बैरम खाँ की मृत्यु् - Beram Khan Ki Death History

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बैरम खाँ और अकबर के बीच तनाव के मुख्य कारण: 

दरबार में बैरम खाँ के बढ़ते हुए प्रकोप से सभी उनसे घृणा करते थे खासकर के महिला समूह जिसे हरमदल कहा जाता था। इसके अलावा उसे कुछ दरबारी भी उससे चलने लगे थे। इसका कारण यह था कि बैरम खाँ का जो प्रभाव था वह प्रशासन पर कुछ ज्‍यादा ही बढ़ गया था। 

जिससे प्रशासन पर अकबर का प्रभाव कम और बैरम खाँ का प्रभाव अधिक दिखाई देने लगा था। इसके अलावा दूसरा कारण यह भी था कि बैरम खाँ एक सिया मुस्‍लमान था जबकि अकबर के अधिकतर दरबारी सरदार सुन्‍नी मुसलमान थे। इस कारण भी दरबारी बैरम खाँ से जलने लगे थे और उसे पसंद नहीं करते थे। 

दूसरी ओर अकबर ने भी कई ऐसे अवसर देंखे थे जब वह चाहता कुछ और था और बैरम खाँ करता कुछ और था। ऐसे में बैरम खाँ से अकबर की भी दूरियाँ कुछ बढ़ने लगी थी। 

वहीं पर अकबर को उसकी दाय माँ माहम अनगा और उसके कुछ दरबारी सरदारों ने भी भड़काना शुरू कर दिया जो मुख्‍य रूप से "सिया और सुन्‍नी" का मुद्दा उठाए हुए थे। 

वहीं अकबर को भी यह महशूस होने लगा था कि शायद बैरम खाँ हमारे मामले में आवश्‍यकता से अधिक ही हस्‍तक्षेप करने लग गया है और आखिर 1560 ई. वह वर्ष आता है जब बैरम खाँ की हत्‍या कर दी जाती है।


Beram Khan Ki Death History
Bairam Khan Death History

अकबर और बैरम खां के बीच "तिलवाड़ा" का युद्ध:

1560 ई. में जब बैरम खाँ दिल्‍ली से बाहर एक अभियान पर गया हुआ था तभी अकबर ने उन्‍हें वहाँ पर सुचना भिजवाई की (खान बाबा) आप वापस दिल्‍ली न आकर वहीं से मक्‍का के लिए यात्रा पर निकल जाईए। 

जिसके बाद बैरम खाँ अकबर के आदेश को मान लेता है और मक्‍का की यात्रा पर निकल पड़ता है, लेकिन बैरम खाँ के यात्रा जाने के क्रम में ही मुगलों की सुनाओं द्वारा उन पर हमला कर दिया जाता है।

जिसके बाद अकबर की सेना और बैरम खाँ की सेना के बीच एक युद्ध छिड़ जाता है जिसे "तिलवाड़ा" का युद्ध के रूप में जाना जाता है। इस युद्ध में बैरम खाँ की हार हो जाती है और उसे बन्‍दी बना लिया जाता है, 

लेकिन अकबर उन्‍हें खान बाबा कहकर बुलाते थे और वे उनके सहयोगी, प्रधानमंत्री और सेनापति रह चुके थे और काफी युद्धों में उनकी सहायता की थी इसलिए अकबर ने उन्‍हें 3 विकल्‍प दिए।

अकबर द्वारा बैरम खां को दिए गए तीन विकल्प:

1. पहले विकल्‍प में बैरम खाँ को कहा गया कि आप मुगल सल्‍तनत में से कोई भी एक राज्‍य चुन लिजिए आपको वहां का सूबेदार बना दिया जाएगा।
2. दूसरे विकल्‍प में यह कहा गया कि आप सभी बातें भुलाकर हमारे सुरक्षा सलाहकार बन जाईए।

3. तीसरा विकल्‍प यह दिया कि आप मक्‍का की तीर्थ यात्रा पर चले जाईए और वहाँ से वापस     लौटकर मत आइए वहीं पर अपना सम्‍पूर्ण जीवन व्‍यतीत करे।

चूँकि बैरम खाँ प्रधानमंत्री या वजीर जैसे सम्‍मानजनक पद पर कार्य कर चुँका था ऐसे में वह एक छोटे से सूबेदार के पद पर कार्य कैसे कर सकता था। इसलिए उसने मक्‍का की यात्रा पर जाने का निर्णय किया, 

बैरम खां की हत्या:

परन्‍तु उसके मक्‍का जाने के क्रम में "गुजरात" के "पाटन" नामक स्‍थान पर अफगान सरदार "मुबारक खाँ" उस पर आक्रमण कर उसकी हत्‍या कर देता है।

मुबारक खाँ एक अफगान सरदार का बेटा था जिसकी हत्‍या बैरम खाँ ने "मच्‍छिवाड़ा" के युद्ध में कर दी थी। इसलिए मुबारक खाँ बहुत दिनों से इस फिराक में था कि कब मौका मिले और वह बैरम खाँ की हत्‍या करे और वह मौका उसे गुजरात के पाटन में मिला और उसने बैरम खाँ को मौत के घाट उतार दिया।

जब बैरम खाँ की मृत्‍यु की खबर अकबर को मिली तो उसने बैरम खाँ की विधवा "सलीमा बैगम" और उसके पुत्र "अब्‍दूर्रहीम" को अपने संरक्षण में ले लेता है ताकि वे बैरम खाँ की मृत्‍यु के बाद सड़कों पर न भटके। इसके बाद अकबर अपने चाचा की लड़की सलीमा बैगम जो बैरम खाँ की विधवा थी

उससे विवाह कर लेता है और अब्‍दूर्रहीम को शाही शिक्षा दिलाता है। इसके अलावा वह उसे अपने "नौ-रत्‍नों" में भी शामिल करता है और उसे अब्‍दूर्रहीम "खान-ए-खाना" की उपाधि से भी नवाजता है।

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