Akbar History in Hindi - अकबर की प्रमुख विजय और जीवन परिचय

Table of Contant:


जीवन परिचय - 

पूरा नाम         - जलालुद्दीन मुहम्‍मद अकबर

जन्‍म            - 5 अक्‍टूबर 1542 ई. (अमरकोट)

माता का नाम     - हमीदा बनो बेगम (सिया धर्म)

पिता का नाम     - हुमायूँ

राज्‍याभिषेक      - 14 फरवरी 1556 ई.(पंजाब कालानौर)

प्रधामंत्री         - बैरम खाँ (खान बाबा)

अकबरनामा      - अबुल-फजल (आईने अकबरी)

पुत्र             - सलिम


अकबर की प्रमुख विजय
Akbar ki Pramukh Vijayi

प्रारम्‍भिक संघर्ष - 

बैरम खाँ का संरक्षण (1556-1560 ई.) -

अकबर मात्र 14 वर्ष की अल्‍पआयु में ही राजगद्दी पर बैठ गया था। अत: वह बैरम खाँ के संरक्षण में रहकर ही राजा के रूप में शासन करना प्रारम्‍भ कर देता है। इसी बीच उसके मन में दिल्‍ली पर पुन: गद्दी प्राप्‍त करने की इच्‍छा उत्‍पन्‍न होती है। लेकिन दूसरी ओर दिल्‍ली का जो केन्‍द्र था वहाँ पर आदिल शाह का सेनापति हेमू आक्रमण कर वहाँ के गवर्नर तार्दीबेग को पराजित कर देता है और वहाँ पर अपना अधिकार कर लेता है।

जिसके बाद पंजाब के क्षेत्रों में बैठे अकबर को जब इस बात का पता चलता है तो उसे बहुत घुस्‍सा आता है और नतिजा यह होता है कि अकबर हेमू को पराजित करने के लिए दिल्‍ली की ओर बढ़ता है और पानीपत नामक स्‍थान पर दोनों के बीच युद्ध होता है। इस युद्ध को पानीपत के द्वीतीय युद्ध के नाम से जाना जाता है।

पानीपत का द्वितीय युद्ध 1556 ई. :

5 नवम्‍बर 1556 ई. को पानीपत का द्वीतीय युद्ध होता है, जिसमें एक तरफ हेमू और दूसरी तरफ अकबर और उसका सेनापति बैरम खाँ होता है। युद्ध में पूरी तरह से हेमू युद्ध जीत रहा होता है, लेकिन तभी हाथी पर बैठे हेमू की आँख में आकर एक तीर लग जाता है। जिसके कारण वह हाथी पर बने हुए गोल घेरे में गिर जाता है। हेमू के गिरने के बाद सेना को पता चलता है कि हेमू मारा गया और सेना में भगदढ़ मच जाती है और हेमू को पकड़कर अकबर के सामने लाया जाता है।

जहाँ पर बैरम खाँ उसके सर को काट करके उसे मृत्‍यु दण्‍ड देता है और इस प्रकार पानीपत के द्वीतीय युद्ध में अकबर की जीत हो जाती है और हेमू की हार। इसके साथ ही दिल्‍ली पर पुन: मुगलों की सत्‍ता स्‍थापित हो जाती है। इस युद्ध के बाद बैरम खाँ को वजीर के पद पर नियुक्‍त कर दिया जाता है और वह 1556-1560 ई. तक कार्य करता है और उसके बाद उसे मार दिया जाता है।

बैरम खाँ की मृत्‍यु (1560 ई.) -

बैरम खाँ के वजीर के पद पर नियुक्‍त होने के बाद बैरम खाँ का वर्चस्‍व कुछ ज्‍यादा ही बढ़ गया था जिसके कारण लोग उससे चलने लगे थे। खासकर के महिला समूह दल, जिसे हरमदल भी कहा जाता था। इसके अलावा जो दरबारी थे वे भी बैरम खाँ से जलते थे। इसका कारण यह था कि बैरम खाँ जो था वह सिया मुस्‍लमान था जबकि अधिकांश जो दरबारी सरदार थे। वे सुन्‍नी मुसलमान थे।

यही कारण था कि अकबर के दरबार में कोई भी बैरम खाँ को पंसद नहीं करते थे। दूसरी ओर अकबर ने भी कई ऐसे अवसर देखे थे, जब वह चाहता कुछ और था और बैरम खाँ करता कुछ और था। ऐसे में बैरम खाँ से अकबर की भी दूरियाँ बढ़ने लगी थी। जिसके कुछ समय बाद अकबर और बैरम खाँ के बीच तीलवाड़ा का युद्ध होता है जिसमें अकबर युद्ध जीत जाता है और कुछ शर्तों पर बैरम खाँ को छोड़ देता है।

जहाँ से बैरम खाँ मक्‍का की यात्रा पर निकल पड़ते हैं, लेकिन रास्‍ते में उसे मुबारक खाँ जो एक अफगान सरदार था वह बैरम खाँ पर आक्रमण कर देता है और उसे मार देता है। मुबारक खाँ एक अफगान सरदार का बेटा था जिसकी हत्‍या बैरम खाँ ने मच्‍छीवाड़ा के युद्ध में कर दी थी और 1560 ई. वह वर्ष आता है जब बैरम खाँ की मृत्‍यु हो जाती है। बैरम खाँँ की पुरी कहानी. 

साम्राज्य विस्तार के लिए अकबर द्वारा लड़े गए युद्ध:

मालवा - 1561 ई. -

मालवा का युद्ध 1561 ई. में मालवा के शासक बाजबहादूर और अकबर के सेनापति आधम खाँ के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में आधम खाँ युद्ध को जीत लेता है और मालवा की राजधानी सारंगपूर पर अधिकार कर लेता है और अत्‍यधिक मात्रा में यहाँ से धन और सम्‍पत्‍ति को लूटता है।

जिसके बाद वह इस लूटे गए धन को अकबर के राजकीय खजाने में जमा न करवा कर अपने पास ही रख लेता हैं जिसके बाद अकबर उसे चेतावनी भी देता है। धन जमा करवानी की, परन्‍तु आधम खाँ धन जमा करने के बजाय अकबर की ही हत्‍या करवाने का षड़यंत्र रचता है। इस बात से दु:खी होकर अकबर 1962 ई. में आधम खाँ को मरवा देता है। जिसके शोक में उसकी धाय माँ माहम अनगा भी 1962 ई. में ही मर जाती है।

चुनार का युद्ध 1561 ई्. -

इस युद्ध का नेतृत्‍व अकबर के दूसरे सेनापति आसफ खाँ ने किया था, जिसमें भी वह विजयी रहा था।

गोंडवाणा का युद्ध 1564 ई. -

गोंड़वाणा पर आक्रमण आसफ खाँ के भड़काने पर अकबर ने 1564 ई. में किया था। जहाँ का शासक उस समय वीर नारायण था। जिनकी उम्र कम होने के कारण वहाँ की वास्‍तविक शासक रानी दुर्गावति थी जो वहाँ पर शासन कर रही थी। रानी दुर्गावति इस युद्ध में बड़ी वीरता के साथ युद्ध करती है और आसफ खाँ को पहली बार पराजित कर देता है।

जिसके बाद आसफ खाँ 24 जून, 1564 ई. में पुन: दूसरी बार दोगुनी शक्‍ति और सेना के साथ गोड़वाणा पर आक्रमण करता है। जहाँ पर रानी दुर्गावति और उनके बेटे वीर नारायण और उनके दिवान आधारसिंह मिलकर मुगल सेना को तीन बार पीछे हटने पर मजबूर कर देते हैं। लेकिन अंत में रानी दुर्गावति को एक तीर उनकी गर्दन में और एक तीर उनकी आँखों में लग जाता है।

जिसके बाद उन्‍होंने अपने दिवान आधारसिंह से कहा कि आप हमारी गर्दन काट दे लेकिन जब आधारसिंह ने मना कर दिया तो उन्‍होंने स्‍वयं अपनी तलवार से अपने प्राण त्‍याग दिए और इस प्रकार इस युद्ध का अंत हो गया जिसमें अकबर की जीत हो जाती है।रानी दुर्गावति का पूरा इतिहास.

राजस्‍थान में राजपूतों पर विजय - 

राजस्‍थान में अकबर ने तीन तरह से राजपूत राज्‍यों पर अधिकार किया। पहला जिसमें अकबर ने विवाह किया, जिससे राजपूत राजाओं में संधिपूर्ण व्‍यवहार बन गया। दूसरा जहाँ पर राजपूत राजाओं से विवाह तो नहीं किया, परन्‍तु उनके बीच एक संधि हो गई और उन्‍होंने स्‍वेच्‍छा से अकबर की अधीनता स्‍वीकार कर ली।

तीसरा वह जहाँ पर अकबर ने युद्ध लड़े और उनके राज्‍यों को अपने साम्राज्‍य में मिलाया। इस प्रकार अकबर ने कई राजपूत राज्‍यों को अपने साम्राज्‍य में मिला लिया था, क्‍योंकि अकबर भी जानता था कि अगर मुझे सम्‍पूर्ण भारत पर शासन करना है तो राजपूत राज्‍यों को अपने अधीन करना ही होगा नहीं तो यह हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती खड़ी कर सकते हैं।

राजस्‍थान की कुछ महत्‍वपूर्ण विजय -

1. आमेर(जयपुर) -

1563 ई. में अकबर ने यहाँ पर आक्रमण किया, लेकिन आमेर के शासक राजा भारमल जिन्‍हें बिहारीमल भी कहा जाता है उन्‍होंने अकबर से युद्ध न करके अपनी स्‍वेच्‍छा से उसकी अधीनता स्‍वीकार कर ली और साथ ही अपनी पुत्री हरका बाई, जिन्‍हें जोधा बाई भी कहा जाता है उनका विवाह अकबर के साथ कर दिया और अकबर से संधि कर मित्रतापूर्ण सम्‍बन्‍ध बना लिए। इसके अलावा उनके पुत्र भगवानदास और पोते मानसिंह भी उनके साथ चले जाते हैं और मुगलों की सेवा में लग जाते हैं।

 2. मेवाड़ -

1564 ई. में अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण किया, जहाँ पर उस समय राणा उदयसिंह शासन कर रहे थे। अकबर उन्‍हें पराजित कर देता है, जिसके बाद राणा उदयसिंह भागकर गोगुन्‍दा चले। जहाँ पर 1572 ई. में होली के दिन उनकी मृत्‍यु हो जाती है। जिसके बाद उनके पुत्र महाराणा शासक बनते हैं और पुन: युद्ध करके अपने पिता द्वारा हारे हुए राज्‍यों को जीत लेते हैं, जिसके बाद 1576 ई. में हल्‍दी घाटी का एक महत्‍वपूर्ण युद्ध होता है।

जिसमें मुगलों की तरफ से मानसिंह और मेवाड़क की ओर से महाराणा प्रताप युद्ध का नेतृत्‍व करते हैं। इस युद्ध में महाराणा प्रताप घायल हो जाते है। जहाँ से उनको सुरक्षित युद्ध से बाहर झाला बीदा के द्वारा निकाला जाता है और स्‍वयं महाराणा प्रताप का राजचिह्न धारण करके युद्ध लड़ते-लड़ते शहिद हो जाते और इस प्रकार महाराणा प्रताप यह युद्ध हार जाते हैं और इसके बाद वे जंगलों में कुछ समय बिताते हैं और पुन: आक्रमण कर मेवाड़ को जीत लेते हैं।

इसके बाद 12 साल का सुखमयी जीवन जीने के बाद अपनी राजधानी चांवड़ में उनकी मृत्‍यु हो जाती है जिसके बाद उनके पुत्र अमरसिंह मेवाड़ के शासक बनते हैं और इस प्रकार अकबर कभी भी मेवाड़ राज्‍य को अपने अधीन नहीं कर पाता है। महाराणा प्रताप का पूरा इतिहास.

इसके अलावा मेड़ता, बीकानेर, रणथम्‍भौर, कालिंजर, मारवाड़ इन सभी राज्‍यों ने अकबर की अधीनता स्‍वीकार कर ली थी।

3. गुजरात विजयी -

1572 ई. में अकबर ने स्‍वयं गुजरात के सूरत शहर पर आक्रमण किया था जहाँ पर उस समय मुज्‍जफर खाँ शासन कर रहा था। जिसे अकबर ने पराजित करके सूरत को जीत लिया था। उसके 1 वर्ष बाद वहाँ पर पुन: विद्रोह हो गया था जिसे अकबर ने 1573 ई. में जाकर पुन: दबा दिया था। यही पर गुजरात विजयी के बाद अकबर ने पहली बार खम्‍बात की खाड़ी में समुद्र को देखा था। 

4. बिहार और बंगाल विजयी -

1574 ई. में अकबर और उसके सेनापति मुनिम खाँ दोनों ने मिलकर बिहार पर आक्रमण कर दिया। जहाँ पर उस समय दाऊद खाँ नामक शासक शासन कर रहा था और तेजी से आगे बढ़ रहा था, जिसे दबाने के लिए मुनिम खाँ और अकबर दोनों ने आक्रमण करके उसे हराकर भगा दिया। जिसके बाद बंगाल और बिहार को भी अपने अधीन कर लिया।

इसी क्रम में अकबर ने काबूल, कश्‍मीर, सिंध, उड़ीसा और बलूचिस्‍तान, कंधार पर भी आक्रमण करके उन पर विजय प्राप्‍त की थी।

5. दक्षिण भारत -

अकबर ने दक्षिण भारत में खानदेश, दौलताबाद, अहमदनगर और असीरगढ़ पर विजयी प्राप्‍त कर ली थी। जहाँ पर अहमदनगर का युद्ध महत्‍वपूर्ण माना जाता है क्‍योंकि उस समय अहमदनगर दक्षिण भारत का प्रवेश द्वार माना जाता था, जहाँ पर उसने आक्रमण करके वहाँ की शासिका चाँद बीबी को पराजित किया था।

अहमदनगर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ के किले की चाबी तक सोने की बनी हुई थी। यह युद्ध अकबर के जीवन का अन्‍तिम युद्ध साबित हुआ था, क्‍योंकि इस युद्ध के पश्‍चात् उसके बेटे ने गद्दी प्राप्‍त करने के विद्रोह कर दिया था। जिसके शोक में अकबर की मृत्‍यु हो गई थी।

पर्दा शासन(पेटीकोट शासन) - 

1560-64 ई. पर्दा शासन से तात्‍पर्य था महिलाओं की प्रधानता का बढ़ना अर्थात् शासन पर महिलाओं की प्रधानता का होना। इसे पेटीकोट शासन के रूप में भी जाना जाता है। इस समय शासन पर अकबर की धाय माँ माहम अनगा उसके पुत्र आधम खाँ और पुत्री जीजी अनगा शामिल थे। इसके अलावा अकबर की धाय माँ माहम अनगा का शासन पर प्रभाव बहुत ज्‍यादा था।

जिसके कारण अकबर मूल रूप से शासन नहीं कर पा रहा था। इसी दौरान 1562 ई. में आधम खाँ जो माहम अनगा का पुत्र था वह मालवा पर आक्रमण करता है और उसे जीत लेता है और वहाँ से बहुत अधिक मात्रा में लूटमार करता है। उसके बाद वह लूटे हुए धन को अकबर के राजकीय खजाने में जमा न करवा कर कुछ धन ही जमा करवाता है और अधिकांश धन अपने पास ही रख लेता है।

जब अकबर उसे धन जमा करवाने के लिए कहता है तो वह उल्‍टा अकबर की ही हत्‍या करवाने का षंड़यत्र रच देता है। जिसके बाद अकबर दु:खी होकर 1562 ई. में आदम खाँ की हत्‍या करवा देता है। आदम खाँ की मृत्‍यु के शोक में उसकी माँ माहम अनगा भी उसी साल मर जाती है और इस प्रकार मुगल सत्‍ता पर से पेटीकोट शासन या पर्दा शासन 1564 ई. आते-आते पूरी तरह से समाप्‍त हो जाता है। 


Post a Comment

0 Comments