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अकबर द्वारा किए गए प्रमुख सुधार -
समाज सुधार :
1. बहूू विवाह पर रोक - इस प्रथा के द्वारा अकबर ने दो शादियाँँ करने पर रोक लगा दी। किन्तु यदि पहली पत्नी उनके वंश को बढ़ाने में असमर्थ है तब वह इस स्थिति में दूसरी शादी कर सकता था।
2. विधवा विवाह को प्रोत्साहन - अकबर ने विधवा विवाह को बढ़वा दिया था और स्वयं ने भी बैरम खाँँ की विधवा से विवाह किया था।
3. बाल विवाह पर रोक - अकबर ने बाल-विवाह पर रोक लगाकर लड़के एवं लड़कियों की उम्र तय कर दी थी। जिसमें लड़की की उम्र 14 साल और लड़के की उम्र 16 साल कर दी थी। यदि कोई व्यक्ति इस उम्र से पहले शादी करता था तो उसे कड़ा दण्ड दिया जाता था।
4. सत्ती प्रथा और बाल हत्या पर रोक - पहले समाज में यदि किसी औरत का पति मर जाता था तो सत्ती प्रथा के अनुसार उसे भी मरना होता था, जिस पर अकबर ने रोक लगा दी थी। इसके अलावा कई समाजों में यह प्रथा भी लागू थी कि अगर उनके घर में बच्ची का जन्म हुआ है तो उसे जन्म के समय ही मार दिया जाता था। इस पर भी अकबर ने रोक लगा थी।
5. अन्तर्जातिय विवाह - को प्रोत्साहन दिया था।
Akbar History |
6. वैश्यालयों पर प्रतिबंध - अकबर ने वैश्याओं के बूरे प्रभाव से समाज को बचाने के लिए सभी वैश्यालयों को राज्यों से दूर शैतानपुरी नामक नगर में स्थापित करवाया था। ताकि कोई भी शरीफ व्यक्ति पर उसका बुरा प्रभाव न पड़े।
7. दास प्रथा का अंत - 1562 ई. में अकबर द्वारा दास प्रथा का अंत कर दिया था।
8. तीर्थकर को समाप्त - 1563 ई. में अकबर ने हिन्दूओं से लिए जाने वाले तीर्थकर को समाप्त कर दिया था।
9. पर्दा या पेटिकोट शासन का अंत - 1562-64 ई. तक आते-आते अकबर ने पर्दा शासन या पेटिकोट शासन को समाप्त कर दिया था।
10. जजिया कर की समाप्ति - 1564 ई. में अकबर ने जजिया कर को समाप्त कर दिया था। जजिया कर उन व्यक्तियों से लिया जाता था जो गैर मुस्लिम होते थे। अत: इस कर को समाप्त कर उसने हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया था तथा उनके बीच बनी दूरी को कम करने का प्रयास किया था।
निर्माण कार्य -
1. 1571 ई. में अकबर ने आगरा के पास फतेहपुर सीकरी नामक एक नगर की स्थापना करवाई थी और दिल्ली से अपनी राजधानी को स्थानांतरित कर फतेहपुर सीकरी कर दिया था। इसके अलावा उन्होंने वहाँँ पर कई महलों का भी निर्माण करवाया था।
2. 1573 ई. में अकबर ने अपनी गुजरात विजयी के पश्चात् फतेहपुर सीकरी में बुलन्द दरवाजे का निर्माण करवाया था।
- आगरा का लाल किया
- लाहौर का किला
- फतेहपुर सीकरी नगर की स्थापना
- दीवाने खास का निर्माण
- पंच महल का निमार्ण
- जोधा बाई का महल
- बुलन्द दरवाजा
- दिल्ली में हुमायूँ का मकबरा
धार्मिक सुधार -
1. 1575 ई. में अकबर ने इबादत खाने की स्थापना करवाई थी, चूँकि अकबर की धर्म के प्रति ज्यादा रूची थी। इस कारण उसने इबातन खाने की स्थापना करवाई थी, जहाँँ पर इस्लाम धर्म के गुरू आकर विभिन्न विषयों पर वाद-विवाद करते थे और समस्या का निराकरण किया करते थे।
चूँकि अकबर ने हरका बाई/जोधा बाई से विवाह किया था जो कि एक हिन्दू रानी थी। इसलिए अकबर का हिन्दू धर्म के प्रति और अन्य धर्मों के प्रति भी रूचि बढ़ गई थी। इस कारण उसने 1578 ई. में इबादत खाने को सभी धर्मों के लिए खोल दिया था।
2. महजर की घोषणा - अकबर द्वारा जब इबादत खाने को सभी धर्मों के धर्म गुरूओं के लिए खोल दिया गया था तो उसमें सभी धर्मों के धर्म गुरू आकर किसी समस्या पर अपना अलग-अलग मत देते थे। जिससे अकबर इस दुविधा में पड़ गया था कि किस धर्म गुरू की बात माने।
इस समस्या का निराकरण करने के लिए अकबर ने एक महजर की घोषणा की ताकि वह सही निर्णय ले सके। पहले होता यह था कि सभी धार्मिक निर्णय धर्म गुरू ही लेते थे, परन्तु अब महजर की घोषणा के बाद यह सारे अधिकार राजा के पास आ गए ताकि वह सभी धर्म गुरूओं की बात सुनकर अपना फैसला दे सके।
3. दीन-ए-ईलाही - 1582 ई. में अकबर ने दीन-ए-ईलाही धर्म की स्थापना की थी। इस धर्म में अकबर द्वारा सभी धर्मों की अच्छाईयों को मिलाकर एक सार्वभौमिक धर्म बनाने का प्रयास किया था, जिसमें सभी धर्म के लोग प्रवेश कर सकते थे। इस धर्म को अपनाने के कुछ नियम थे -
पहला नियम इस धर्म को सिर्फ रविवार के दिन ही अपनाया जा सकता था। दूसरा नियम जो भी व्यक्ति इस धर्म को स्वीकार करेगा वह पहले अपनी पगड़ी उतारकर राजा के चरणों में रखेगा फिर राजा पुन: उस पगड़ी को उठाकर उस व्यक्ति के सर पर रखेगा। तीसरा नियम इस धर्म में तुम्हारा कोई धर्म गुरू नहीं होगा आपको राजा को ही अपना धर्म गुरू मानना पड़ेगा।
इसका नतीजा यह हुआ कि इस धर्म को न तो हिन्दुओं ने अपनाया और न ही अन्य किसी धर्म ने इसे स्वीकार किया। मात्र 18 लोग ही इस धर्म को स्वीकार कर पाए थे उसमें से सिर्फ एक मात्र हिन्दू बीरबल ही था।
विनसेट स्थिम नामक इतिहासकार ने अकबर द्वारा शुरू किए गए इस धर्म को उसके शासनकाल का सबसे मुर्खता पूर्ण कार्य या मूर्खता का प्रतीक बताया है।
4. 1583 ई. में अकबर द्वारा एक "इलाही संवत् केलेण्डर" की शुरूआत की गई थी।
5. 1585 ई. में अकबर ने अपनी राजधानी को फतेहपुर सीकरी से स्थानांतरीत कर लाहौर ले आया था।
सैन्य सुधार -
1. मनसबदारी व्यवस्था - मनसबदारी मध्य एशिया की एक व्यवस्था थी, जिसे "चंगेज खाँँ" ने अपनी सेना पर लागू किया था। उसी व्यवस्था को अकबर ने भी अपनी सेना में लागू करने का प्रयास किया था। यह एक प्रकार का सैन्य पद था, जिसमें कई प्रकार के पद आते थे। जिसका जितना बड़ा पद होगा वह उसके अनुसार ही अपने पास सैना और घोड़े और हाथी रख सकता था तथा आवश्यकता पड़ने पर राजा के साथ युद्ध में उसकी मदद करता था। इस व्यवस्था में सुबेदार जैसे ताकतवर पद शामिल थे।
2. घोड़ा दागना - इस प्रथा का आरम्भ "अलाउद्दीन खिलजी" द्वारा किया गया था जिसे आगे चलकर अकबर ने भी अपने शासनकाल में लागू किया था। इस प्रथा के माध्यम से अकबर अपने घोड़ों को एक विशेष प्रकार के चिन्ह से दाग देता था, जिससे युद्ध में लड़ते समय अपने सिखाए (Trend) हुए घोड़ों को पहचान सके।
3. हुलिया लिखना - इस प्रथा की शुरूआत भी "अलाउद्दीन खिलजी" द्वारा की गई थी, जिसे अकबर ने अपने शासनकाल में लागू किया था । जिसके माध्यम से सेनिकों की भर्ति करते समय उनके हुलिया को लिख लिया जाता था।
4. सिजदा एवं पेबोस - इस प्रथा की शुरूआत "बलबन" ने की थी, जिसे अकबर ने भी लागू किया था। इस प्रथा से तात्पर्य यह था कि अकबर के दरबार में जो भी लोग आएंगे वे अपना सर झुकार आएंगे और राजा के पैैरों को चुमकर उसे सलाम करेंगे।
भूमि सुधार -
1. जब्ती प्रणाली - जब्ती प्रणाली का सम्बन्ध भू-राजस्व से है अर्थात् भूमि पर लगान वसूल करना। इस प्रणाली की शुरूआत अकबर द्वारा की गई थी।
2. दहशाला बन्दोबस्त/टोड रमली व्यवस्था - इस व्यवस्था के माध्यम से किसानों के 10 साल के उगाए गए धान का विवरण निकाला जाता था और उसके अनुसार उस किसान से पैदा किए गए धान का 1/3 हिस्सा लगान के रूप में ले लिया जाता था।
चित्रकार -
- अब्दूर समद
- दसवंत
- बसावन
संगीतकार -
- तानसेन
- बैजू बाबरा
- बाज बहादूर
- बाबा रामदास
अकबर के प्रमुख नौ - रत्नों के नाम एवं उनकी विशेषताएँँ :
1. बीरबल -
- बिरबल का वास्तविक नाम "महेश दास" था।
- बिरबल का अकबर द्वारा कविराज की उपाधि दी गई थी, परन्तु वे कवि नहीं थेे।
- बीरबल दीन-ए-इलाही धर्म को अपनाने वाला एक मात्र हिन्दू था।
- बीरबल की मृत्यु युसुफजाई नामक कबीले से युद्ध करते समय हो गई थी।
तानसेन अकबर के दरबार में रहकर इस्लाम धर्म से इतने प्रभावित होते हैं कि वे इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेते हैं, जिसके बाद उन्हें अकबर द्वारा "कण्ठाभरणवासी विलास" की उपाधि दी जाती है। इसके अलावा तानसेन के द्वारा कई कृतियों/सुरों का निर्माण किया गया था जिसमें - मिया की टोड़ी, मिया की मल्हार, मिया की सारंग, दरबारी कन्हाड़ा आदि कृतियाँँ शामिल है।
3. अर्ब्दूरहीम - यह बैरम खाँँ का पुत्र था जिसे अपनी गुजरात विजयी के पश्चात् अकबर द्वारा "खान-ए-खाना" की उपाधि दी गई थी। इसके पहले यह उपाधि इनके पिता को भी दी गई थी। अर्ब्दूरहीम को शिक्षा के क्षेत्र में काफी रूचि थी। इसके अलावा जब अकबर ने अनुवाद विभाग की स्थापना की थी वहाँँ पर भी इन्होंने कार्य करके कई पुस्तकों का दूसरी भाषा में अनुवाद किया था।
4. अबुल फजल - अबुल फजल को कई विषयों कााज्ञान था। जैसे - इतिहास, दर्शन शास्त्र, साहित्य इसके अलावा इन्होंने अकबरनामा और आइने अकबरी की रचना भी थी। 1602 ई. में अकबर के पुत्र सलीम के कहने पर अबुल फजल की हत्या वीरसिंह बुन्देला द्वारा कर दी जाती है।
5. फैजी - यह अबुल फजल के बड़े भाई थे, जिन्हें राजकवि के रूप में अकबर के दरबार में रखा गया था। इसके अलावा इन्होंने कई यंत्रों का भी अनुवाद किया था।
6. मानसिहं - मानसिंह, अकबर के प्रमुख सेनापतियों में से एक था जिनके पिता का नाम भगवान दास था अकबर ने इनके यहाँँ पर वैवाहिक संबंध स्थापित किया था। इसके अलावा इन्होंने हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के विरूद्ध मुगलों की तरफ से सैना का नेतृत्व किया था।
7. टोडरमल - ये पहले शेरशाह सूरी के दरबार में भूमि सुधारक के पद पर स्थित थे। फिर सूर वंश के पतन के बाद ये अकबर के दरबार में भी उसी पद पर कार्य करने लगे थे। इन्होंने ही "दहसाला बन्दोबस्त व्यवस्था" की शुरूआत की थी।
8. मुल्ला दो प्याजा - इन्हें वाकपटूता तथा हाजिर जवाबी थेे। इसके अलावा ये काफी बुद्धिमान भी थे।
9. हकीम हुमाम - ये अकबर के सबसे भरोसेमंद रसोईया थे, जो रसोई घर में एक प्रबंधक के रूप में कार्य करते थे।
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