसानी से किया जा सकता था। जहाँँ पर उन्हें सामान लूटने का भी डर नहीं रहता था। इस प्रकार जलमार्ग भी उनके लिए वरदान सिद्ध हुआ    

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