Prithviraj Chauhan and Rani Sanyogita ki Prem Kahani.
यह प्रेेम कहानी कुछ इस तरह शुरू होती है जब पृथ्वीराज चौहान के अद्भुत साहस और वीरता के चर्चे चारो तरफ हो रहे थे। तभी राजा जयचंद की बेटी संयोगिता जो कि पृथ्वीराज चौहान की मौसी की लड़की भी थी।
वह पृथ्वीराज चौहार की बहादुरी के किस्से सुनकर उनकी ओर आकर्षित हो जाती है और पृथ्वीराज चौहान के प्रति उनके दिल में एक प्रेम की भावना उत्पन्न हो जाती है और वे दोनों चोरी छिपे गुप्त स्थानों पर मिलने लगते हैं।वही जब दूसरी तरफ इन दोनों की प्रेेम कहानी का पता राजा जयचंद को चलता है तो वे रानी संयोगिता के विवाह के लिए स्वयंवर करने का फैसला करते हैं। स्वयंवर से तात्पर्य यह है कि लड़की अपनी इच्छा से अपना वर चुन सकती थी। स्वयंवर करने से पहले राजा जयचन्द सम्पूर्ण भारत पर विजयी प्राप्त करने के लिए एक अश्वमेघ यज्ञ करवाते हैं, जिसमें सभी राजाओं को आमंत्रित किया जाता है।
जहाँँ पर सभी छोटे-बड़े राजा भाग लेते हैं, परन्तु पृथ्वीराज चौहान और समरसिंह यज्ञ में हिस्सा नहीं लेते हैं, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि क्रूर और घमंड़ी राजा जयचंद का पूरे भारत पर वर्चस्व कायम हो।
वहीं राजा जयचंद तो पहले से ही अपने ससुर द्वारा दिल्ली की गद्दी पृथ्वीराज चौहान को देने के कारण उनसे घृणा करते थे और अब पृथ्वीराज चौहान ने यज्ञ में भी भाग नहीं लिया। इस कारण वे अपने आपको अपमानित महसूस करते हैं और जब अपनी बेटी का स्वयंवर करवाते हैं तो वे देश के कई छोटे-बड़े राजकुमारों को न्यौता देते हैं।
परन्तु पृथ्वीराज चौहान को न्यौता नहीं देते और उल्टा उन्हें अपमानित करने के लिए द्वारपालों के स्थान पर पृथ्वीराज चौहान की मुर्तियाँँ लगा देते हैं। वहीं जब दूसरी तरफ पृथ्वीराज चौहान को इस बात का पता चलता है कि राजा जयचंद ने उन्हें अपमानित करने के लिए द्वारपालों के स्थान पर उनकी मुर्तियाँ लगा दी है।
rani sanyogita and prithviraj chauhan
तो वे अपनी प्रेमिका को पाने के लिए एक गुप्त योजना बनाते हैं और स्वयंवर के दिन चुपके से जाकर उन मूर्तियों के पिछे छिप जाते हैं। वहीं जब स्वयंवर का दिन आता है तो सभी छोटे-बड़े राजा रानी संयोगिता से विवाह करने के लिए दरबार में उपस्थित होते हैं और स्वयंवर शुरू होता है।
जिसके बाद रानी संयोगिता अपने हाथों में वरमाला लिए हुए एक-एक कर सभी राजाओं के पास से गुजरती है और जब अन्त में उसे कहीं पर भी पृथ्वीराज चौहान नजर नहीं आते हैं। तब उनकी नजर द्वार पर खड़ी पृथ्वीराज चौहान की मुर्ति पर पड़ती तो वह जाकर उस मूर्ति के गले में वरमाला डाल देती है।
जिसे देखकर स्वयंवर में आए सभी राजा खुद को अपमानित महसूस करते हैं और उनके बीच विवाद चालू हो जाता है तभी पृथ्वीराज चौहान अपनी गुप्त योजना के मुताबिक द्वारपाल की मूर्तियों के पिछे से बाहर निकलकर आते हैं और सभी राजाओं को युद्ध के करने के लिए आमंत्रित कर रानी संयोगिता को लेकर दरबार से बाहर निकल जाते हैं।
उसके बाद राजा जयचंद की सेना उसका पिछा भी करती है, परन्तु वे पकड़ नहीं पाती है। जिसके बाद राजा जयचंद और पृथ्वीराज चौहान के बीच कई युद्ध भी होते हैं परन्तु राजा जयचंद उन्हें हरा नहीं पाता है।
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