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हर्यक वंश -
1. बिम्बिसार:
मगध का सबसे पहला वंश "हर्यक वंश" को माना जाता है जिसे "पितृहंता वंश" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस वंश के अधिकांश राजाओं ने अपने पिता की हत्या करके ही राजगद्दी को प्राप्त किया था।
हर्यक वंश का प्रथम शासक "बिम्बिसार" को माना जाता है जिन्होंने हर्यक वंश की स्थापना 544 ई.पू. में की थी। जिसके बाद उन्होंने एक "राजगृह" नामक शहर की स्थापना की और उसे अपनी पहली राजधानी भी बनायी थी।
इसके अलावा बिम्बिसार वह पहले भारतीय शासक थे
जिन्होंने अपने साम्राज्य विस्तार के लिए दूसरे राज्यों से युद्ध न करके उनसे
वैवाहिक सम्बन्ध बनाकर दहेज के रूप में मिले राज्यों से अपने साम्राज्य का
विस्तार किया था। इस क्रम में उन्होंने तीन विवाह किये थे -
पहला - "महाकोशला देवी" से किया था जो कि कौशल वंश की राजकुमारी थी।
दूसरा - "चेल्लना" से किया था जो वैशाली राज्य की राजकुमारी थी, जहाँ के राजा चेटक थे।
तीसरा - "क्षेमा" से किया जो मद्र पंजाब देश की राजकुमारी थी।
Magadha Dynesty |
महत्वपूर्ण बिन्दू -
बिम्बिसार के दरबार में एक
प्रसिद्ध "राजवैध" रहता था जिसका नाम "जीवक" था।
इनके बारे में दो बातें कही जाती है -
पहली बात जब "महात्मा बुद्ध"
बिमार हुए थे, तब उनके इलाज के लिए इसी
राजवैध जीवक को वहाँ पर उनकी सेवा के लिए भेजा गया था।
इसके अलावा "अवन्ति"
के राजा "प्रद्दोत" जब "पांडु" रोग से
ग्रसित थे तब भी उनकी सेवा में इसी राजवैध जीवक को वहाँ भेजा गया था।
बिम्बिसार की मृत्यु -
बिम्बिसार को अपने शासनकाल के अन्त में उनके पुत्र अजातशत्रु द्वारा गद्दी प्राप्त करने के लिए बन्दी बना लिया जाता है और वहीं पर कालकोटरी में उनकी हत्या करवा दी जाती है।
2. अजातशत्रु -
आजतशत्रु को "कुणिक" नाम से भी जाना जाता है जिन्होंने "492 ई.पू." अपने पिता बिम्बिसार की हत्या कर गद्दी प्राप्त की थी। शासक बनने के बाद उन्होंने सबसे पहले वैशाली तथा काशी महाजनपदों पर आक्रमण कर उन्हें जीत लिया था।
वैसे तो यह दोनों राज्य उनके मामाओं
के राज्य माने जाते थे जहाँ पर उनके पिता ने शादी कर वैवाहिक सम्बन्ध बनाए
थे, परन्तु अजातशत्रु एक अटेकिंग किस्म का शासक था।
महत्वपूर्ण बिन्दू -
"483 ई.पू." में गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण(मृत्यु) के पश्चात् अजातशत्रु के शासनकाल में मगध की राजधानी "राजगृह" में "प्रथम बौद्ध सभा" का आयोजन किया गया था जिसकी अध्यक्षता "महाकश्यप" ने की थी।
इसी
बौद्ध सभा में गौतम बुद्ध के प्रिय शिष्य "आनंन्द" द्वारा 2
प्रमुख पुस्तकें लिखी गई थी "सुत्त पिटक और विनय पिटक" ।
3. उदयन -
अपने वंशानुगत परम्परा को उदयन ने भी अच्छी तरह से निभाया था, इन्होंने
ने भी अपने पिता अजातशत्रु की हत्या कर गद्दी को प्राप्त किया था।
उदयन ने शासक बनते ही "गंगा, सोन और गंडक" नदी के संगम पर एक "नगर पाटलिपुत्र" की स्थापना की और अपनी राजधानी "राजगृह" से स्थानान्तरित कर "पाटलिपुत्र" कर लिया। जो कि सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा अच्छी जगह मानी जाती थी, क्योंकि वह चारों तरफ से जल मार्गों से घिरी हुयी थी।
शिशुनाग वंश -
1. शिशुनाग -
शिशुनाग वंश की स्थापना
"शिशुनाग" ने की थी। जो पहले एक आमात्य थे जो बाद में एक शासक
बने थे। इन्होंने "पाटलिपुत्र" को स्थानान्तरित कर "वैशाली"
को अपनी राजधानी बनाया था। शिशुनाग ने अपने शासनकाल में अवन्ति पर आक्रमण कर उसे
जीत लिया था। इसके बाद इनके पुत्र कालाशोक शासक बने थे।
2. कालाशोक -
कालाशोक ने "वैशाली"
से अपनी राजधानी पुन: "पाटलीपुत्र" स्थानान्तरित कर दी और
कालाशोक के शासनकाल में ही द्वितीय बौद्ध सभा का आयोजन 383 ई.पू. वैशाली
में हुआ था जिसकी अध्यक्षता "शवाकामी" ने की थी।
इसी बौद्ध सभा के
बाद से ही बौद्ध धर्म में विभाजन के लक्षण दिखने लग गए थे। और बौद्ध धर्म दो गुटों
में बंट गया था। "थेरवादी और महासांघिक"
थेरवादी संध के लोग गौतम बुद्ध के बताए
नियमों पर ही चलते थे जबकि महासांघिक संघ कुछ नए विचारों को भी शामिल करना चाहते
थे।
शिशुनाग वंश का अन्तिम शासक नन्दीवर्धन था।
नन्द वंश -
1. महापदमनन्द -
नन्द वंश की स्थापना
"महापदमनन्द" ने की थी जो भारत के एक मात्र शासक थे जिन्होंने एकराट
की उपाधि धारण की थी। इनके बारे में कहा जाता है कि ये इतने वीर और प्रभुत्वशाली
थे कि इन्हें पुराणों में "परशुराम का दूसरा अवतार" माना गया है।
महापदमनन्द ने अपने शासनकाल में कलिंग पर आक्रमण किया था और उसे जीतकर वहाँ से जैन धर्म के गुरू "जिनसेन" की मुर्ति उठा लाया था और मगध में उसकी स्थापना की थी। कलिंग में विजय के पश्चात् महापदमनन्द ने वहाँ पर "नहरों का निर्माण" करवाया था। इसकी जानकारी "हाथि गुफा" अभिलेख से प्राप्त होती है।
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