शेर शाह सूरी की प्रशासन व्यवस्था, ईमारते और उत्‍तराधिकारी...?

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शेर शाह सूरी की प्रशासन व्यवस्था, निर्माण कार्य एवं उनके उत्तराधिकारी:

शेर शाह सूरी पर लिखी गई प्रमुख पुस्तकें:

"शेरशाही" पुस्तक को दामोदर लाल गर्ग द्वारा लिखा गया है, जिसमें बताया गया है कि शेर शाह सूरी ने किस प्रकार मुगल जैसे शक्तिशाली साम्राज्य को भारत से बहार निकाल फेका था। 

इसके अलावा दूसरी पुस्तक "तारीख-ए-शेरशाही" इस पुस्तक को "अहमद यादगार" नामक लेखक द्वारा लिखा गया था। यह पुस्तक "अब्बास खां सरवानी" द्वारा लिखी गई पुस्तक "तोहफत-ए-अकबरशाही" को ध्यान में रखते हुए लिखी गई थी। इस पुस्तक में शेर शाह सूरी के जीवन की घटनाओं को दर्शाया गया है।  

तीसरी पुस्तक "सर ऑलफ कैरोई" द्वारादिल्‍ली के पठान राजाओं के इतिहास के बारे में, "द पठान्‍स्" लिखी गई है।

शेर शाह सूरी का मकबरा:

शेर शाह सूरी का मकबरा स्वयं शेर शाह सूरी द्वारा ही बनवाया गया था। जो बिहार के सासाराम शहर में स्‍थित है। यह मकबरा भारतीय-इस्‍लामी वास्‍तुकला का एक उदाहरण है। इस मकबरे को "मीर मुहम्‍मद अलीवाल खाँ" नामक वास्‍तुकार द्वारा तैयार किया गया था। 

जिसे 1540 ई. से 1545 ई. के मध्‍य बनाया गया था। इस मकबरे को लाल बलुआ पत्‍थर से बनाया गया है] जिसकी ऊँचाई 122 फिट है। यह मकबरा एक कृत्रिम झील के बीचो-बीच बनाया गया है। जो एक अष्‍टभुजिय मकबरा हैजिसके ऊपर एक गुंबद है। 

यह मकबरा शेर शाह सूरी की मृत्‍यु के तीन महीने बाद  16 अगस्‍त, 1545 ई. को बनकर तैयार हुआ था।

निर्माण कार्य:

1.उत्‍तर-पश्‍चिमी सीमा पर "रोहतासगढ़" नामक एक किले का निर्माण करवाया था।

2. कन्‍नौज नगर जो उजड़ चुका थाउसके स्‍थान पर "शेरसूर" नामक नए नगर की स्‍थापना की गई।

3."किला-ए-कुल्‍हा" एक मस्‍जिद है जो दिल्‍ली में स्‍थित है। जिसका निर्माण भी शेर शाह सूरी द्वारा किया गया था। 

sher shah suri ki prasasan vaivastha
शेर शाह सुरी के सुधार कार्य

GT Road की मरमत:

वर्तमान में GT Road को NH1 और  NH2 को मिलाकर बनाया गया है उसकी मरमत भी शेर शाह सूरी ने करवाई थी। जो एक लम्‍बी सड़क थीबंगाल से लेकर पाकिस्‍तान तक जाती थी। इस सड़क का मरमत भी इसीलिए करवाई गई थी ताकि व्‍यापार व्‍यवस्‍था और सेना के आवागमन में कोई दिक्‍कत न हो।

इसके अलावा सड़कों पर यात्रियों की सुविधा के लिए उसने हर दो कोस की दूरी पर एक सराय भी बनवाई थीजिसे अब हम विश्राम गृह या धर्मशाला के रूप में जानते हैं। माना जाता है कि शेर शाह सूरी ने उस समय लगभग 1700 सरायों का निर्माण करवाया थाजहाँ पर व्‍यापारी और यात्री रूक सकते थे।

डाक सेवाओं की शुरूआत:

शेर शाह सूरी ने डाक पोस्‍ट को तेजी से एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर पहुँचाने के लिए घोड़ों और उसके साथ घुडसवारों की नियुक्‍ति भी की थी ताकि डाक को जल्‍दी-से-जल्‍दी स्‍पीड पोस्‍ट की तरह घोड़े पर बैठकर पहुंचाया जा सके।

भमि सुधार कार्य:

शेर शाह सूरी के समय में किसानों को जमीन के पट्टे दिए जाते थे और बदले में उनसे एक कबूलनामा लिखवाते थेजिसे "कबूलिया-पत्र"  भी कहा जाता था। इसके द्वारा किसानों से कबूल करवाया जाता था कि आप हमें समय पर लगान का भुगतान करेंगे।

इस प्रकार सरकारी जमीन किसानों को दी जाती थी और इसके बदले में खेती करवाकर उनसे "कर" वसूल किया जाता था। 

इसके अलावा शेर शाह सूरी ने अपने समय में भूमि की माप करवाने के लिए दो प्रणालियों को उपयोग किया था। "सिकन्‍दरी गज" और दूसरी "सन-ए-डंडी" । 

जिनके माध्‍यम से वह किसानों को जमीन माप करा कर देता था ताकि किसानों से उचित लगान वसूल किया जा सके। मुख्‍य रूप से इन दो प्रणालियों का आकार "31 अंगुल या 32 इंच" का होता था।

सिक्कों का चलन:

शेर शाह सूरी द्वारा पुराने सिक्‍कों की जगह 2 नए सिक्‍कों को चालू किया गया थाजिनमें - "चाँदी के रूपए"  जिसका वजन 180 ग्रेन होता था और 180 ग्रेन के सिक्‍के को ही उस समय 1 रूपए के रूप में स्‍वीकार किया जाता था।

शेर शाह सूरी के उत्‍तराधिकारी -

शेर शाह सूरी के पुत्र थेकुतुब खाँआदिल खाँ और जलाल खाँ। जिसमें से कुतुब खाँ की मृत्‍यु रायसीन के युद्ध के बाद स्‍वयं आत्‍महत्‍या कर लेने से हो जाती है। 

अब बात आती है आदिल खाँ और जलाल खाँ कि की इन दोनों में से किसे उत्‍त्‍राधिकारी बनाया जाएचूँकि आदिल खाँ बड़ा बेटा था इसलिए उसे उत्‍तराधिकारी बनने का अधिकार था

लेकिन आदिल खाँ को वहाँ के सरदार पसंद नहीं करते थे। इसलिए जलाल खाँ को शेर शाह सूरी का उत्‍तराधिकारी बना दिया जाता हैजिसके बाद में वह "इस्‍लाम शाह" की उपाधि धारण करता है। 

इस प्रकार इस्‍लाम शाह 1545-1553 ई. तक सूर साम्राज्‍य का उत्‍तराधिकारी बन कर कार्य करता है।इसके बाद आदिल खाँ जो जलाल खाँ का बड़ा भाई थावह जलाल खाँ के विरूद्ध विद्रोह कर देता,

जिसे जलाल खाँ ने जल्‍द ही दबाने में सफल हो जाता है और इस प्रकार जलाल खाँ जो इस्‍लाम शाह के नाम से शासक बना था। वह पूर्णतया दिल्‍ली का शासक बन जाता।

इसके बाद इस्‍लाम शाह के समय में कई जगहों पर अफगान सरदारों ने विद्रोह करने का प्रयास कियालेकिन इस्‍लाम शाह ने सभी जगहों पर घुमकर सरदारों के विद्रोह को दबा दिया था। 

इस्‍लाम शाह के बारे में कहा जाता है कि उन्‍होंने अपने समय में इन विद्रोह को ऐसा दबाया था कि वहाँ के प्रान्‍तिय सरदार उनके जूते तक को सलाम करने लग गए थे। 

इसका मतलब है कि वह एक क्रूर शासक था। जिसने अपनी तलवार के दम पर एक मजबूत और बिल्‍कुल निर्दय शासन स्‍थापित कर दिया था।

जिसके कारण बाद में सूर साम्राज्‍य का पतन भी हो जाता हैक्‍योंकि अत्‍यधिक तनाव में कोई भी साम्राज्‍य ज्‍यादा समय तक नहीं टिक सकता है। इसके कुछ समय बाद इस्‍लाम शाह की मृत्‍यु एक बिमारी के चलते 1553 ई. में हो जाती है। 

उसकी मृत्‍यु होने के बाद यह साम्राज्‍य अब बिखरने की स्‍थिति में पहुँच गया था। इस्‍लाम शाह की मृत्‍यु के बाद उसके पुत्र "फिरोज शाह" को उसका उत्‍तराधिकारी बनाया जाता हैजिसकी उम्र मात्र 12 वर्ष की थी।

जिसे शासक बनने के मात्र 3 दिन बाद ही उसके मामा "मुबारिज खाँ" ने मार दिया था और शूर वंश की गद्दी पर अपना अधिकार कर लिया। मुबारिज खाँ ने शासक बनते ही "मुहम्‍मद आदिल शाह" की उपाधि धारण की थी किन्‍तु इस क्रम में सभी अफगान सूबेदार अपनी-अपनी जगह उभरने लगे और देखते ही देखते सूर साम्राज्‍य 5 भागों में बट गया।

मुबारिज खाँ जो मुहम्‍मद आदिल शाह के नाम से शासक बना था। वह भागकर चुनार और बिहार के क्षेत्र में चला जाता है। इस प्रकार मुहम्‍मद आदिल शाह का जो शासन क्षेत्र था वह चुनार से लेकर बिहार तक हो गया

लेकिन इसी बीच एक प्रमुख शासक पंजाब के क्षेत्र में उभरता हैजिसका नाम सिकंदर शाह सूरी था। जो पंजाब से लेकर आगरा और दिल्‍ली तक अपना अधिपत्‍य कर लेता है। इस प्रकार से कहा जाए तो सूर साम्राज्‍य पांच भागों में विभाजित हुआ था। लेकिन दो प्रमुख शासक उभरकर सामने आते हैं। 

एक सिकंदर शाह सूरी और दूसरा मुहम्‍मद आदिल शाह। सिकंदर शाह सूरी एक प्रतापि शासक थाजिसने अपने साम्राज्‍य का विस्‍तार पंजाब से लेकर  आगरा और दिल्‍ली तक कर लिया था।

जिसके बाद में हुमायूँ पुन: भारत में प्रवेश करता है और भारत के कुछ प्रदेशों पर आक्रमण कर उन्‍हें जीत लेता है। जब इस बात का पता सिंकदर शाह को लगता है तो वह हुमायूँ को रोकने के लिए आगे बढ़ता है और 1555 ई. में सरहिंद नामक स्‍थान पर दोनों के बीच युद्ध शुरू होता है।

जिसमें हुमायूँसिकंदर शाह सूरी को पराजित कर देता है और यहाँ से पुन: मुगल साम्राज्‍य की स्‍थापना हो जाती है। हांलाकि हुमायूँ का आक्रमण इस्‍लाम शाह के समय भी हुआ था लेकिन उसने हुमायूँ के आक्रमणों को असफल कर दिया था।

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