राणा सांगा : वह भारतीय शासक, जिसने बता दिया कि शाहस के सामने बल काम नहीं आता है..?

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राणा सांगा का परिचय:

शासक - राणा सांगा(संग्राम सिंह)
जन्म - 12 अप्रैल, 1482 ई.
जन्म स्थान - चित्तौड़गढ़ (मेवाड़)
पिता  - महाराणा रायमल
माता - रतन कुँवर
पत्नी - रानी कर्णावति 
शासनकाल - 1509 ई. से 1528 ई.
मृत्यु - 30 जनवरी, 1528 ई.(कलपि)
कुल युद्ध - 18 युद्ध लड़े गए
पुत्र - उदयसिंह द्वितीय, भोजराज, रतनसिंह, राणा विक्रमादित्य ।

प्रारम्भिक जीवन की जानकारियाँ :

राणा सांगा को संग्राम सिंह के नाम से भी जाना जाता था। राजस्थान के महान शासक महाराणा राणा सांगा जी का जन्म 12 अप्रैल, 1482 ई. को चित्तौड़ के किले में हुआ था। बचपन से ही राणा सांगा अपने दोनों बड़े भाईयों के साथ रहे थे और उन्हीं से युद्ध करने की शिक्षा भी प्राप्त की थी। उनके पिता महाराणा रायमल मेवाड़ के शासक थे। 

राणा सांगा के बारे में कहा जाता है कि उनके शरीर पर 80 से ज्यादा घाव थे। जिनमें उनकी एक आँँख, एक हाथ, और एक पैर वे युद्ध में गंवा चुके थे। इन इन सबके बावजूद उनके समय में ऐसा कोई यौद्धा नहीं था जो उनको तलवार बाजी में मात दे सके। 

इसलिए उन्हें जेम्स टोड ने सैनिकों का भग्नावशेष कहा था, भग्नावशेष से तात्पर्य एक बूरी तरह से जख्मी सिपाही। स्वयं बाबर का भी यह मानना था कि अगर उनके तीनों पुत्र भी राणा सांगा की तरह साहसी और वीर यौद्धा होते तो शायद मैं कभी भारत में मुगल सल्तनत कायम नहीं कर पाता। 

राणा सांगा ने अपनी आँँख भाईयों की आपसी लड़ाई में खो दी थी जबकि उनका दायाँँ हाथ खातौली की लड़ाई में कट गया था। और पैर उसी युद्ध में घुटने में तीर लगने से खराब हो गया था।

Rana Sanga
Rana Sanga


राणा सांगा का शुरूआत में अपने भाईयों से संघर्ष :  

राणा सांगा ने अपने शुरूआती दौर में राजगद्दी प्राप्त करने के लिए काफी संघर्ष किया था। अपने पिता के 11 पुत्र थे जिनमें से 4 बड़े पुत्र थे जो उत्तराधिकारी बनने के प्रमुख हकदार थे। कुंवर पृथ्वीराज, जयमल, रायसिंह और संग्राम सिंह। 

अब ये चारों ही रायमल के बड़े बेटे थे, इसलिए अब बात आती है कि इनमें से किसकों मेवाड़ का शासक बनाया जाया। तभी चारों भाईयों ने यह तय किया कि अपनी-अपनी कुण्डली ज्योतिषी को दिखाएँँ, जिसकी कुण्डली में अगला मेवाड़ का महाराणा बनने का योगा होगा, उसे ही हम राजा घोषित कर देंगे। 

जिसके बाद वे चारों अपनी-अपनी कुण्डली लेकर ज्योतिषी के पास जाते हैं उन्हें अपनी कुण्डली दिखाते हैं। तब ज्योतिषी जी बताते हैं कि अगला मेवाड़ का भावी शासक बनने का योग कुंवर संग्राम सिंह की कुण्डली में है। ज्योतिषी जी की यह बात सुनकर संग्राम सिंह के दोनों भाईयों को घुस्सा आ जाता है और वे अपनी-अपनी तलवारें निकालकर राणा सांगा पर हमला कर देते हैं। 

उनका कहना था कि अगर राणा सांगा जीवित ही न रहे तो फिर राजा कैसे बनेगा। तीनों भाईयों की इस लड़ाई में राणा सांगा की एक आँँख फुट जाती है और वे हमेशा के लिए एक आँँख से अंधे हो जाते हैं। जैसे-तैसे करके वे अपने भाईयों की चंगुल से निकलने में कामयाब होते हैं और वहाँ से भागकर सेवात्री गांव पहुँच जाते हैं, जहाँँ उन्हें बिदा राठौड़ जी शरण देते हैं। 

जब राणा सांगा के भाईयों को इस बात का पता चलता है कि वह सेवात्री गांव में छुपा हुआ है तो वे सेवात्री गांव पर हमला कर देते हैं। तब बिदा राठौड़ उन्हें वहाँँ से सुरक्षित निकालकर स्वयं उनके भाईयों से युद्ध करते हैं और शहिद हो लड़ते-लड़ते शहीद हो जाते हैं। 

वहीं दूसरी तरफ राणा सांगा भागकर अजमेर पहुँच जाते हैं, जहाँँ पर उन्हें करमचन्द पंवार शरण देते हैं। यहाँँ पर राणा सांगा अपने जीवन के कुछ वर्ष गुजारते हैं और इसी बीच यहाँँ पर रहकर वे अपने आपको एक योग्य शासक बनाने के लिए मेेेेहनत करते हैं और शासन करने की विद्या तथा युद्ध कला में निपुणता हासिल करते हैं। 

इसी क्रम में उन्हें पता चलता है कि उनके दोनों बड़े भाईयों की मृत्यु हो चुकी है। कुंवर पृथ्वीराज उनके बारे में कहा जाता है कि उनको उन्हीं की बहन आनन्दी के पति जगमल द्वारा विषाक्त लड्डू देकर मार दिया जाता है। असल में होता यह है कि उनकी बहन को उसका पति जगमल ज्यादा मारता और परेशान करता था।

इसके लिए पृथ्वीराज उन्हें समझाने के लिए उनके घर जाते हैं, जहाँँ पर उनके जीजा में इतना शाहस नहीं होता है कि वे पृथ्वीराज से युद्ध कर सके इसलिए वे पृथ्वीराज के सामने माफी मांग लेते हैं और कहते हैं कि मुझे माफ कर दो में अब कभी नहीं सताऊँगा आपकी बहन को। 

उसके बाद पृथ्वीराज चौहान वहाँँ से आने लगते हैं तो उनके जीजा नहीं मानते हैं और मोती के लड्डूूूओं में जहर मिलाकर उन्हें बांधकर दे देते हैं, कि आप रास्ते में खा लेना और बाकी घर ले जाना। तब पृथ्वीराज उन्हें ले लेता है और वहाँँ से घर के लिए रवाना हो जाता है। तभी रास्ते में उसे भूख लगती है और वह लड्डू खा लेता है, जिसके बाद उसकी मृत्यु हो जाती है। 

दूसरा भाई कुंवर जयमल उनके बारे में कहा जाता है कि उनको टोड़ा रियासत के राव सुरतन द्वारा मार दिया जाता है। अब बचे रायसिंह तो उन्हें वैसे ही उनके खराब व्यवहार के कारण कोई भी दरबारी या जनता पसंद नहीं करती थी। अब उसके बाद बारी आती है संग्राम सिंह की।     

राज्याभिषेक और राज्य की सामान्य जानकारी : 

राणा सांगा का राज्याभिषेक 1509 ई. में  महाराणा रायमल द्वारा किया गया। राजा बनते ही राणा सांगा ने अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार करना आरम्भ कर दिया। इसी बीच बूँदी रियासत से अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए उन्होंने वहाँँ की राजकुमारी कर्णावती से विवाह कर लिया। 

जिस समय महाराणा राणा सांगा मेवाड़ के शासक बने थे उस समय मेवाड़ रियासत काफी मजबूत और अमीर थी, उनकी वार्षिक आय लगभग 10 करोड़ के आसपास थी। साथ ही उनके पास 1 लाख सिपाही और 30 हजार अश्व सेनाएँँ थी। इसके साथ ही उनके पास कई बड़े राजा, राव और छोटी रियासतों का भी सहयोग था। 

राणा सांगा का शासनकाल 1509 से 1528 ई. तक रहा था और उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनके शासनकाल में ऐसा कोई भी साल नहीं गुजरा, जब मेवाड़ का किसी विदेशी आक्रमणकारी से युद्ध न हुआ हो। राणा सांगा ने अपने शासनकाल के दौरान कुल 18 युद्ध लड़े थे।

राणा सांगा द्वारा अपने राज्यों की सुरक्षा हेतु किया गया बंटवारा: 

उनके राज्य की सीमाओं की बात करे तो उनका राज्य मेवाड़ चारों तरफ से शत्रुओं से घिरा हुआ था, उनके पूर्व में गुजरात राज्य था, जहाँँ के शासक महमूद बेगड़ा थे। वहीं दक्षिण पूर्व में मांडू राज्य था, जहाँँ के शासक नसीरूद्दीन और उत्तर में दिल्ली सल्तनत थी जहाँँ का शासक सिकंदर लोदी था।

राणा सांगा के लिए फायदे की बात तो यह थी कि इन तीनों ही विशाल राज्यों में आपसी मित्रता नहीं थी, यह बात राणा सांगा अच्छी तरह से जानता था। इसलिए उन्होंने शासक बनते ही सबसे पहले अपनी सीमाओं को सुरक्षित किया। 

जिसमें बूँदी जो दिल्ली का प्रवेश द्वार माना जाता था, वहाँँ पर राणा सांगा ने अपने विश्वास पात्र करमचंद पंवार को राव की उपाधि देकर तैनात कर दिया था। करमचंद पंवार वही है, जिन्होंने मुश्किल वक्त में राणा सांगा को अपने पास शरण दी थी। उन्हें वहाँँ पर अजमेर, नागौर, मांडला और बनेड़ा की रियासतें भी दी थी। 

दक्षिण की सीमाओं पर अपने दूसरे विश्वसनीय साथी रायमल को इडर के शासक भारमल को हराकर वहाँँ पर नियुक्त कर दिया था। आगे चलकर इसी इडर के लिए गुजरात और मेवाड़ के बीच युद्ध भी हुआ था, जिसे इडर का युद्ध कहा जाता है। 

अब बात आती है पूर्व मध्य में मांडू की सीमाओं की तो वहाँँ पर मेदिनी राय को बैठा दिया था। साथ ही उन्हें गागरोन और चंदेरी की रियासत भी दे दी थी।    

इस प्रकार देखा जाए तो राणा सांगा का राज्य विस्तार उत्तर में सतलज नदी से दक्षिण में नर्मदा नदी तक और पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में बयाना, भरतपुर तक विस्तृत था। 

राणा सांगा द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध :

राणा सांगा के युद्ध हारने के कारण -

1. पहला कारण बाबर ने युद्ध में तुलगमा पद्धति को अपनाया थाजिसमें बाबर के सैनिकों ने पीछे से कायरों की तरह हमला किया था। जबकि राणा सांगा और उनके सैनिकों ने सामने से एक वीर यौद्धा की तरह युद्ध किया था।

2. बाबर के पास कई तोपे थी जिसकी मदद से उसने युद्ध का रूख पलट दिया था। लेकिन राजपूतों ने तोप जैसे हथियार का नाम भी नहीं सुना था और वे सिर्फ युद्ध में तलवारभाले और तीरों से ही युद्ध कर रहे थे।

3. राणा सांगा ने एक बड़ी गलती यह भी की थी कि बयाना का युद्ध जितने के तुरन्‍त बाद बाबर पर आक्रमण नहीं कियाजिससे बाबर को युद्ध की तैयारी करने के लिए पर्याप्‍त समय मिल गया।

बाबर द्वारा राणा सांगा पर लगाया गया आरोप -

तुर्की भाषा में लिखी अपनी आत्‍मकथा तुजुक-ए-बाबरी में बाबर ने लिखा है कि राणा सांगा ने काबुल में मेरे पास दूत भेजकर दिल्‍ली पर आक्रमण करने के लिए मुझे आमंत्रित किया था और जब युद्ध शुरू हुआ तो वह अपने वादे से मुकर गए। 

लेकिन दोस्‍तों आप सोचिए कि जब राणा सांगा ने स्‍वयं इब्राहिम लोदी को दो बार खातौली और बाड़ी के युद्ध में हराया दिया था तो फिर वे बाबर को दिल्‍ली पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित क्‍यों करेंगे।

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