बौद्ध धर्म का इतिहास और उनके द्वारा किए गए कार्य : साथ ही उनकी मानयताएँ क्या थी...?

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बौद्ध धर्म का इतिहास:

6टी शताब्‍दी की जब शुरूआत हुई थी उस समय काफी परिवर्तन देखने को मिले थे। जिसमें लोहे की खोज के कारण आर्थिक क्रान्‍ति तेज हो गई थी और छोटे-छोटे राज्‍य मिलकर एक महाजनपद का रूप धारण कर चुके थे। वही दूसरी ओर कई धार्मिक धर्मों का भी उदय हुआ था। जिनमें दो प्रकार के धर्म थे पहला नास्‍तिक और दूसरा आस्‍तिक ।

नास्‍तिक - ऐसे धर्म जो आत्‍मा में तो विश्‍वास रखते थे, परन्‍तु भगवान में विश्‍वास नहीं रखते थे। उदा. "बौद्ध धर्म और जैन धर्म"

आस्‍तिक - ऐसे धर्म जो भगवान में अपनी आस्‍था रखते थे और मूर्ति पूजा भी करते थे। उदा. ब्राम्‍हृण धर्म और सनातन धर्म ।

जीवन परिचय -

जन्‍म                   - 563 ई.पू.(कपिलवस्‍तु) लुम्‍बनी, नेपाल

पिता                   - शुद्धोधन

माता                   - महामाया देवी - महाप्रजापति गौतमी

पुत्र                    - राहुल

बचपन का नाम          - सिद्धार्थ

घोड़े का नाम            - कंथक 

सारथी का नाम          - चन्‍ना  

पत्‍नी का नाम           - यशोधरा

गृह त्‍याग              - 29 वें वर्ष 

कूल(गोत्र)              - शाक्‍य

ज्ञान प्राप्‍ति - 35 वर्ष की आयु में बौद्धगया (बिहार), ज्ञान प्राप्‍ति को निर्वाण(बुद्धत्‍व) कहा गया है।

नदी                 - निरंजना

प्रिय शिष्‍य           - "आनंद और उपाली"

मत्‍यु                - 483 ई. पूर्व कुशीनगर  

आर्य सत्‍य -

दु:ख - ( दु:ख मनुष्‍य के जीवन का कड़वा सत्‍य है जो सबके जीवन में आता ही है चाहे वह राजा का बेटा हो या किसी गरीब का।)

दु:ख समुदाय - (दु:खो का कारण हमारी आन्‍तरिक इच्‍छाएँ और लालच है),

दु:ख निरोध - (दु:खों का नाश किया जा सकता है),

दु:ख निरोध गामिनी प्रतिपदा - (दु:खों का अंत अष्‍टांगिक मार्ग पर चलकर ही किया जा सकता है)।


बौद्ध धर्म का इतिहास
Boddha Dharm History

अष्‍टांगिक मार्ग -

1. सम्‍यक दृष्‍टि - आपका देखने का नजरिया अच्‍छा हो दुसरों के प्रति।

2.  सम्‍यक् वाक् - इसका मतलब आप हमेशा सत्‍य बोलों सहीं बोलो। कभी असत्‍य का सहारा मत लो अपने लाभ के लिए।

3. सम्‍यक् कर्म - इसका अर्थ है कि आप जो भी कार्य करों वह अच्‍छे हो ।

4. सम्‍यक् व्‍यायाम - इसका अर्थ है हर व्‍यक्‍ति अपने स्‍वभाव में निरन्‍तर सुधार करता रहे अपनी मानसिक और आध्‍यात्‍मिक रूप से।

5. सम्‍यक् आजीविका - अपनी आजीविका का साधन सही कार्य करके करोगे। मतलब की चोरी चकारी, लूटपाट या किसी अन्‍य रास्‍ते से नहीं।

6. सम्‍यक स्‍मृति - इसका अर्थ होता है कि आप अपने जीवन में अच्‍छी धारणाएँ बनाएंगे अच्‍छे विचार रखेंगे।

7. सम्‍यक् संकल्‍प - हर कार्य संकल्‍प लेकर करे।

8. सम्‍यक् समाधि - मन की एकाग्राता बनी रहे।

आचार संहिता -

1. हिंसा न करे

2. झूठ न बोले

3. पराए धन का लोभ न करे

4. नशे का सेवन न करे

5. दुराचार से दूर रहे।

बौद्ध धर्म की प्रमुख चार संगतियाँ -

क्रं. राजधानी    

वर्ष

शासक    

अध्‍यक्षता

1. राजगृह

483 ई.पू.

अजातशत्रु

महाकश्‍यप

2. वैशाली   

383 ई.पू.

कालाशोक   

शवाकामी

3. पाटलिपुत्र 

250-51 ई.पू.

अशोक

मोगालिपुत्र तिस्‍स

4. कुण्‍डलवन(कश्‍मीर)

72 ए.डी.

कनिष्‍क

वसुमित्र और अश्‍वघोष

चारों बौद्ध संगतियों के कुछ महत्‍वपूर्ण बिन्‍दू -

1. पहली बौद्ध संगति में दो प्रमुख पुस्‍तकें लिखी गई थी "सुत्‍त पिटक और विनयपिटक" जो गौतम बुद्ध के प्रिय शिष्‍य "आनन्‍द" द्वारा लिखी गई थी।

2. दूसरी महासभा में बौद्ध धर्म के विभाजन के लक्षण दिखने लग गए थे, जिसके कारण यहाँ पर दो प्रकार के संघ बन गए थे। "थेरवादी और महासांघिक" थेरवादी संध के लोग गौतम बुद्ध के बताए नियमों पर ही चलते थे जबकि महासांघिक संघ कुछ नए विचारों को भी शामिल करना चाहते थे।

3. तीसरी महासभा में "अभिधम्‍म पिटक" जो बौद्ध धर्म की तीसरी पुस्‍तक मानी जाती है वह लिखी गई थी।

4. चौथी महासभा सबसे महत्‍वपूर्ण मानी जाती है, क्‍योंकि इस सभा में बौद्ध धर्म दो गुट में बंट गया था "महायान और हीनयान।"

हीनयान और महायान -

1. हीनयान के अनुयायी रूढ़ीवादी थे जो अपने धर्म में कोई भी परिवर्तन नहीं करना चाहते थे। वे गौतम बुद्ध के बनाए रास्‍तों पर ही चलना चाहते थे। जबकि इसके विपरित "महायान" के अनुयायी परिस्‍थिति के अनुरूप उसमें परिवर्तन को स्‍वीकार करते थे।

2. हीनयान में गौतम बुद्ध को एक महापुरूष तो माना गया है परन्‍तु उन्‍हें देवता के रूप में स्‍वीकार नहीं किया गया है। क्‍योंकि स्‍वयं गौतम बुद्ध ने ही कहा था कि मैं देवता नहीं हूँ मैं एक मानव मात्र हूँ जो जनकल्‍याण के कार्य करता हूँ और समाज में फैले अंधकार को दूर करता हूँ, लेकिन महायान में गौतम बुद्ध को एक देवता के रूप माना गया है।

3. हीनयान में मूर्ति पूजा का विरोध किया जाता था, क्‍योंकि उनका मानना था कि भगवान किसी पत्‍थर की मूरत में केद नहीं रहते वे तो इंसानों में वास करते हैं। जबकि महायान के अनुयायी गौतम बुद्ध को देवता मानते थे और मूर्ति पूजा में विश्‍वास रखते थे। 

बाद में महायान के कांधार शैली में बड़ी मात्रा में बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण करवाया गया और आगे चलकर कांधार शैली को बौद्ध धर्म से ही जोड़ दिया गया था।

4. हीनयान को मानने वाले अनुयायी वर्तमान में श्रीलंका, दक्षिण भारत, बर्मा, थाईलैण्‍ड आदि देशों में ज्‍यादा रहते हैं। जबकि महायान को मानने वाले अनुयायी मुख्‍य रूप से उत्‍तर भारत, चीन, जापान, तिब्‍बत आदि देशों में रहते हैं।

बौद्ध धर्म के त्रिपिटक -

1. सुत्‍त पिटक - बुद्ध के उपदेशों और संवादों का संरक्षण किया गया है। इसकी रचना आनंद ने की थी।

2. विनय पिटक - संघ के नियम

3. अभिधम्‍म पिटक - बुद्ध के दर्शन का वर्णन किया गया है।

बौद्ध संघ -

समतावादी - इसका अर्थ होता है कि इसमें सभी लिंगानुपात को बौद्ध धर्म ग्रहण करने की इज्‍जाजत थी। चाहे वह स्‍त्री हो या पुरूष या किसी भी धर्म या जाति के लोग प्रवेश कर सकते हैं।

बौद्ध धर्म में किन व्यक्तियों का प्रवेश निषेध हैं -

दास - जो व्‍यक्‍ति दास है उनका बौद्ध धर्म में प्रवेश निषेध माना जाता है,

ऋणी - जिस व्‍यक्‍ति पर किसी का ऋण हो वह व्‍यक्‍ति भी बौद्ध धर्म में प्रवेश नहीं कर सकता, क्‍योंकि अगर वह व्‍यक्‍ति बौद्ध धर्म को ग्रहण करेगा तो वह हमेशा अपने द्वारा लिए गए ऋण के बारे में ही सोचता रहेगा।

सैनिक - जो व्‍यक्‍ति सैनिक के पद पर है उनका भी बौद्ध धर्म प्रवेश निषेध किया गय था।

अस्‍वस्‍थ - ऐसे व्‍यक्ति जो किसी बिमारी से पीड़ित हो वे लोग भी बौद्ध धर्म में प्रवेश नहीं कर सकते थे।

शारीरिक विकलांग - इनका भी बौद्ध धर्म में प्रवेश निषेध था।

बौद्ध धर्म में कौन से संकल्‍प लिए जाते हैं -

जब भी कोई व्‍यक्‍ति बौद्ध धर्म ग्रहण करता था तो उसे तीन चीजों का संकल्‍प लेना पड़ता था।

1. इन्‍द्रियनिग्रह - अर्थात् उनको अपनी इन्‍द्रियों पर नियंत्रण रखना होगा।

2. अपरिग्रह - कि अगर आपने एक बार बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया तो फिर आप वापस अपने घर नहीं जा सकते, न ही अपने घर की चिंता कर मोह माया के जनजाल में फसोगे।

3. श्रद्धा - इसका अर्थ होता है कि आपको बौद्ध धर्म के प्रति श्रद्धा और आस्‍ता रखनी होगी और ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों को इसके बारे में बताना होगा।

कुछ महत्‍वपूर्ण बिन्‍दू -

1. जातक कथा में गौतम बुद्ध के पुर्नजन्‍म की कथाएँ मिलती है। जिसमें बताया गया है कि गौतम बुद्ध ने अपने पुराने जन्‍मों में किस प्रकार कार्य किया था।

2. अश्‍वघोष की रचनाएँ - सौन्‍दरानन्‍द, बुद्धचरित, शारिपुत्र-प्रकरण आदि।

3. नागसेन - मिलिन्‍दपन्‍हो । इस पुस्‍तक में मिलिन्‍द नामक राजा ने नागसेन से कई प्रश्‍न बौद्ध धर्म के बारे में पुछे थे, जिनका उत्‍तर नागसेन ने अपनी पुस्‍तक मिलिन्‍दपनहो में दिया है।

4. एडविन अर्नाल्‍ड - इन्‍होंने अपनी पुस्‍तक में गौतम बुद्ध को "एशिया का प्रकाश पुंज" कहा है।

5. चैत्‍य - बौद्ध धर्म में पूजा स्‍थलों को चेत्‍य कहा गया है।

6. स्‍तूप - बौद्ध धर्म के अनुयाईयों के मृत शवों को रखने वाले स्‍थानों को स्‍पूत कहा जाता है।

7. विहार(मठ) - बौद्ध धर्म के अनुयायी जहाँ रहते थे उन स्‍थानों को विहार या मठ कहा जाता था।

8. अंगुतर निकाय - इस पुस्तक में बौद्ध धर्म का सम्पूर्ण इतिहास और 16 महाजनपदों की जानकारी दी हुई है।

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