Happy Raksha Bandhan : रक्षा बंधन क्‍यों मनाया जाता हैं और कब से मनाया जा रहा हैं? इसकी कहानी क्या है?

रक्षा बंधन क्‍यों मनाया जाता हैं और इसके पिछे की कहानी क्‍या हैं?

Raksha Bandhan: जैसे कि हम सब जानते हैं कि श्रावण माह शिव भक्ति के लिए एक उत्सव का अवसर माना जाता है। इसके साथ ही श्रावण माह की पूर्णिमा और जन्म अष्टमी पर पूरे देश में उत्‍साह के साथ राखी का त्‍यौहार मनाया जाता है यह त्यौहार न केवल भाई-बहन के प्रति प्रेम का प्रतीक है।

अपितु बहन का अपने भाई के प्रति अटूट विश्वास और सम्पूर्ण परिवार को एक बंधन में बांध के रखने का एक जरिया है। पुरातन काल से मनाए जा रहे इस रक्षा बंधन के त्‍यौहार के पीछे का क्‍या कारण है? तो आईए आज हम इस Article के माध्‍यम से समझते हैं।

Raksha Bandhan का त्यौहार कब और क्यों आरम्भ हुआ? इस सन्दर्भ में दो प्रमुख पौराणिक कथाएँ हैं, जिनमें एक द्वौपर युग से सम्‍बन्‍धित है तो दूसरी महाभारत काल से -

1. द्वौपर युग -

यह तो आप जानते ही होंगे कि द्वौपर युग में देवताओं और दानवों के बीच हमेशा युद्ध होते ही रहते थे। दानव हमेशा इसी फिराक में रहते थे कि किस प्रकार देताओं के अमृत और स्‍वर्ग को प्राप्‍त किया जाए। इसके लिए वे कई वर्षों तक घोर तपस्‍या भी किया करते थे तथा ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश से अपना मन चाहा वरदान प्राप्‍त करते थे।


जिसके कारण देवताओं को कई बार बुरे परिणामों का सामना भी करना पड़ता था। ऐसे ही एक कहानी है राजा बली की जो जन्‍मे तो राक्षस कुल में थे, परन्‍तु उनका व्‍यवहार राक्षसों जैसा बिल्‍कुल भी नहीं था। राजा बलि भक्‍त प्रहलाद के पुत्र थे और विष्‍णु भगवान के भक्‍त थे। इसके साथ ही वे देवाधिदेव महादेव के भी परम भक्‍त थे, जिनसे उन्‍होंने कई सारे वरदान भी प्राप्‍त किए थे।


रक्षा बंधन क्‍यों मनाया जाता हैं
Happy Raksha Bandhan

 

एक समय की बात है जब राजा बलि 101 यक्ष संपूर्ण करने का अनुष्‍ठान करते हैं और यज्ञ पूरा करने में लग जाते हैं जब इस बात का पता देवताओं को लगता है तो वे चिंतित हो जाते हैं कि कहीं राजा बलि ने इन 101 यज्ञों को सम्‍पूर्ण कर लिया तो कहीं वे अन्‍य राक्षसों की तरह सम्‍पूर्ण ब्रह्माण्‍ड में आतंक ने मचा दें।

 

इस परेशानी के हल हेतु देवता गण श्री हरि विष्‍णु के पास पहुँचते है और उनसे मदद की मांग करते हैं। तभी भगवान श्री हरि विष्‍णु देवताओं की बात सुनकर, राजा बलि के पास एक बाल ब्राह्मण के रूप में पहुँचते हैं और उनसे दान के रूप में तीन पग भूमि मांगते हैं राजा बलि को महादानी भी कहा जाता है। क्योंकि वे अपने द्वार पर आए किसी भी फकीर को खाली हाथ नहीं जाने देते थे।

 

इसलिए राजा बलि उन्‍हें वचन देते हैं कि आपकी इच्‍छा जरूर पुरी की जाएगी। तभी श्री हरि विष्‍णु अपना विराट रूप धारण करते हैं और अपना एक पैर स्‍वर्ग पर रखते हैं और दूसरा पैर धरती पर अब राजा बलि सोच रहे थे कि तीसरा पैर कहाँ पर रखवाएँ। तभी उन्‍होंने अपना सिर आगे किया और कहा कि आप तीसरा पैर मेरे सर पर रख दीजिए।

 

राजा बलि की इसी दानवीर नीति से भगवान विष्‍णु बहुत प्रसन्‍न होते हैं और उनसे वरदान मांगने के लिए कहते हैं तभी राजा बलि उनसे सदा अपने सामने रहने का वरदान मांगते हैं। फिर जिस प्रकार भगवान ने उनसे धरती और स्‍वर्ग पर रहने का अधिकार छीन लिया था इसलिए वे पाताल लोग चले जाते हैं जहाँ पर भगवान विष्‍णु को भी उनके साथ बैकुण्‍ड छोड़कर जाना पड़ता है।

 

वहीं दूसरी ओर माता लक्ष्‍मी भगवान श्री हरि विष्‍णु के बिछड़ जाने से दुविधा में पड़ जाती है और इस समस्या के निवारण हेतु भगवान शिव जी के पास पहुँचती है और उनसे मदद की मांग करती है तभी भगवान शिव उनसे कहते हैं कि आप राजा बलि के पास जाकर उन्‍हें किसी बंधन में बांध कर उनसे उपहार स्‍वरूप श्री हरि विष्‍णु को मांग ले। वे बड़े दानी है आपको मना नहीं करेंगे।

 

तभी लक्ष्‍मी माता और उनकी सहायता के लिए आए वासुकी नाग, राजा बलि के पास पाताल लोक पहुँचते हैं और जहाँँ पर वासुकी नाग एक रक्षा सूत्र का रूप धारण करते हैं जिसे माता लक्ष्‍मी, राजा बलि के हाथ में बांध देती है तभी राजा बलि उन्‍हें वचन देते हैं कि मांगों बहना क्‍या चाहिए। तभी माता उनसे उपहार के रूप में श्री हरि विष्‍णु को मांग लेती है।

 

राजा बलि अपना वचन निभाते हैं और उन्‍हें श्री हरि विष्‍णु वापस दे देते हैं और कहते हैं कि वे सदैव उनकी रक्षा करेंगे और साथ ही यह भी कहते हैं कि आज से जो भी स्‍त्री किसी पुरूष को रक्षा सूत्र बांधकर मन से उसे अपना भाई स्‍वीकार करेगी। वह भाई सदैव उसकी रक्षा करेगा। तभी से अब तक श्रावण माह में पूर्णिमा के दिन यह रक्षा बंधन का त्‍यौहार मनाया जा रहा है।  

 


रक्षा बंधन क्‍यों मनाया जाता हैं
Happy Raksha Bandhan

2. महाभारत काल -

कहानी कुछ इस तरह है कि महाभारत के समय भगवान श्रीकृष्ण की चाची "श्रुतदेवी" ने एक विक्रत(अपंग) बच्चे को जन्म दिया था, जिसका नाम "शिशुपाल" था। उस बच्चे के बारे में ऋषियों ने भविष्यवाणी की थी कि यह बच्चा जिस व्यक्ति के स्पर्श से ठीक होगा उसी के हाथों से इसकी मृत्यु भी होगी। जिसके पश्चात् एक दिन जब भगवान श्रीकृष्ण अपनी चाची से मिलने उनके घर गए थे तभी वे बच्चे को अपनी खोद में उठाते हैं खिलाने के लिए और वह बच्चा पूरी तरह से ठीक हो जाता है और खेलने लगता है। 

जिसे देख भगवान श्रीकृष्ण की चाची बहुत खुश होती है, परन्तु वह दु:खी भी होती है, क्योंकि उसे पहले से ही पता था कि जिसके स्पर्श से यह बच्चा ठीक होगा उसी के हाथों से उसकी मृत्यु भी होगी। तभी चाची भगवान श्रीकृष्ण से कहती है कि तुम इस बच्चे की गलतियों को माफ कर दोगेे और कभी भी इसका वध नहीं करोगे। 

चाची की इस प्रार्थना को सुनकर भगवान श्रीकृष्ण उन्हें वचन देते हैं कि ठीक है मैं शिशुपाल की गलतियों को माफ कर दूँगा, परन्तु यदि इसने १०० गलतियों से अधिक गलतियाँ की तो मैं इसका वध करने के लिए विवश हो जाऊँगा।  

जिसके बाद दिन बितते हैं और वे बड़े होते हैं। बड़े होने के बाद शिशुपाल चेड़ी नामक राज्य के राजा बनते हैं। राजा बनने के बाद वे अपनी प्रजा पर बड़ी क्रूरूरता से अत्याचार करते हैा और उन्हें परेशान करते हैं। यही नहीं वे इतने घंमड़ी और अहंकारी बन जाते हैं कि वे अपने आपको सर्व शक्तिशाली और भगवान मानने लगते हैं।

इसी क्रम में उन्होंने कई बार भगवान श्रीकृष्ण का भी भरी सभा के सामने अपमान कर देते थे, परन्तु भगवान श्रीकृष्ण अपने दिए हुए वचन के कारण उसकी हर गलती को नादान समझकर माफ कर देते थे, परन्तु शिशुपाल की क्रूरूरता दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है और वे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिए हुए वचन के अनुसार १०० गलतियों का आकड़ा पार कर देते हैं। किन्तु फिर भी वे अपने अहंकार के नशे में डूबे रहते हैं और एक दिन भरी सभा में श्रीकृष्‍ण भगवान का अपमान कर देते हैं जिससे वे श्रीकृष्‍ण बहुत घुस्‍सा हो जाते हैं और अपना सुदर्शन चक्र छोड़ कर उसका वध कर देते हैं।

जब वे सुदर्शन चक्र को घुस्‍से में छोड़ते हैं तो उनकी उंगुली से खुद बहने लग जाता है जिसे रोकने के लिए सभी लोग इधर-उधर कुछ बांधने के लिए ढुढ़ते हैं, लेकिन द्रोपती अपनी साड़ी का पल्‍लू फाड़कर उनकी उंगली में बांध देती है। तभी भगवान श्रीकृष्‍ण उन्‍हें वचन देते हैं कि आज से तुम मेरी बहन हो और मैं आपकी हर समस्‍या से निपटने में सहायता करूँगा और सदैव आपकी रक्षा करूँगा।  

उसके बाद जब कौरवों ने भरी सभा में द्रोपती का चीर हरण किया था तब भगवान श्रीकृष्‍ण ने ही उनकी सहायता की थी और उनकी साड़ी को खत्‍म नहीं होने दिया था। इस प्रकार श्रीकृष्‍ण ने अपनी बहन की रक्षा कर एक भाई होने का फर्ज अदा किया था। तभी से जन्‍म आष्‍टमी के दिन रक्षा बंधन के उत्‍सव को मनाया जा रहा है।


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