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राणा सांगा और बाबर के बीच लड़े गए युद्ध :
बयाना का युद्ध:
फरवरी, 1527 ई. को बयाना नामक स्थान पर लड़ा गया था। इस युद्ध में राणा सांगा ने अपनी विरता और उदारतापूर्ण नीति के दम पर विजयी प्राप्त की थी। वहीं दूसरी तरफ इस युद्ध को हारने के बाद बाबर को यह एहसास हो गया था कि जितनी आसानी से मैंने इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर कब्जा किया है राणा सांगा को हराना उतना आसान नहीं होगा।
बयाना का युद्ध फरवरी, 1527 ई. को बयाना नामक स्थान पर लड़ा गया था। पानीपत के प्रथम युद्ध को जीतने के बाद बाबर का सपना था कि वह सम्पूर्ण भारत पर विजयी प्राप्त करे, लेकिन उस वक्त मेवाड़ के हिन्दू शासक राणा सांगा भी काफी मजबूत स्थिति में थे।
इसलिए राणा सांगा के होते हुए बाबर का सम्पूर्ण भारत पर विजयी प्राप्त करने का यह सपना कभी पूरा नहीं हो सकता था। इसलिए अगर बाबर को अपना सपना पूरा करना है तो उसे राणा सांगा को हराना पड़ेगा।
दूसरी तरफ पानीपत में इब्राहिम लोदी की हार के बाद राणा सांगा ने भी अपनी सैना मजबूत करना शुरू कर दिया और मांडू के झालावाड़ में स्थित अपनी समस्त सेना को वापस चित्तौड़ बुला लिया। इसके पश्चात् जो जागीरें इब्राहिम लोदी के अधीन थी, उनके हारने के बाद वे बाबर के अधीन हो गई थी,
किन्तु बाबर की उनसे इतनी अच्छी मैत्री नहीं थी, जिसका फायदा राणा सांगा ने उठाया और उन पर आक्रमण कर उन्हें जीत लिया।
Rana sanga and Babur yuddha |
इन्हीं जागीरों में एक जागीर खंडार भी थी जो कि एक मुस्लिम रियासत थी। राणा सांगा ने उसे भी पराजित कर अपने अधीन कर लिया था, जिससे वहाँँ के जो शासक थे वो भागकर दिल्ली बाबर के पास चले जाते हैं और बाबर को राणा सांगा पर युद्ध करने के लिए उकसाते हैं।
जिसके बाद बाबर भी अपनी सेना मजबूत करने के लिए आसपास की रियासतों पर आक्रमण करना शुरू कर देता है। जिसमें सबसे पहले वह धौलपुर पर आक्रमण कर उसे जीतता है, फिर भरतपुर और ग्वालियर को। भरतपुर की जागीर बयाना को बाबर दो प्रयासों में जीतता है,
क्योंकि वह अपने पहले प्रयास में असफल हो जाता है फिर दूसरे प्रयास में अपने जीजा मेहंदी ख्वाजा के नेतृत्व में दूसरे प्रयास में बयाना पर विजयी प्राप्त करता है।
वहीं दूसरी तरफ जब इस बात का पता राणा सांगा को लगता है कि बाबर ने बयाना पर आक्रमण करके उसे जीत लिया है तो वे अपनी विशाल सेना लेकर बयाना के दुर्ग पर आक्रमण करने के लिए उसे चारों तरफ से घैर लेते हैं। दूसरी तरफ से बाबर भी अपनी सेेेना लेकर पिछे के रास्ते से मुगलिया सेना की सहायता करते हैं।
फिर दोनों सेनाओं के बीच एक घमासान युद्ध आरम्भ हो जाता है, लेकिन राणा सांगा की विशाल सेना के सामने मुगल सेना टिक नहीं पाती है। वह उन्हें बुरी तरह से कुचल देता है और पुन: बयाना पर अपना आधिपत्य जमा लेता है।
खानवाँँ का युद्ध :
बयाना के युद्ध के बाद, अब शुरू होता है राणा सांगा और बाबर के बीच असली विनाशकारी संघर्ष। बाबर अपनी हार का बदला लेने के लिए राणा सांगा से युद्ध करने की नीतियाँँ बनाने में लग जाता है, लेकिन बयाना के युद्ध में राजपूत सेनिकों की लड़ते हुए वीरता को देख मुगल सेना का मनोबल एक दम नीचे गीर चुका था और अब वे उनसे एक भी युद्ध लड़ना नहीं चाहते हैं।
इसके अलावा दूसरी तरफ बाबर का ज्योतिष "मुहम्मद शरीफ" भी यह भविष्यवाणी कर देता है कि अगर तुम इस समय राणा सांगा से युद्ध करोगे तो अवश्य ही तुम्हेें हार का सामना करना पड़ सकता है।
ज्योतिष की यह बात सुनकर मुगल सेना और ज्यादा घबरा गई, लेकिन बाबर को तो अपनी हार का बदला लेना था और सम्पूर्ण भारत पर विजयी प्राप्त करनी थी। अब उसे कैसे भी करके अपनी सैना का खोया हुआ मनोबल और साहस वापस लाना था।
तब वह अपने सेनिकों से कहता है कि बस इस युद्ध में मेरा साथ दे दो मैं आज से मदिरा पीना बंद कर दूँगा और वह सारी शराब की बोतले तुड़वा देता है और जितना भी मदिरा से रिलेटेड सामान था।
वह सब गरीबों में बंटवा देता है, जिसके बाद सेनिकों पर लगा "तमका कर(लगान)" भी माफ करने की घोषणा कर देता है, परन्तु फिर भी उसकी सैना युद्ध करने के लिए तैयार नहीं होती है। तब बाबर सेना को मनाने के लिए अपने अन्तिम प्रयास में जैहाद का नारा देता है।
बाबर द्वारा दिया गया जैहाद का नारा:
जैहाद का अर्थ होता है धर्म का वास्ता देना, जिसमें बाबर सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए कहता है कि क्या करोगे, ऐसी जान का जो अपने मजहब की रक्षा न कर सके। जब हम पैदा ही अपने मजहब को बढ़ाने और युद्ध करने के लिए हुए है तो फिर मृत्यु से भय कैसा। यदि हम युद्ध में लड़ते-लड़ते मर भी गए तो शहीद कहलाएंगे और अगर हम इस तरह से पीठ दिखाकर भागेंंगे तो अल्हा भी हमें कभी माफ नहीं करेंगे।
बाबर की यह बात सुनकर सेना में एक जोश सा भर गया और वह युद्ध करने के लिए तैयार हो गई। जिसके बाद 17 मार्च, 1527 ई. को लगभग 9 बजे के करीब खानवाँँ के मैदान में दोनों सैनाओं के बीच एक विनाशकारी युद्ध आरंभ हो जाता है। इस युद्ध में कई राजपूत रियासतें महाराणा सांगा के साथ थी, जिनमें 7 बड़े राजा, 9 राव और 104 छोटी-मोटी रियासतें शामिल थी।
अब इससे एक बात तो साफ थी कि राणा सांगा, बाबर के खिलाफ एक बहुत विशाल सेेेना के साथ युद्ध के मैदान में उतरे थे। राणा सांगा वीरोंं की भाँँति, हमेशा की तरह सबसे आगे अपने हाथी पर बैठकर युद्ध में सेना का नेतृत्व कर रहे थे।
वहीं बाबर अपनी पुरानी नीति के अनुसार अपने कुछ सैनिकों को आगे कर देते हैं और बीच में तोपे रखवा देता है तथा पीछे से खास ट्रेन घुड़संवारों को खड़ा कर देता है। जिसके बाद स्वयं सेना के बीच में रहकर युद्ध का नेतृत्व करता है।
इस युद्ध में राणा सांगा की सेना पूरी तरह से बाबर के सैनिकों को रौंद रही होती है तभी बाबर पीछे से तोपे चलाने के आदेश दे देता है। जैसे ही तोपे चलना शुरू होती है वैसे ही राणा सांगा की तरफ के घोड़े और हाथी इधर उधर भागना शुरू कर देते हैं, क्योंकि इससे पहले उन्होंने कभी इस प्रकार के शस्त्र को नहीं देखा था और उन्हें तोप और बन्दूकों के बीच लड़ने की आदत भी नहीं थी।
देखते ही देखते राणा सांगा की सेना तितर-बितर हो जाती है और इसी बात का फायदा उठाकर बाबर अपनी तुलगमा युद्ध नीति के अनुसार राणा सांगा पर पीछे से अपने खास घुड़सवारों के माध्यम से हमला करवा देता है। जिससे राणा सांगा की सेना कमजोर पड़ जाती है और साथ ही स्वयं राणा सांगा को भी एक तीर लग जाता है।
जिससे वह बेहोस हो जाता है, जिसके बाद राणा सांगा को एक सुरक्षित स्थान पर ले जाया जाता है और झाला अज्जा मेवाड़ का राजचिन्ह धारण करते हैं और सैना का नेतृत्व करते हैं। जब सेना राणा सांगा की जगह किसी और सेनापति को युद्ध का नेतृत्व करते देखती है तो उनका मनोबल टूट जाता है और सारी सेना इधर-उधर बिखरने लगती हैंं।
अत: इस प्रकार मेवाड़ की इतनी विशाल सेना होने के बावजूद भी वे इस युद्ध को हार जाते हैं। जिसके बाद राणा सांगा को "अखेराज दुड़ा" द्वारा मैदान से सुरक्षित निकालकर मुर्छित अवस्था में दौसा नामक स्थान पर ले जाया जाता है।
वहीं दूसरी तरफ बाबर अपनी हार का बदला लेकर बड़ा खुश होता है और बड़ी बेरहमी से वीरगति प्राप्त कर चुके राजपूत सैनिकों के सरों को कटवा कर एक मिनार जैसी खड़ी करवाता है और उनके सामने खड़े होकर "गाजी" की उपाधि धारण करता है।
वहीं जब राणा सांगा को होश आता है और उसे युद्ध के हारने की खबर सुनाई जाती है तो उसे बड़ा दु:ख होता है और वह यह प्रतिज्ञा कर लेता है कि जब तक बाबर को हरा नहीं दूँगा, तब तक चित्तौड़ वापस नहीं जाऊँगा और न ही अपने सर पर साही पगड़ी धारण करूँगा।
तभी कुछ समय बाद राणा सांगा को खबर मिलती है कि बाबर चंदेरी रियासत पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा है। तो राणा सांगा उससे बदला लेने के लिए अपनी सैना लेकर चंंदेरी की ओर निकल पड़ता है। उस समय चंदेरी का शासक मेदिनी राय था जो खानवा के युद्ध में भी शामिल था, परन्तु वह वहाँँ से सुरक्षित लौट आया था।
राणा सांगा की मृत्यु:
चंदेरी आने के क्रम में राणा सांगा विश्राम करने और अपने अन्य राजपूत सांमतों को इक्ट्ठा करने के लिए "कलपी" नामक स्थान पर रूक जाते हैं। तथा सभी सांमतों को खबर भिजवाते हैं कि बाबर फिर से चंदेरी पर आक्रमण करने के लिए आ रहा है आप सभी शामिल हो और चंदेरी के इस युद्ध में हमारा साथ दें।
यहाँँ पर राणा सांगा के सामंत उनका साथ नहीं देना चाहते थे, किन्तु वे राणा सांगा कि वीरता से भी परिचित थे। जिसके कारण वे यह भी जानते थे कि अगर हमने इसका साथ नहीं दिया तो बाबर को तो हम "कर" देकर बच भी जाएंगे, लेकिन यह तो हम पर आक्रमण करके हमें मार ही देगा।
इसलिए वे सभी राणा सांगा का साथ देने के लिए कलपी नामक स्थान पर इक्ट्ठा हो जाते हैं। अब राणा सांगा को समझाने की हिम्मत तो किसी में होती नहीं है। इसलिए वे एक चाल चलते हैं और रात के समय राणा सांगा के भोजन में जहर मिला देते हैं।
जिससे 30 जनवरी, 1528 ई. को कलपी नामक स्थान पर राणा सांगा की मृत्यु हो जाती है और इस प्रकार मेवाड़ का एक वीर यौद्धा अपने सामंतों के विश्वासघात की वजह से मारा जाता है।
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