पृथ्वीराज चौहान की Biography हिंदी में जाने - Prithviraj Chauhan History in Hindi ... 2021

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पृथ्वीराज चौहान History in hindi:

पृथ्वीराज चौहान की सामान्य जानकारी:

शासक - पृथ्वीराज चौहान
जन्म - 1149 ई. गुजरात(अन्हिलवाड़ा)
पिता - सोमेश्वर चौहान
माता - कर्पूरादेवी
पुत्र - गोविन्दराज चतुर्थ 
पुत्री - बैला
मृत्यु - 1192 ई
वंश - चौहान वंश 
धर्म - हिन्दू
प्रेमिका - रानी संयोगिता 
शासनकाल -  1178 से 1192 ई. तक 
कवि(मित्र) - चन्दबरदाई 
आत्मकथा - पृथ्वीराज रासो (ब्रज भाषा में) चन्दबराई द्वारा लिखित
सेनापति - खेतसिंह खंगार
मंत्री - कदम्बवास
शिक्षा - सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ से प्राप्त की ।
जयंती - 31 मई, से 14 जून तक पखवाड़ेे के रूप में मनाई जाती है।
भाई-बहन - हरिराज और बहन पृथा रानी जिनका विवाह चित्तौड़ के राजा रावल समरसिंह गहलोत के साथ हुआ था।
गुरू - श्री राम जी, जिनसे अस्त्र-शस्त्र और बाण भेद्दी की विद्या ग्रहण की थी।
पत्नियाँँ - जम्भावती, पडिहारी, दाहिया, जालन्धरी गूजरी, पंवारी इच्छनी, बडगजरी(बडगू), यादवी पद्मावती, यादवी शशिव्रता, कछवाही, पुडीरनी, शशिव्रता, इन्द्रावती, संयोगीताा।  


प्रारम्‍भिक जीवन - 

पृथ्‍वीराज चौहान का जन्‍म गुजरात के अन्‍हिलवाड़ा में चौहान वंश के क्षत्रिय शासक सोमेश्वर एवं कर्पूरीदेवी के घर साल 1149 में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान अपने माता-पिता की शादी के कई सालों बाद काफी पूजा-पाठ और मन्नतें मांगने के बाद जन्मे थे। 

वही उनके जन्म के समय से ही उनकी मृत्यु को लेकर राजा सोमेश्वर के राज्य में षड्यंत्र रचे जाने लगे थेलेकिन उन्होंने अपने दुश्मनों की हर साजिश को नाकाम कर दिया।

राजघराने में पैदा होने की वजह से पृथ्वीराज चौहान का पालन पोषण काफी सुख सुविधाओं से परिपूर्ण अर्थात वैभव पूर्ण वातावरण मैं हुआ थाउन्होंने सरस्वती कंठाधारण विद्यापीठ से शिक्षा प्राप्त की थी जबकि युद्ध और शास्त्र विद्या की शिक्षा उन्होंने अपने गुरु श्री राम जी से प्राप्त की थी।

पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही बेहद साहसी पराक्रमी और युद्ध कला में निपुण थे। शुरुआत से ही पृथ्वीराज चौहान ने शब्दभेदी बाण चलाने की अद्भुत कला सीख ली थीजिसमें वह बिना देखे आवाज के आधार पर बाण चला सकते थे और सटीक निशाना लगा सकते थे। 

चन्‍दबरदाई पृथ्वीराज चौहान के बचपन से ही सबसे घनिष्‍ठ मित्र थे जो पृथ्‍वीराज का एक भाई की तरह ख्याल रखते थे।

पृथ्‍वीराज चौहान का राज्‍याभिषेक - 

पृथ्वीराज चौहान जब महज 11 वर्ष केथे तभी उनके पिता सोमेश्वर की एक युद्ध में मृत्यु हो गई थीजिसके बाद उनकी माता कर्पूरीदेवी और मंत्री कदम्‍बवास ने उनके बड़े होने तक राज्‍य सम्‍भाला।

पृथ्‍वीराज चौहान जब बड़े हुए तो उन्‍हें अजमेर का उत्तराधिकारी बना दिया गया और उन्‍होंने एक आदर्श शासक की तरह अपनी प्रजा की सभी उम्मीदों और इच्‍छाओं को ध्‍यान में रखकर कार्य किया और अपने साम्राज्‍य का विस्‍तार किया।

इसके अलावा पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली पर भी राज्‍य किया था। दरअसल उनकी माँ कर्पूरीदेवी अपने पिता अनंगपाल तंवर की एक लोती बेटी थीइसलिए उनके पिता ने अपने दामाद और अजमेर के शासक सोमेश्वर से पृथ्वीराज चौहान की प्रतिभा को देखते हुए अपने साम्राज्य का उत्तराधिकारी बनाने की इच्छा जाहिर की थी।

जिसके पश्‍चात् 1164 में पृथ्वीराज चौहान के नाना अनंगपाल तवर ने उन्‍हें दिल्ली के राज सिंहासन पर बैठा दिया। इसके बाद पृथ्‍वीराज चौहान ने कुशलता पूर्वक दिल्ली की सत्ता संभाली और एक आदर्श शासक के तौर पर अपने साम्राज्य का विस्‍तार कर एक मजबूत साम्राज्‍य स्‍थापित किया।

राज्‍य विस्‍तार - 

इसके बाद राजा जयचंद और पृथ्वीराज चौहान के बीच साल 1189 और 1190 में भयंकर युद्ध हुआजिसमें कई लोगों की जानें गई और दोनों राजाओं को भारी नुकसान भी उठाना पड़ा। पृथ्वीराज चौहान की सेना बहुत बड़ी थीजिसमें करीब 3 लाख  सैनिक और 300 हाथी थे। उनकी विशाल सेना में घोड़ों की सेना का भी बहुत महत्व था।

पृथ्वीराज चौहान अपनी इसी खास सेना की वजह से न सिर्फ कई युद्ध जीते बल्कि वे अपने राज्य का विस्तार करने में भी कामयाब रहे। वहीं पृथ्वीराज चौहान जैसे जैसे युद्ध जीतते गए वैसे वैसे वह अपनी सेना को भी बढ़ाते गए।

चौहान वंश के सबसे बुद्धिमान और दूरदर्शी शासक पृथ्वीराज चौहान ने अपने शासनकाल में अपने राज्य को एक नई ऊंचाई और मुकाम पर पहुंचा दिया था उन्होंने अपने राज्य में अपनी कुशल नीति के चलते अपने राज्य में विस्तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

पृथ्वीराज चौहान का प्रथम युद्ध -

पृथ्वीराज चौहान पंजाब में भी अपना राज्‍य स्‍थापित करना चाहते थेलेकिन उस समय पंजाब में शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी का शासक था। वहीं पृथ्वीराज चौहान की पंजाब पर राज्य करने की इच्छा मोहम्मद गोरी के साथ युद्ध करके ही पूरी हो सकती थी।

जिसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने अपनी विशाल सेना के साथ मोहम्मद गोरी पर आक्रमण कर दिया।

इस हमले के बाद पृथ्वीराज चौहान ने सरहिंदसरस्वती और हांसी पर अपना राज्य स्थापित किया कर लिया, लेकिन जब पृथ्‍वीराज चौहान पंजाब में थे तब अनहिलवाड़ा के कुछ राजाओं ने विद्रोह कर दिया। 

इस विद्रोह को दबाने के लिए जब पृथ्‍वीराज चौहान अनहिलवाड़ा पहुँचे तो इधर मोहम्‍मद गोरी ने आक्रमण कर दिया और पुन: सरहिंद को अपने कब्‍जे में ले लिया।

इसके बाद में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्‍मद गोरी के बीच सरहिंद के किले के पास तराइन नाम जगह पर भयंकर युद्ध हुआ। जिसमें मोहम्‍म्‍द गोरी बुरी तरह से घायल हो गए और युद्ध को छोड़कर भाग गए थे। इस युद्ध को तराइन का युद्ध भी कहा जाता है। इस युद्ध का कोई निर्ष्‍कष नहीं निकला।  

तराइन का द्वितीय युद्ध 1192 - 

पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी से 18 युद्ध लड़े थेजिसमें से वे 17 में विजय रहे थेलेकिन उनकी सबसे बड़ी गलती यही थी कि उन्‍होंने मोहम्‍मद गोरी को जीवित ही छोड़ दिया था। पृथ्वीराज चौहान से इतनी बार युद्ध हारने के बाद भी मोहम्मद गोरी के मन में प्रतिशोध की भावना पनप रही थी।

वही जब पृथ्वीराज चौहान के कट्टर दुश्मन राजा जयचंद को इस बात का पता लगा तो उसने मोहम्मद गोरी से जाकर हाथ मिला लिया और दोनों ने पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया।

वहीं जब इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान अकेले पड़ गए थेतब उन्होंने अनेक राजपूत राजाओं से मदद मांगी थी, लेकिन संयोगिता के स्‍वयंवर में पृथ्वीराज चौहान द्वारा किए गए अपमान को लेकर कोई भी शासक उनकी मदद करने को तैयार नहीं था। 

इसी मौके का फायदा उठाते हुए। राजा जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान का भरोसा जीतने के लिए उसे अपना सैन्य बल सौंप दिया।

वहीं उदार स्वभाव के पृथ्वीराज चौहान, जयचंद की इस चाल को समझ नहीं पाए और इस प्रकार जयचंद के धोखेबाज सैनिकों ने पृथ्वीराज चौहान के सैनिकों को ही मारना शुरू कर दियाजिससे पृथ्‍वीराज चौहान के सैनिकों को पता नहीं चला की किसे मारना है और किसे नहीं।

इस तरह पृथ्‍वीराज का सैन्‍यबल कमजोर पड़ गया और वे इस युद्ध में हार गए। पृथ्‍वीराज चौहान और उनके मित्र चंदबरदाई को बंदी बना लिया गया और उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गए। 

इसके एक साल बाद ही मोहम्‍मद गौरी वापस भारत आए और अपने गवर्नर कुतुबुद्दीन ऐबक के साथ मिलकर कन्‍नौज पर आक्रमण कर दियाजिसमें जयचन्‍द मार गया और कन्‍नौज पर भी उनका कब्ज़ा हो गया।

इस तरह ,मोहम्मद गौरी ने कन्‍नौजदिल्‍ली और पंजाब पर अपना अधिकार जमा लिया और अपने सैनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को वहाँ का गवर्नर बना कर वापस गजनी लौटा आया। पृथ्वीराज चौहान के बाद कोई भी राजपूत शासक भारत में अपना वर्चस्व कायम करने में सफल नहीं हो सका।

मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु -

मोहम्‍मद गौरी पृथ्वीराज चौहान से इतनी बार पराजित होने के कारण अंदर ही अंदर प्रतिशोध की भावना में जल रहा था। इसलिए बंधक बनाने के बाद उसने पृथ्वीराज चौहान को कई शारीरिक यातनाएं दी एवं मुस्लिम बनने के लिए भी प्रताड़ित किया। 

परन्तु इतनी यातनाएं सहने के बावजूद भी पृथ्वीराज चौहान, गौरी के सामने झुके नहीं और न ही उनके माथे पर किसी प्रकार सिकस्त दिखाई दिया और लगातार मोहम्मद गौरी की आंखों में आंखें डाल कर पूरे आत्मविश्वास के साथ देखता रहा

जिसके बाद मोहम्मद गोरी ने, उन्हें अपनी आंखें नीचे करने का आदेश भी दिया था, लेकिन उन्होंने अपनी आँँखे नीचे नहीं की। जिससे घुस्सा होकर गौरी ने पृथ्वीराज चौहान की आँखों में जलती हुई सलाखें घुसा कर उनके आँखे जला दी। 

इसके बाद भी गोरी ने उन पर कई जुल्म किए, परन्तु जब पृथ्वीराज चौहान ने हार नहीं मानी तो अंत में उनको मृत्यु दण्ड देने का फैसला किया। 

वहीं जब इस बात का पता पृथ्‍वीराज चौहान के मित्र चंदबरदाई को चला तो उन्‍होंने मोहम्मद गौरी से पृथ्‍वीराज की शब्‍दभेदी बाण कला चलाने की बात कही तो मोहम्मद गौरी हंसने लगा कि भला एक अंधा कैसे बाण चला सकता है लेकिन बाद में मोहम्मद गौरी ने अपने दरबार में तीरंदाजी की प्रतियोगिता का आयोजन करने के लिए राजी हो गए।

वहीं इस प्रतियोगिता में शब्दभेदी बाण चलाने में उस्ताद पृथ्वीराज चौहान ने अपने मित्र चंदबरदाई के दोहों के माध्यम से अपनी अद्भुत कला दिखाएँ और भरी सभा में पृथ्वीराज चौहान ने चंदबरदाई के दोहों की सहायता से मोहम्मद गौरी की दूरी और दिशा को समझते हुए गोरी के दरबार में ही उसका वध कर दिया यह दोहा कुछ इस प्रकार था -

"चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण,

ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान" 

इसके बाद पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई ने अपने दुश्मनों के हाथों मरने के बजाय एक-दूसरे पर बाण चलाकर अपनी जीवन लीला खत्म कर दी वहीं जब राजकुमारी संयोगिता को इस बात का पता लगा तो उन्होंने भी पृथ्वीराज चौहान के वियोग में जोहर कर लिया। 

(जोहर का मतलब अपने आप को आग में समर्पित कर देना जैसे सीता माता ने अग्नि परीक्षा दी थी कुछ उसी तरह) और अपने प्राण त्‍याग दिए।

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